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करने वाले 'भोजन-कुतूहल' नामक ग्रंथ के लेखक । यह ग्रंथ मुद्रित स्वरूप में नहीं। इसकी हस्तलिखित प्रति उज्जैन के प्राच्य ग्रंथ-संग्रह में सुरक्षित है। रचना-काल ई. 18 वीं शती का पूर्वार्ध। ग्रंथ की रचना करते समय धर्मशास्त्र तथा वैद्यकशास्त्र के 101 ग्रंथों के उद्धरणों का विपुल प्रयोग करने के साथ ही रघुनाथसूरि ने कहीं-कहीं पर अपना स्वयं का भी मत व्यक्त किया है। रघुनाथसूरि - समय- ई. 18 वीं शती। मैसूर- निवासी। पिता-शैलनाथसूरि। रामानुज महादेशिक की शिष्यपरम्परा में। 'प्राभावत' नाटक के प्रणेता। डा. रघुवीर - अनेकविध आधुनिक शास्त्रों की संस्कृतनिष्ठ परिभाषा के कोशों के निर्माता। इन कोशों में अर्थशास्त्रशब्दकोश, आंग्लभारतीय-पक्षिनामवली, आंगनमा तीय प्रशासन शब्दकोश, खनिज- अभिज्ञान, तर्कशास्त्रपारिभाषिक-शब्दावली, वाणिज्यशब्दकोश, सांख्यिकी-शब्दकोश इत्यादि उल्लेखनीय हैं। आपका कोशकार्य नागपुर तथा दिल्ली में हम। नाप भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष थे। एक शोचनीय पार के कारण आपका देहान्त हुआ। रजनीकान्त साहित्याचार्य- समय- ई. 10 व पाती। चितगांव (बंगाल) के निवासी। कृतियां- चट्टलविलाप-चित्रकाव्य। विद्याशतक। नाटक-मङ्गलोत्सव और सस्कतबोध- व्याकरण। रणछोड भट्ट - समय- अनुमानतः 1652-1600 ई.। इन्होंने मेवाड के महाराणा अमरसिंह को अपनी रचना का विषय बनाया है। ग्रंथ (1) अमरकाव्यवंशावली और (2) राजप्रशस्तिकाव्य- इस महाकाव्य को 24 सों विभक्त किया गया है। रणेन्द्रनाथ गुप्त कविराज । समय- ई. 20 वीं शती। वंगवासी। 'हीरश्चन्द्रचरित' नामक नाटक के प्रणेता। रत्रकीर्ति - ई. 16 वीं शती। गुरु-ललितकीर्ति। ग्रंथबाहुभद्रचरित (4 सर्ग)। पुराणशैली में लिखित । रत्नभूषण - ई. 19 वीं शती। पूर्व बंगाल के निवासी। कृतियां- काव्यकौमुदी (विषय- काव्यशास्त्र)। रत्ननन्दिगणी - जैनपंथी तपागच्छ के सोमसुन्दर सूरि के प्रशिष्य और नन्दिरत्नगणी के शिष्य। ग्रंथ- 1. उपदेशतरंगणी 2. भोजप्रबंध (वि.सं. 1510) । रत्नाकर - 'हरविजय' नामक महाकाव्य के प्रणेता। पिताअमृतभानु। काश्मीर-नरेश चिपट जयापीड (800 ई.) के सभा-पंडित। कल्हण की 'राजतरंगिणी' में इन्हें अवंतिवर्मा के राज्यकाल में प्रसिद्धि प्राप्त होने का उल्लेख है। ये ई. 9 वीं शती के प्रथमार्ध तक विद्यमान थे। 'हरविजय' का प्रकाशन काव्यमाला संस्कृत सीरीज मुंबई से हो चुका है। रत्नाकर ने माघ की ख्याति को दबाने के लिये ही 'हरविजय' महाकाव्य का प्रणयन किया था।
रत्नाकर पण्डित - राजस्थान- निवासी । रचना- जयसिंह-कल्पद्रुमः, विषय- धर्मशास्त्र। ई. 18 वीं शती। रत्नाकर शान्तिदेव - ई. 9 वीं शती। 'बुभुक्षु' के नाम से विख्यात । विक्रमशिला मठ के द्वारपण्डित । 'छन्दोरत्नाकर' के कर्ता । रमाकान्त मिश्र - ई. 20 वीं शती। व्याकरणाचार्य,साहित्याचार्य, आयुर्वेदाचार्य तथा बी.ए. । नरकटियागंज (चंपारन) के जानकी संस्कृत विद्यालय में प्रधानाध्यापक। 'जवाहरलाल नेहरू विजय' नामक नाटक के प्रणेता। रमा चौधुरी - समय- ई. 20 वीं शती। डा. यतीन्द्रविमल चौधुरी की पत्नी। पिता- बैरिस्टर सुधांशुमोहन बोस (वंगीय पब्लिक सर्विस कमिशन के अध्यक्ष) । पितामह-बै. आनन्दमोहन बोस (इंडियन नेशनल काँग्रेस के अध्यक्ष)। मामा प्रा. ए.सी. बैनर्जी (प्रयाग वि.वि. के अध्यक्ष)। पिता के मामा महान् वैज्ञानिक सर जगदीशचंद्र बसु । इस प्रकार आपकी कुलपरंपरा उल्लेखनीय है। आक्सफोर्ड वि.वि. से डी.फिल. की उपाधि । लेडी ब्रेबोर्न कालेज की 30 वर्षों तक प्राचार्या। सात वर्षों तक रवीन्द्र भारती वि.वि. की कुलपति। कई सांस्कृतिक संस्थाओं की सदस्या एवं अध्यक्षा। सन् 1970 में जर्मन शासन द्वारा सम्मानित। सन् 1971 में रूस के निमंत्रण पर (दो अन्य कुलपतियों के साथ) रूस-गमन। पति के दिवंगत होने के पश्चात् चार वर्षों में 20 नाटकों का सृजन। भारत तथा विदेशों में अनेक बार अपने तथा अपने पति डा. यतीन्द्रविमल चौधुरी के नाटकों का मंचन तथा निर्देशन । साहित्य अकादमी की जनरल कौन्सिल तथा संस्कृत मंडल की सदस्या।
कृतियां- शंकर-शंकरम्, देशदीपम्, पल्लीकमल, कविकुल-कोकिल, मेघमेदुर-मेदिनीय, युगजीन-निवेदित-निवेदितम्, अभेदानन्द, रसमय-रासमणि,रामचरितमानस, चैतन्य-चैतन्यम्, संसारामृत, नगरनूपुर, भारत-पथिक, कविकुल-कमल, भारताचार्य, अग्निवीणा, गणदेवता, भारततातम्, यतीन्द्रम् तथा प्रसन्नप्रसाद ।
बंगाली कृतियां - दशवेदान्त सम्प्रदाय, साहित्यकण, संस्कृतांगरोग, निम्बार्कदर्शन, वेदान्तदर्शन, सूफीदर्शन ओ वेदान्त । ____ अंग्रेजी कृतियां - (1) डाक्ट्रिन्स ऑफ निंबार्क अन्ड हिज फालोअर्स (तीन खंड) (2) सुफीझम् औण्ड वेदान्त। (3) इंडो इस्लामिक सिंथेटिक फिलॉसॉफी। (4) डाक्ट्रिन्स ऑफ श्रीकण्ठ (3 खंड)। (5) संस्कृत औण्ड प्राकृत पोएटेसेस् । (6) फिलॉसॉफिकल एसेज। (7) टेन स्कूल्स् ऑफ वेदान्त (3 खंड)। रमानाथ मिश्र - जन्म- सन् 1904 में, बालेश्वर के निकट मणिखम्भ ग्राम (उत्कल) में। पिता- यदुनाथ मिश्र । बालेश्वर के श्रीरामचन्द्र संस्कृत विद्यालय में संस्कृत की शिक्षा । आजीवन वहीं अध्यापन । साहित्यशास्त्री, आयुर्वेदशास्त्री तथा कर्मकाण्डाचार्य की उपाधियों से अलंकृत। अंग्रेजी में भी निपुण। कृतियां
422 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार चण्ड
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