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मंत्रों का विनियोग विस्तृत रूप से दिया है।
विख्यात है तथा गुजरात की सीमा से अत्यंत निकट है। माघ महीधर वेंकटराम शास्त्री - ई. 20 वीं शती।। पिता-वेंकटराम ने जिस रैवतक पर्वत का वर्णन अपने 'शिशुपाल-वध' में दीक्षित। राजमहेन्द्रवरम् नगरी (आध्रप्रदेश) के निवासी।। किया है, वह राजस्थान में ही है। इन प्रमाणों के आधार पर वैयाकरण एवं आयुर्वेद-विशारद । 'सरोजिनी-सौरभ' नामक नाटक विद्वानों ने माघ को राजस्थानी श्रीमाली ब्राह्मण कहा है। के रचयिता।
माघ का समय ई. 7 वीं शती से 11 वीं शती तक महेन्द्रसूरि- ज्योतिष शास्त्र के आचार्य। समय- ई. 12 वीं माना जाता रहा है। राजस्थान के वसंतपुर नामक स्थान में शती का अंतिम चरण । गुरु-मदनसूरि। महेन्द्रसूरि, फीरोज शाह राजा वर्मलात का एक शिलालेख प्राप्त हुआ है जिसका समय तुगलक के आश्रय में रहते थे। इन्होंने 'यंत्रराज' नामक 625 ई. है। यह समय माघ के पितामह सुप्रभदेव का है। ग्रह-गणित का अत्यंत महत्त्वपूर्ण ग्रंथ लिखा है जिस पर इनके अतः यदि इसमें 50 वर्ष जोड दिये गये जायें, तो माघ का शिष्य मलयेंद्र-सूरि ने टीका लिखी है। इस ग्रंथ का रचना-काल समय 675 ई. माना जा सकता है। 'शिशुपाल-वध' के एक सन् 1192 है।
श्लोक (2-114) में माघ ने राजनीति की विशेषता बताते महेशचन्द्र तर्कचूडामणि - ई. 19-20 वीं शती। राजारामपुर,
समय उध्दव के कथन में राजनीति व शब्दविद्या दोनों का (दिनाजपुर बंगाल) के निवासी। कृतियां- भूदेवचरित,
प्रयोग एक-साथ श्लिष्ट उपमा के रूप में किया है। इसमें दिनाजपुर-राजवंश-चरित व काव्यपेटिका तथा तत्त्वावली (काव्य) ।
काशिकावृत्ति (650 ई.) तथा उस पर जिनेंद्रबुद्धि रचित महेश ठक्कुर - अकबर बादशाह के आश्रित। इन्होंने
न्यास-ग्रंथ (700 ई.) का संकेत है। इससे सिद्ध होता है 'सर्व-देश-वृत्तान्त संग्रहः' की रचना की। यह ग्रंथ 'अकबरनामा'
कि "शिशुपाल-वध" की रचना 700 ई. के बाद हुई है। के नाम से प्रसिद्ध है। महेश ठक्कुर न्यायशास्त्र के विशेषज्ञ
सोमदेव कृत 'यशस्तिलकचंपू' (959 ई.) में माघ का उल्लेख थे। उनके शिष्य रघुनन्दनदास भी प्रखर नैयायिक थे। अकबर
प्राप्त होता है तथा 'ध्वन्यालोक' में 'शिशुपाल-वध' के दो ने इनकी विद्वत्ता से प्रसन्न होकर इन्हें दरभंगा प्रान्त भेंट दिया
श्लोक (3-53 व 5-26) उद्धृत हैं। 'शिशुपाल-वध' पर परंतु रघुनन्दनदास ने वह भेंट अपने गुरु के चरणों पर समर्पित
भारवि तथा भट्टि दोनों का प्रभाव लक्षित होता है। अतः
इनका समय ई.7 वीं शती का उत्तरार्ध माना जा सकता है। की। अभी-अभी तक ठक्कुर के वंशज दरभंगा की गद्दी पर थे।
माघ-प्रणीत एकमात्र ग्रंथ- "शिशुपाल-वध' है। इस महाकाव्य महेश्वर न्यायालंकार - ई. 16 वीं शती। बंगाल के निवासी।
की कथावस्तु का आधार महाभारतीय कथा है जिसे माघ ने कृतियां- 'साहित्यदर्पण' पर 'विज्ञप्रिया' नामक तथा 'काव्यप्रकाश'
अपनी प्रतिभा के बल पर रमणीय रूप दिया है। माघ का पर 'आदर्श' अथवा 'भावार्थ-चिन्तामणि' नामक टीका।
व्यक्तित्व एक पंडित कवि का है। उनका आविर्भाव संस्कृत माघ (घण्टामाघ) - "शिशुपाल-वध' नामक युगप्रवर्तक
महाकाव्य की उस परंपरा में हुआ था, जिसमें शास्त्र-काव्य महाकाव्य के प्रणेता। अपनी विशिष्ट शैली के कारण
एवं अलंकृत-काव्य की रचना हुई थी। इस युग में पांडित्य-रहित 'शिशुपाल-वध' संस्कृत महाकाव्य की 'बृहत्त्रयी' में द्वितीय
कवित्व को कम महत्त्व प्राप्त होता था। अतः माघ ने स्थान का अधिकारी रहा है। माघ की विद्वत्ता, महनीयता, स्थान-स्थान पर अपने अपूर्व पांडित्य का परिचय दिया है। प्रौढता व उदात्त काव्यशैली के संबंध में संस्कृत ग्रंथों में ये महावैयाकरण, दार्शनिक, राजनीतिशास्त्र विशारद एवं नीतिशास्त्री अनेक प्रकार की प्रशस्तियां प्राप्त होती हैं। स्वयं माघ ने ही भी थे। बौद्ध-दर्शन के सूक्ष्म भेदों का भी इन्हें ज्ञान था। 'शिशुपाल-वध' के अंत में 5 श्लोकों में अपने वंश का इन्होंने एक ही श्लोक (2-28) के अंतर्गत, राजनीति व वर्णन किया है। तदनुसार माघ के पितामह का नाम सप्रभदेव ।
बौद्ध-दर्शन के मूल सिद्धातों का विवेचन किया है। इन शास्त्रों था और वे श्रीवर्मल नामक किसी राजा के प्रधान मंत्री थे। के अतिरिक्त नाट्यशास्त्र, व्याकरण, संगीतशास्त्र, अलंकारशास्त्र, सुप्रभदेव के पुत्र का नाम दत्त या दत्तक था, जो अत्यंत
कामशास्त्र एवं अश्वविद्या के भी परिशीलन का परिचय महाकवि गुणवान् थे, और इन्हीं के पुत्र माघ थे।
माघ ने अपने महाकाव्य में यत्र-तत्र दिया है। इनका प्रत्येक माघ का जन्म भिन्नमाल या भीमाल नामक स्थान में हुआ वर्णन, प्रत्येक भाव, अलंकृत भाषा में ही अभिव्यक्त किया था। इस स्थान का उल्लेख 'शिशुपाल-वध' की कतिपय गया है। इनका काव्य कठिनता के लिये प्रसिद्ध है और प्राचीन प्रतियों में मिलता है। विद्वानों का अनुमान है कि यही इन्होंने कहीं-कहीं चित्रालंकार का प्रयोग कर उसे जानबूझकर भित्रमाल का भीनमाल कालांतर में श्रीमाल हो गया था। कठिन बना दिया है। प्रभाचंद्र रचित 'प्रभाकरचरित' में माघ को श्रीमाल-निवासी कहा 'उदयति विततोर्ध्वरश्मिरज्जौ।। गया है। प्रभाचंद्र ने श्रीमाल के राजा का नाम वर्मलात और अहिमरुचौ- हिमधाम्नि याति चास्तम्। मंत्री का नाम सुप्रभदेव लिखा है (प्रभाकर-चरित, 14-5-10)। वहति गिरिरयं विलम्बिघण्टायह स्थान अभी भी राजस्थान में श्रीमाली नगर के नाम से द्वयपरिवारित-वारणेन्द्रलीलाम् ।।4-20 ।।
412 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड
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