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नयसेन- मूलसंघ-सेनान्वय-चन्द्रकवाट अन्वय के विद्वान और विषय-मैसूरनरेश का चरित्र। विशचक्रवर्ती नरेन्द्रसूरि के शिष्य। व्याकरण और न्यायशास्त्र नरसिंहाचार्य स्वामी- जन्म- सन् 1842 में विजयनगर के के विद्वान । चालुक्यवंशीय भुवनैकमल्ल (सन् 1069-1076) समीप सिंहाचलम् में। पिता-वीरराघव। पितामह-नृसिंहार्य । द्वारा प्रशंसित। मल्लिषेण के गुरु जिनसेन के सधर्मा। समय- विजयनगरनरेश आनन्द गजपतिनाथ (1851-1897 ई.) का ई. 11-12 वीं शती। ग्रंथ-कत्रडव्याकरण और धर्मामृत।
समाश्रय प्राप्त। संस्कृत, प्राकृत और कन्नड के विद्वान। ग्रंथ कन्नड में होते
कृतियां- उज्ज्वलानन्द (उपन्यास), अलंकार-सारसंग्रह, हुए भी संस्कृत से अत्यधिक प्रभावित ।
नीतिरहस्य, रामचन्द्रकथामृत, भागवत इ. ग्रंथ तथा चार नरचंद्र उपाध्याय- समय- ई. 14 वीं शताब्दी। इन्होंने नाटक-वासवी-पाराशरीय, राजहंसीय (प्रकरण), गजेन्द्र (व्यायोग) ज्योतिष-शास्त्र-विषयक अनेक ग्रंथों की रचना की थी, किन्तु
तथा शीतसूर्य। कुल ग्यारह ग्रंथों के लेखक। संप्रति "बेडाजातक वृत्ति" व ज्योतिष-प्रकाश" नामक ग्रंथ ही प्राप्त होते है। "बेडाजातक वृत्ति" का रचनाकाल सं. 1324
नरहरि - इनका "यादवराघवीय" नामक काव्य (द्वयर्थी) माघ सुदि 8 रविवार बताया जाता है। "ज्योतिष-प्रकाश"
कृष्ण और राम के चरित्र पर आधारित है। इसके अतिरिक्त फलित ज्योतिष की महत्त्वपूर्ण रचना है जिसमें मुहूर्त व संहिता
रचना :- छन्दःसुन्दरम्। चन्द्रलक्ष्मोत्प्रेक्षा। शृंगारशतकम्। का सुंदर विवेचन है। "बेडाजातक वृत्ति' में लग्न व चंद्रमा.
नरेन्द्रनाथ चौधुरी- ई. 20 वीं शती। काव्य-तत्त्व-समीक्षा के द्वारा सभी फलों पर विचार किया गया है।
नामक ग्रंथ के रचयिता।।
नरेन्द्र सेन- ई. 18 वीं शती। नरेन्द्र सेन नाम के अनेक नरपति महामिश्र- न्यासप्रकाश के लेखक। समय- वि. सं.
विद्वान हुए हैं। उनमें “सिद्धान्तसार" के कर्ता नरेन्द्र सेन और 15 वीं शती (पूर्वार्ध)। इनके अतिरिक्त जिनेन्द्रबुद्धि के न्यास
"प्रमाणप्रमेयकलिका" नामक न्यायविषयक ग्रंथ के लेखक पर पुण्डरीकाक्ष विद्यासागर और रत्नमति की टीकाएं उल्लिखित हैं।
नरेन्द्रसेन, प्रसिद्ध हैं। उनके गुरु थे छत्रसेन । नरसिंह- श्रीमध्वाचार्य के ऋग्भाष्य पर जयतीर्थकृत टीका-ग्रंथ
"धर्मरत्नाकर" के कर्ता नरेन्द्र, जयसेन के वंशज हैं। ये के विवृतिकार। वे कर्नाटक और महाराष्ट्र की सीमा पर रहते
गुणसेन के शिष्य थे। समय- ई. 18 वीं शताब्दी। थे ऐसा अनुमान, उनके उभयभाषापरिचायक कुछ स्थलों के
रचना-सिद्धान्तसार-संग्रह । तत्त्वार्थसूत्र और अमितगति श्रावकाचार आधार से होता है।
से प्रभावित । नरेन्द्रसेन के नाम से एक प्रतिष्ठा-ग्रंथ भी मिलता है। टी. नरसिंह अय्यंगार- (अपरनाम-कल्किसिंह)। इ. 1867-1935 । बंगलोर में प्राध्यापक। रचनाएं- पुष्पांजलिस्तोत्रम्। नरेन्द्राचार्य- समय- वि. सं. 1110। सारस्वत व्याकरण के पुष्पसेनसमय राज्यारोहणम् (नाटक) एवं तमिलवैष्णवगीतों के प्रवक्ता। इस मूल व्याकरण की प्रक्रिया को सरल करने वाले अनुवाद।
अनुभूतिस्वरूपाचार्य, नरेन्द्राचार्य और नरेन्द्रसेन, एक ही व्यक्ति नरसिंहकवि- अलंकार-शास्त्र के एक आचार्य। इन्होंने । हैं। अनेक व्याकरणों के ज्ञाता। मूल ग्रंथ अप्राप्य। अतः "नंजराज-यशोभूषण" नामक ग्रंथ की रचना, विद्यानाथ कृत उसकी प्रक्रिया को सरल करने वाली नरेन्द्राचार्य की कृति ही "प्रतापरुद्र -यशोभूषण" के अनुकरण पर की है। यह ग्रंथ सारस्वत व्याकरण के नाम से ज्ञात है। इस पर 18 टीकाएं मैसूर राज्य के मंत्री नंजराज की स्तुति में लिखा गया है। लिखी गईं तथा अनेक रूपान्तर किये गए है।। इसका प्रकाशन गायकवाड ओरिएंटल सीरीज ग्रंथ-संख्या 47 नवरंग- जैनसंप्रदायी। 17 वीं शती । रचना- परमहंस-चरितम्। से हो चुका है।
नल्ला दीक्षित - समय- 1684 से 1710 ई.। कौशिक नरसिंह कवि - रचना- शिवनारायणमहोदयम् के लेखक।
गोत्रीय। अपर नाम "भूमिनाथ"। "अभिनव-भोजराज" की नरसिंह कविराज- दाक्षिणात्य वैदिक ब्राह्मण । पिता-नीलकण्ठ।
उपाधि । चोल प्रदेश में कुम्भकोणम् के समीप "कण्डरमाणिक्य" कृति-मधुमती नामक वैद्यकशास्त्रविषयक ग्रंथ।
अग्रहार में जन्म। पिता-बालचंद्र । गुरु-रामभद्र दीक्षित के ही नरसिंह मिश्र- उत्कल प्रदेश में मयूरभंज के निकट केओझर
परिवार से संबध्द। शिष्य-सदाशिव ब्रह्मेन्द्र और रामनाथ के राजा बलभद्र भंज (1764-1782 ई.) के द्वारा सम्मानित ।
मखीन्द्र। अपने “धर्मविजयचंपू' में तंजौर के शासक राजा "शिवनारायण-भंजमहोदय" नाटक के रचियता।
शाहजी की जीवन-गाथा प्रस्तुत की है। अन्य कृतियांनरसिंहाचार्य- ई. 20 वीं शती। यह मद्रास के पण्डित हैं। शृंगारसर्वस्व (भाण), सुभद्रापरिणय, जीवन्मुक्तिकल्याण और इनका “आर्यनैषधम्" नामक काव्य, आर्यावृत्त में "नैषध" चित्तवृत्ति-कल्याण नामक 3 नाटक और अद्वैतमंजरी नामक काव्य का संक्षेप है।
निबंध। प्रथम दो कृतियों की रचना सत्रहवीं शती अंतिम नरसिंहाचार्य एस.- रचना- कृष्णराजेन्द्रयशोविलासचम्पू। चरण में। शेष तीन अठारहवीं शती प्रथम चरण में।
346 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड
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