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अद्यावधि चालू है।
गणपतिस्तुति,कर्कोटकस्तुति, रामचंद्रस्तुति, अभव-स्तुति, कृष्णस्तुति, कृष्ण मिश्र 'हंस' क्षेणी के संन्यासी तथा शांकराद्वैतमत के विश्वार्धिकस्तुति, कृष्णचरितम्, अभिनवकौस्तुभमाला, क्रमदीपिका, प्रचारक भे। इनका एक शिष्य दर्शनशास्त्र के अध्ययन में शांकरहृदयांगन, वृन्दावनस्तुति (रासवर्णन), कालवध (मार्कण्डेय अनुत्सुक था। उसे मार्ग पर लाने के लिये इन्होंने "प्रबोध कथा), गोविन्दाभिषेकम् (श्रीचिह्नकाव्यम्) और कृष्णकर्णामृतम् चन्द्रोदय" की रचना की थी। इस नाटक का कथानक भागवत जिससे आप विख्यात हुए। से लिया गया है। नाटक की प्रस्तुति में राजा कीर्तिवर्मा अपने कृष्णशास्त्री - ई. 19 वीं शती। पूर्ण नाम-ब्रह्मश्री परितियकृष्ण सेनापति गोपाल की सहायता से कर्णदेव को हराता है इसका शास्त्री। जन्म कलमगवडी ग्राम (तामिळनाडू) में। केरलनरेश उल्लेख कर, कृष्णमिश्र इस आनन्दोत्सव में प्रस्तुत नाटक के रामवर्मा का आश्रय प्राप्त । काव्य, दर्शन, व्याकरण व धर्मशास्त्र प्रयुक्त होने की घटना का निर्देश करते है। कीर्तिवर्मा का में निपुण। गुरु-विद्यानाथ दीक्षित । आपने 16 वर्ष की अवस्था काल, ई. 1049 से 1100 है। अतः कृष्ण मिश्र का काल में ही “कौमुदी-सौम" नामक नाटक की रचना की। ई. 11 वीं शती निश्चित होता है।
कृष्ण सार्वभौम- अपरनाम कृष्णनाथ सार्वभौम भट्टाचार्य । कृष्णमूर्ति- ई. 17 वीं शती का उत्तरार्ध। वसिष्ठ गोत्रीय । समय- ई. 18 वीं शती। निवासस्थान-पश्चिम बंगाल का पिता-सर्वशास्त्री। कृतियां- मदनाभ्युदय (भाण) और यक्षोल्लास शांतिपुर। इन्होंने नवद्वीप के राजा रघुराम राय की आज्ञा से (काव्य)। इन्होंने स्वयं का निर्देश अभिनव कालिदास के रूप "पदाङ्कद्त" की रचना की थी। इस तथ्य का निर्देश इन्होंने में किया है।
अपने इस दूतकाव्य के अंत में किया है। इस काव्य में कृष्णमूर्ति- ई. 19 वीं शती। रचना- कङ्कणबन्ध-रामायणम्। कृष्णसार्वभौम ने श्रीकृष्ण के एक पदाङक को दूत बना कर यह रामायण केवल एक श्लोक का है। इस एक श्लोक के किसी गोपी द्वारा कृष्ण के पास संदेश भिजवाया है। 64 अर्थ निकलते हैं। उसमें पूरी राम-कथा समाविष्ट है। __अपने पिता दुर्गादास चक्रवर्ती की भांति ये भी कृष्ण-भक्त कृष्णराम व्यास- आयुर्वेदाचार्य । जयपुर-निवासी श्री. कुन्दनराम थे। इन्हें सामंत चिंतामणि, रामजीवन तथा उनके पुत्र राजा के ज्येष्ठ पुत्र। जन्म 1871 ई.। जयपुर के सभा-पंडित। इनकी रघुराम राय (1715-1728 ई.) इन तीनों से समाश्रय प्राप्त प्रसिद्ध कृतियां हैं- 1. कच्छवंश-महाकाव्यम्, 2. था। अन्य कृतियां- 1. आनंदलतिका (नाटक), 2. कष्ण-पदामृत जयपुरविलासकाव्यम्, 3. सारशतकम्, 4. मुक्तकमुक्तावली, 5. (स्तोत्र) और 3. मुकुंदपद- माधुरी (सटीक कारिकाएं)। जयपुरमेलकुतुकम्, 6. आर्यालंकारशतकम्, 7. गोपालगीतम्, कृष्णसुधी- पं. जगन्नाथ के वंशज। उत्तरमेरु (कांची के 8. गल्पसमाधानम्, 9. होलीमहोत्सव, 10. माधवपाणिग्रहणोत्सव, पास) में वास्तव्य। रचना- काव्यकलानिधि। यह एक 11. काशीनाथस्तव, 12. गोविन्दभट्टभंगम्, 13. छन्दश्छटामर्दनम्, साहित्यशास्त्रीय रचना है जिसमें उदाहरणों के माध्यम से 14. स्मरशतकम्, 15. पलाण्डराजशतकम् व 16. आश्रयदाता कौल्लमनरेश रामवर्मा का गुणगान किया गया है। चन्द्रचरितमण्डनम्।
कृष्णानंद- समय- ई. 14 वीं शती। "सहृदयानंद" नामक प्रथम दो काव्यों में जयपुर के अनेक राजाओं का चरित्र
महाकाव्य के प्रणेता। 15 सर्गों में रचित इस काव्य में, राजा ग्रथित किया गया है। “सारशतकम्", श्रीहर्ष के "नैषध"
नल का चरित्र वर्णित है। ये जगन्नाथपुरी के निवासी थे। काव्य का संक्षेप है।
इनका एक पद्य विश्वनाथ कविराज द्वारा रचित "साहित्य-दर्पण" कृष्णलाल 'नादान' (डा.) - दिल्लीनिवासी। दिल्ली वि.वि.
में उद्धृत है। यह महाकाव्य (हिन्दी अनुवाद सहित) चौखंबा में संस्कृत विभाग में उपाचार्य। सन् 1956 में "भारती"
विद्याभवन वाराणसी से प्रकाशित हो चुका है। पत्रिका की प्रतियोगिता में "शिंजारव" शीर्षक पद्य-रचना पर प्रथम पुरस्कार प्राप्त। कृतियां- शिंजारव (काव्य) व प्रतिकार
कृष्णानंद व्यास (पं.) - जन्म- 1790 ई.। दिल्ली-निवासी (एकांकी)। 'संस्कृत शोधप्रक्रिया एवं वैदिक अध्ययन' नामक एक संगीतज्ञ। इन्होंने 1842 ई. में "रागकल्पद्रुम' नामक आपका हिन्दी प्रबंध सन 1978 में प्रकाशित ।
संगीतविषयक ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ में धूपद, धमार, कृष्णलीलाशुक - पिता-दामोदर। माता-नीली। "ईशानदेव
ख्याल, टप्पा, ठुमरी आदि विषयों की मौलिक जानकारी प्रस्तुत
की गई है। तन्त्रपद्धति' के लेखक ईशानदेव के शिष्य । श्वेतारण्य (दक्षिण कैलास) के मृत्युंजय के भक्त। मुक्तिस्थल निवासी। श्रीकृष्ण मेवाड की महारानी द्वारा इन्हें 'राग-सागर" की उपाधि से के परम उपासक। समय- ई. 11 वीं शती। वृंदावन में मृत्यु।। विभूषित किया गया था। कुछ काल तक ये मेवाड के काव्य के साथ व्याकरण व दर्शन-शास्त्र में भी नैपुण्य प्राप्त । राजकवि भी रहे थे। इनकी अन्य प्रसिद्ध कृति है- सुदर्शनचंपू। कृष्णलीलाशुक की अन्य रचनाएं हैं- सरस्वतीकण्ठाभरण की के. आर. नैयर अलवाये - ई. 20 वीं शती। "अलब्ध-कर्मीय" टीका, पुरुषकार (तत्त्वज्ञानपरक), त्रिभुवनसुभग, नामक प्रहसन के प्रणेता।
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 301
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