________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
त्रिवेदी लक्ष्मीनारायण (साहित्याचार्य) जयपुर निवासी। रचना- पुरुसिकंदरीयम्। विषय- पुरु तथा सिंकदर की ऐतिहासिक घटना अन्य रचनाएं (1) वागीश्वरीस्तवराज (2) ऋतुविलसित (काव्य), (3) स्वर्णेष्टकीय (नाटक), (4) त्रिभण्डघट्टक (भाण), (5) शिशुविलसित (हिन्दी छन्द में संस्कृत काव्य ) । त्रैलोक्यमोहन गुह ( नियोगी) ई. 19-20 वीं शती । "मेघदौत्य" नामक दूतकाव्य के रचयिता । पाबना (बंगाल) के निवासी ।
·
www.kobatirth.org
-
त्र्यंबक पिता श्रीधर रचना- श्रीनिवासकाव्यम् । त्र्यंबक पिता - पद्मनाभ । रचना - श्रीनिवासकाव्यम् दण्डनाथ नारायण भट्ट सरस्वतीकण्ठाभरण की व्याख्या हृदयहारिणी के रचयिता । हृदयहारिणी सहित सरस्वती- कंठाभरण के सम्पादक का मत है कि नारायण भट्ट भोज के सेनापति वा न्यायधीश थे । समय- ई. 14 वीं शती ।
-
दंडी ई. 6 वीं व 7 वीं शती एक प्रसिद्ध संस्कृत महाकवि और काव्यशास्त्रज्ञ । इन्होंने अपने ग्रंथों में महाराष्ट्री प्राकृत की प्रशंसा की है, वैदर्भी रीति को श्रेष्ठ माना है और आंध्र, चोल, कलिंग व विदर्भ-प्रदेशों का विपुल वर्णन किया है। उनके काव्य में कावेरी नदी तथा दाक्षिणात्य रीति-रिवाजों का अनेक स्थानों पर उल्लेख मिलता है। इस आधार पर विद्वानों ने उन्हें दाक्षिणात्य माना है।
दंडी के प्रपितामह दामोदर पितामह मनोरथ, पितावीरदत्त और मां का नाम गौरी था। यह जानकारी उनकी अवंतिसुदरीकथा में मिलती है। तदनुसार कांचीस्थित पल्लव - राजसभा में आप कवि थे। उनके जीवनकाल के बारे में विद्वानों में मतभेद है, किन्तु बहुसंख्य अभ्यासक उन्हें छठी शताब्दी के आसपास का मानते हैं।
दंडी के नाम पर प्रसिद्ध अनेक ग्रंथों में से केवल दो ही उपलब्ध हैं। उनमें से प्रथम काव्यादर्श ग्रंथ है काव्यशास्त्रविषयक, और दूसरा दशकुमारचरित है-गद्य काव्यरूप कथा | स्वतंत्र काव्यचर्चा के प्रारंभिक काल में रचित काव्यादर्श ग्रंथ को संस्कृत साहित्यशास्त्र के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान तथा विद्वज्जनों में आदर प्राप्त है।
वैदर्भी शैली में लिखे गए गद्यषेध दशकुमारचरित का पदलालित्य रसिकों को मुग्ध करने वाला है। इसीलिये "दंडिनः पदलालित्यम्" कह कर संस्कृत के रसिकों ने दण्डी की शैली का गौरव किया है।
किंवदंती की परंपरा के अनुसार इन्होंने ३ प्रबंधों की रचना की थी। इनमें पहला “दशकुमारचरित" है, व दूसरा "काव्यादर्श"। तीसरी रचना के बारे में विद्वानों में मतभेद है। पाश्चात्य पंडित पिशेल का कहना है कि इनकी तीसरी रचना "मृच्छकटिक' ही है, जो भ्रमवश शूद्रक की रचना के नाम से
प्रसिद्ध है। कुछ विव्दानों ने "छंदोविचिति" को इनकी तृतीय कृति माना है, क्यों कि इसका संकेत "काव्यांदर्श" में भी प्राप्त होता है। पर डॉ. कीथ के अनुसार "छंदोविचिति" व "कालपरिच्छेद" दंडी की स्वतंत्र रचना न होकर काव्यादर्श के दो परिच्छेद थे। अधिकांश विद्वान "अवन्तिसुंदरीकथा" को उनकी तीसरी कृति मानते हैं, जो एक अपूर्ण ग्रंथ है। अवन्तिसुंदरी - कथा में दंडी के जीवन चरित के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। इसके नवीन पाठ के अनुसार, भारवि, दंडी के प्रपितामह दामोदर के मित्र थे। दंडी, बाण व हर्षवर्धन के पूर्ववतीं है, और उनका समय 600 ई. के आसपास निश्चित होता है।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अभिव्यंजना शैली के निर्वाह में संतुलन उपस्थित कर दंडी ने संस्कृत में नवीन पद्धति प्रारंभ की है। चरित्र-चित्रण की विशिष्टता, दंडी की निजी विशेषता है। इनके बारे में कई प्रशास्तियां प्राप्त होती हैं यथा
जाते जगति वाल्मीकौ शब्दः कविरिति स्थिरः । व्यासे जाते कवी चैति कवयश्चेति दण्डिनि । ।
1
दत्त उपाध्याय सन् 1275-1310 एक धर्मशास्त्रकार । मिथिला के निवासी इन्होंने धर्मशास्त्र पर आचारादर्श, छान्दोगाडिक, पितृभक्ति, शुद्धिनिर्णय, श्राद्धकल्प, समयप्रदीप, व्रत्तसार आदि अनेक संस्कृत ग्रंथ लिखे हैं। छांदोगाह्निक व श्राध्दकल्प ये ग्रंथ सामवेदी लोगों के लिये है और उनमें नित्यकर्मविषयक जानकारी है। पितृभक्ति व आचारादर्श ग्रंथ हैं यजुर्वेदी लोगों के लिये । पितृभक्ति नामक ग्रंथ के अनेक उद्धरण रुद्रधर ने उपयोग में लिये हैं। समयप्रदीप तथा व्रतसार नामक ग्रंथों में व्रतों, व्रत-तिथियों आदि का विवेचन किया गया है। दत्तक मथुरा के एक ब्राह्मण के पुत्र जन्म पाटलिपुत्र में । माता की मृत्यु से अन्य ब्राह्मणी द्वारा पालन। इसलिये दत्तक । वेश्या व्यवसाय पर प्रबन्ध रचना किन्तु अप्राप्त। केवल दो दत्तकसूत्र, श्यामिलक और ईश्वरदत द्वारा निर्दिष्ट है। गंगवेश के माधववर्मा द्वितीय ने दत्तक-सूत्र पर वृत्ति लिखी (समय ई. 380 ) । केवल दो अध्यायों की छन्दोबद्ध वृत्ति उपलब्ध । संभवतः दत्तक-मत पर आधारित यह लेखक की स्वतंत्र रचना हो । दत्तात्रेय कवि "दत्तात्रेयचम्पू" नामक काव्य के रचयिता । समय 17 वीं शताब्दी का अंतिम चरण । पिता वीरराघव । माता - कुप्पम्मा । गुरु- मीनाक्ष्याचार्य। इन्होंने अपने चम्पू- काव्य में विष्णु के अवतार दत्तात्रेय का वर्णन किया है। दत्तिल एक नाट्याचार्य व संगीताचार्य डॉ. दीक्षित के अनुसार कोहल के बाद दत्तिल (या देतिल) ही सर्वाधिक ख्यात आचार्य रहे हैं। धृवा के सम्बन्ध में दत्तिल के मत का उल्लेख अभिनवगुप्त ने किया है रसार्णवसुधाकर में तथा कुट्टनीमतम् में भी इनका उल्लेख किया गया है। रामकृष्ण कवि ने दत्तिल के "गांधर्व-वेदासार" नामक ग्रंथ का उल्लेख
For Private and Personal Use Only
-
संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथकार खण्ड / 333