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भारद्वाज कुलोदभव नागनाथ के पौत्र व ज्ञानराज के पुत्र थे। द्विजेन्द्रलाल पुरकायस्थ (प्रा.) - रचना अलकामिलनम्। इनका जन्म गोदावरी तटस्थ वार्धा नामक नगर में हुआ था। विषय- मेघदूत का पूरक खण्ड काव्य, यक्षपत्नी का विरह इन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना की है जिनमें "लीलावती' व तथा मिलन। 113 श्लोक। अन्य रचना अद्वैतामृतसारः । "बीजगणित" की टीकाएं भी हैं। नृसिंहचंपू का प्रकाशन कृष्ण द्विवेदगङ्ग - इन्होंने माध्यन्दिन आरण्यक पर मुख्यार्थप्रकाशिका ब्रदर्स द्वारा जालंधर से हुआ है।
नामक व्याख्या लिखी है। वेबर ने उसका संक्षेप अपने शतपथ दोडय्य - आत्रेय गोत्रीय विप्रोत्तम जैन धर्मावलम्बी। पिरियपट्टण ब्राह्मण के संस्करण के अन्त में छापा है। के निवासी। करणिकतिलक देवप्प के पुत्र। गुरु नाम- पण्डित धनंजय (नैघण्टुक) - निघण्टु के प्रणेता होने के कारण मुनि। समय ई. 16 वीं शती। ग्रंथ - भुजबलिचरितम् । इन्हें नैघण्टुक धनंजय भी कहा गया है। पिता- वसुदेव । कालिदास से प्रभावित।
माता- श्रीदेवी। गुरु- दशरथ। विषापहार स्तोत्र के माध्यम से द्या द्विवेद - नीतिमंजरी (अथवा वेदमंजरी) नामक एक अपने पुत्र को सर्प विष से मुक्त किया। समय लगभग ई. नीतिपरक पद्य ग्रंथ के रचयिता। आनंदपुर (गुजरात) के 8 वीं शती। रचनाएं- धनंजयनिघण्टु या अनेकार्थ निवासी तथा शुक्ल यजुर्वेदीय ब्राह्मण। आपने इस ग्रंथ की
नाममाला (246 पद्यों का शब्दकोश), विषापहारस्तात्र (39 रचना, सन 1494 में की। चतुर्विध पुरुषार्थों के संदर्भ में
पद्य)। इस पर अनेक टोकाएं लिखी गई हैं। राघव-पाण्डवीय ऋग्वेद के संदेश को स्पष्ट करने वाला यह ग्रंथ नीतिपरक
नामक द्विसन्धान महाकाव्य सन्धान शैली का सर्वप्रथम महाकाव्य संस्कृत साहित्य में सम्मानित है।
(सर्ग 18)। इसमें आद्यन्त राम और कृष्ण चरितों का निर्वाह, ___ इस ग्रंथ पर स्वयं द्या द्विवेद ने ही संस्कृत में टीका भी
प्रत्येक श्लोक के दो दो अर्थों द्वारा किया गया है। इस लिखी है। इस ग्रंथ में वैदिक साहित्य की नानाविध कथाओं
महाकाव्य की गणना जैनियों के "अपश्चिम रत्नत्रय' में की का परिचय प्राप्त होने के साथ ही उनके नैतिक मूल्यों का
जाती है। धनंजय की इस द्वयर्थी काव्यशैली का अनुकरण दर्शन भी होता है।
आगे के अनेक कवियों ने किया है। द्रविडाचार्य - इन्होंने छांदोग्य उपनिषद् पर बृहद् भाष्य लिखा
धनंजय - "दशरूपक" नामक सुप्रसिद्ध नाट्यशास्त्रीय ग्रंथ है। बृहदारण्यक उपनिषद् पर भी इनका भाष्य होने के उल्लेख
के प्रणेता। समय- 10 वीं सदी का अंतिम चरण। पितामिलते हैं। शंकराचार्य ने इन्हें आगमविद् व संप्रदायविद् कह
विष्णु। भ्राता- धनिक। "दशरूपक" का प्रणयन परमारवंशी कर गौरवान्वित किया है। शंकराचार्यजी ने इनके मतों का
राजा मुंज (वाक्पतिराज द्वितीय) के दरबार में हुआ था। मुंज कहीं पर भी खंडन नहीं किया है। रामानुज संप्रदाय के कतिपय
का शासनकाल 974 ई. से 994 ई. तक है। स्वयं धनंजय ग्रंथों में द्रविडाचार्य नामक एक प्राचीन आचार्य का उल्लेख
ने भी इस तथ्य का स्पष्टीकरण अपने "दशरूपक' नामक मिलता है। कुछ विद्वानों के मतानुसार शंकराचार्यजी द्वारा
ग्रंथ में (4-86) किया है। गौरवान्वित द्रविडाचार्य और ये द्रविडाचार्य भिन्न हैं। कहते हैं
धनंजय व उनके भ्राता धनिक दोनों ही ध्वनि-विरोधी कि इन दूसरे द्रविडाचार्य ने, पांचरात्र सिद्धान्त का अवलंब
आचार्य हैं। ये रस को व्यंग न मानकर भाव्य मानते हैं। करते हुए तमिल भाषा में कुछ ग्रंथों की रचना की। अर्थात् इनके मतानुसार रस व काव्य का संबंध भाव्यभावक
का है। "न रसादीनां काव्येन सह व्यंगव्यंजक भावः किं तर्हि द्रोणसूरि - पाटनसंघ के प्रमुख पदाधिकारी।
भाव्यभावकसंबंधः । काव्यं हि भावक भाव्या रसादयः” (अवलोक समय ई. 11-12 वीं शती। ग्रंथ- ओघनियुक्ति और उसके टीका, दशरूपक (4-30)। लघुभाष्य पर वृत्ति । प्राकृत और संस्कृत उद्धरण भी हैं। आपने
__इन्होंने शांतरस को नाटक के लिये अनुपयुक्त माना है क्यों अभयदेव सूरिकृत टीकाओं का संशोधन भी किया है।
कि शम की अवस्था में व्यक्ति की लौकिक क्रियाएं लुप्त हो द्वारकानाथ - ई. 18 वीं शती का पूर्वार्ध। गोविन्दवल्लभ जाती हैं। अतः उसका अभिनय संभव नहीं है। इनकी यह प्रकरण के रचयिता।
भी मान्यता है कि रस का अनुभव दर्शक या सामाजिक को द्विजेंद्रनाथ शास्त्री - बीसवीं शताब्दी के आर्यसमाजी लेखक होता है। अनुकार्य को नहीं (अ. टी. 4-38) पद्मगुप्त,
और महाकवि। इनके द्वारा रचित ग्रंथ हैं : यजुर्वेदभाष्यम्, ____ धनपाल और हलायुध इनके मित्र थे। ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका प्रकाशः, वेदान्तत्त्वालोचनम्, संस्कृतसाहित्य धनपति सूरि - समय लगभग ई. 1725 ई. एक विद्वान -विमर्शः एवं स्वराज्यविजय (महाकाव्य)। इसका रचनाकाल वैष्णव व्याख्याकार। श्रीमद्भागवत की रास-पंचाध्यायी एवं 1955 ई. है। "स्वराज्यविजय" महाकाव्य की रचना 1960 भ्रमरगीत (10-47) की भागवतगूढार्थदीपिका नामक टीका ई. में इन्होंने पूर्ण की। वृंदावन के आर्यसमाजी गुरुकुल के तथा भगवद्गीता की भाष्योत्कर्ष-दीपिका नामक टीका के आप कुलपति थे। निवास स्थान मेरठ।
प्रणेता। गुरु- बालगोपाल तीर्थ तथा पिता- रामकुमार। आपने
342 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड
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