________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
:
बौद्धावदान - कल्पलता, चारुचर्याशतक, देशोपदेश, दर्प दलन, चतुर्वर्गसंग्रह, कलाविलासनर्ममाला, कविकंठाभरण, औचित्यविचारचर्चा, सुवृत्ततिलक, लोकप्रकाशककोष, नीतिकल्पतरु और व्यासाष्टक । अप्रकाशित रचनाओं के नाम इस प्रकार हैं। नृपाली ( इसका निर्देश राजतरंगिणी व कंठाभरण में है), शशिवंश (महाकाव्य), पद्यकादंबरी, चित्रभारत नाटक, लावण्यमंजरी, कनकजानकी, मुक्तावली, अमृततरंग, (महाकाव्य), पवन- पंचाशिका, विनयवल्ली, मुनिमतमीमांसा, नीतिलता, अवसरसार, ललितरत्नमाला और कविकर्णिका । क्षेमेन्द्र की 3 संदिग्ध रचनाएं भी है हस्तिप्रकाश, स्पंदनिर्णय और स्पेदसंदोह ।
अपनी उक्त 33 कृतियों में इन्होंने अनेकानेक विषयों का विवेचन किया है। व्यंग व हास्योस्पादक रचना के तो ये संस्कृत के यशस्वी प्रयोक्ता हैं। "औचित्यविचारचर्चा" में औचित्य ही काव्य का प्राण है यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया है। इसका एक श्लोक इस प्रकार है :
उचितं प्राहुराचार्यः सदृशं किल यस्य यत् । उचितस्य च यो भावस्तदौचित्यं प्रचक्षते । ।
अर्थात् जो जिसके अनुरूप है वही उचित है, ऐसा आचार्य का कथन है। इस उचित का जो भाव है वही औचित्य कहलाता है।
अपने दीक्षागुरु भागवताचार्य सोमपाद की शिक्षा के कारण शैवमण्डल से परिवृत्त होने पर भी क्षेमेन्द्र परम भागवत थे। खंडदेव मिश्र मीमांसा दर्शन के भाट्टमत के अनुयायी । जन्म काशी में । पिता रुद्रदेव । निधन काल-विक्रम संवत् 1722 | रसगंगाधरकार पंडित जगन्नाथ के पिता पेरुभट्ट के गुरु इन्होंने मीमांसा दर्शन के भाट्ट-मत के इतिहास में "नव्यमत" की स्थापना कर, नवयुग का शुभारंभ किया । जीवन के अंतिम दिनों में इन्होंने संन्यास ग्रहण कर लिया था। संन्यासी होने पर इनका नाम 'श्रीधरेन्द्र यतीन्द्र" हुआ था। इन्होंने 3 उच्चस्तरीय ग्रंथों की रचना की है वे हैं : मीमांसाकौस्तुभ (भाइकौस्तुभ), भाट्टदीपिका व भाइरहस्य । भाट्टकौस्तुभ मीमांसा सूत्रों पर रचित विशद टीका ग्रंथ है। भाट्टदीपिका इनका सर्वोत्तम ग्रंथ है इस पर 3 टीकाएं प्राप्त होती हैं। इस प्रकार आप मीमांसादर्शन के प्रौढ लेखक हैं।
खरनाद आयुर्वेद के एक प्राचीन आचार्य उनका गोत्र भरद्वाज था। पाणिनीय गणपाठ तथा तदुत्तरकालीन चांद्रव्याकरण में इनका उल्लेख है। वैद्यकशास्त्र पर इनकी संहिता, चरक के टीकाकार भट्ट हरिचन्द्र के पूर्वकाल में रची गयी अनेक टीकाग्रंथों में इस संहिता के वचन उदधृत किये गये हैं । खरखण्डीकर दे. खं. (डॉ.) - ई. 20 वीं शती । अहमदनगर निवासी कृतियां सुवचनसन्दोह (गीत संकलन) च्यवनभार्गवीय नाटिका ।
तथा
खांडेकर राघव पण्डित खानदेश (महाराष्ट्र) के निवासी । रचनाएं खेटकृति, पंचांगार्क और पद्धति चन्द्रिका । ये तीनों ग्रंथ
306 / संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथकार खण्ड
ज्योतिषविषयक हैं।
खासनीस, अनन्त विष्णु इन्होंने मूल भावार्थदीपिका (भगवद्गीता की श्रेष्ठ मराठी टीका ज्ञानेश्वरी) का संस्कृत में अनुवाद किया। इसके 6-6 अध्यायों के दो खण्ड, " गीर्वाणज्ञानेश्वरी" के नाम से प्रकाशित हो चुके हैं। श्री. खासनीस जत संस्थान (महाराष्ट्र) के न्यायाधीश थे । खिस्ते, नारायणशास्त्री ( म. म.) जन्म काशी में 1892 ई. में । पिता भैरवपन्त । बचपन में ही शास्त्राध्ययन। 18 वर्ष की आयु में ही दक्षाध्वरध्वंसम (खण्डकाव्य) का लेखन जो "साहित्यसरोवर" (हिन्दी मासिक) में क्रमशः प्रकाशित हुआ । सरस्वती भवन ग्रंथालय काशी के अधिकारी। 'गवर्नमेंट संस्कृत सीरीज माला" में 20 ग्रंथ प्रकाशित किये। पदभार ग्रहण के समय ग्रंथालय में 13,999 ग्रंथ थे, इनकी व्यवहार चतुरता तथा दीर्घ परिश्रम से वह संख्या 60,999 तक पहुंची। इनके शिष्य वर्ग में अमेरिकन डा. नार्मन ब्राउन, डॉ. फ्रेंकलिन एजरटन, डॉ. पोलमेन तथा कुछ जर्मन तथा अंग्रेज संस्कृत पण्डित भी थे। शासकीय संस्कृत महाविद्यालय (काशी) में अनेक वर्षों तक अध्यापन कार्य किया । रचनाएं - दक्षाध्वरध्वंसम्, विद्वच्चरित्पंचकम् (चम्पूकाव्य), अभिज्ञान शाकुन्तलम् की लक्ष्मीटीका, स्वप्नवासवदत्तम् की टीका और दरिद्राणां हृदयम् तथा दिव्यदृष्टि नामक दो उपन्यास । सन् 1944 में आप "अमरभारती" नामक पत्रिका के संपादक बने। इस पत्रिका में आपकी अनेक रचनाएं प्रकाशित हुई। म. म. गंगाधर शास्त्री आपके गुरु थे ।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-
-
खेता समय ई. 15-16 वीं शती । रचना सम्यक्त्वकौमुदी । 3999 श्लोक । आध्यात्मिक ग्रंथ । यह ग्रंथ जहांगीर बादशाह के राज्यकाल में लिखा गया खोत, स्कन्द शंकर ई. 20 वीं शती । नागपुर निवासी । कबड्डी की क्रीडा में अत्यंत निपुण । वाई की प्राज्ञ पाठशाला में संस्कृत का अध्ययन कृतियां मालाभविष्यम्, हा हन्त शारदे, लालावैद्य, ध्रुवावतार और अरघट्टघट ये सभी छात्रोपयोगी लघु नाटिकाएं हैं और उत्सवों के अवसर पर नागपुर तथा मुंबई में मंचित हो चुकी हैं। नागपुर में कृषि विभाग से सेवानिवृत्त हुए।
गंगादास (गंगदास ई. 16 वीं शती पिता गोपालदास ) । - । व्यवसाय से वैद्य बंगाल के निवासी कृतियां छन्दोमंजरी, कविशिक्षा अच्युतचरित, दिनेशचरित और छन्दोगोविन्द । गंगादास "वृत्तिमुक्तावली" के कर्ता । "छन्दोमंजरी" कार गंगादास के भिन्न ।
गंगादेवी ई. 14 वीं शती। "मधुराविजय" (या "वीरकंपराय चरित") नामक ऐतिहासिक महाकाव्य की रचयित्री। विजयनगर के राजा कंपण्णा की महिषी एवं महाराज बुक्क की पुत्रवधू । ई. स. 1361 व 1371 में कंपण्णा ने मदुरई पर आक्रमण
For Private and Personal Use Only