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हरिवर्मदेव के मंत्री भवदेव के मित्र "भवदेवकुलप्रशस्ति" नामक काव्य के रचयिता ।
कवीन्द्र परमानन्द नेवासेकर रचना "शिवभारतम्”। छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन चरित्र अन्यान्य भाषाओं में उपलब्ध है, तथापि इस चरित्र ग्रंथ की ऐतिहासिक प्रामाण्य की दृष्टि से, विशेष योग्यता है। कवि की विद्वत्ता को पहचान कर महाराज ने उन्हें चरित्र लेखन का आदेश दिया था। कवीन्द्र परमानन्द शिवाजी महाराज के साथ आगरा गए थे। अंतिम अवस्था में आपने संन्यास ग्रहण किया था। महाराष्ट्र में लोहगड के पास कवीन्द्र की समाधि विद्यमान है।
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कवीन्द्र परमानन्द 20 वीं शती लक्ष्मणगढ के ऋषिकुल में निवास रचना कर्णार्जुनीयम्।
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कवीन्द्राचार्य सरस्वती इनकी स्तुतियों का संग्रह कवीन्द्रचन्द्रोदय नाम से प्रकाशित है। समय 17 वीं शती । रचनाएं हंससंदेशम् और कवीन्द्रकल्पद्रुमः ।
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कवीश्वर जणु श्रीवकुलभूषण जग्गु अलवार अय्यंगार नाम से प्रसिद्ध पिता-तिरुनारायण मेलकोटे (कर्नाटक) नगर के निवासी। रचना-बाणभट्ट की शैली का अनुसरण करते हुए रचित कथा जयन्तिका । अन्य रचनाएं स्थमन्तकः व अद्भुतांशुकम् (दोनों नाटक) तथा करुणारसतरंगिणी व हयग्रीवस्तुति (दोनों स्तोत्र ) ।
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कश्यप एक वैदिक सूक्तद्रष्टा । अग्नि के शिष्य और विभांडक के गुरु । मरीचि के पुत्र । माता का नाम है कर्दमकन्या कला। ये तार्क्ष्य व अरिष्टनेमि नामों से भी जाने जाते हैं । इनकी गणना सप्तर्षियों और प्रजापतियों में की जाती है। वायुपुराण में इनके कुल की महिमा बताई गई है । दिति व अदिति कश्यप की भार्याएं थीं दिति से दैत्यों और अदिति से आदित्यों अर्थात् देवों की उत्पत्ति हुई। भागवत के अनुसार कश्यप की अरिष्टि नामक अन्य चार भार्याएं बतायी गयी हैं। मनुष्य, पशु, पक्षी, नाग, जलचर आदि सब कश्यप की संतति हैं ।
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इनके सम्बन्ध में एक कथा यह भी बताई जाती है - परशुराम ने समूची पृथ्वी को निःक्षत्रिय बना कर, सरस्वती के तट पर रामतीर्थ में अश्वमेघ यज्ञ किया। कश्यप ही उस यज्ञ के अध्वर्यु थे। यज्ञ की समाप्ति पर दक्षिणा के रूप में परशुराम ने विजित पृथ्वी (मध्यप्रदेश) कश्यप को दे दी। कश्यप ने वह पृथ्वी ब्राह्मणों को सौंप दी और स्वयं वनवास स्वीकार किया।
इसी प्रकार एक और कथा बतायी जाती है जब कश्यप ऋषि ने अर्बुद ( अरावली ) पर्वत पर महान तप किया तब अन्य ऋषियों ने उन्हें गंगा लाने के लिये कहा। कश्यप ने शिव की उपासना कर उनसे गंगा प्राप्त की। जिस स्थान पर उन्हें गंगा मिली वह स्थान कश्यपतीर्थ नामसे विख्यात हुआ । गंगा को काश्यपी भी कहा जाता है। विष्णु भगवान के वाहन गरुड को इन्होंने नारायण माहात्म्य बताया ।
कश्यप के नाम पर कश्यपसंहिता (वैद्यकीय) कश्यपोत्तर संहिता, कश्यपस्मृति व कश्यपसिद्धान्त ये चार ग्रंथ बताएं जाते है । बौधायन ने अपने धर्मसूत्र में कश्यप मत का प्रतिपादन इस प्रकार किया है :
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"क्रीता द्रव्येण या नारी सा न पत्नी विधीयते । सान दैवे न सा पित्र्ये दासीं तां कश्यपोऽब्रवीत् । ।" अर्थात् द्रव्य देकर जिस स्त्री को खरीदा गया, वह पत्नी नहीं हो सकती। उसे दैव पितृकार्य में कोई अधिकार नहीं होता। वह केवल दासी होती है।
कश्यप कुल में छह ऋषि हुए हैं: कश्यप, अवत्सार, नैधुव, रैभ्य, असित व देवल। कश्यप का गोत्र काश्यप है। शांडिल्य गोत्र से इनका मेल नहीं बैठता। जिन ब्राह्मणों को अपने गोत्र का ज्ञान नहीं उनका गोत्र काश्यप ही माना जाता है। कस्तूरी रंगनाथ ई. 19 वीं शती का प्रारम्भ कुलनाम-वाधूल । पिता वीरराघव कवि माता कनकवल्ली गुरु श्रीवत्सर्वशोद्भव वेंकटकृष्णमार्य । अनेक शास्त्रों में पारंगत । बाल-किंगृहपुरी के निवासी । "रघुवीर विजय” नामक समवकार (एक प्रकार का रूपक) के प्रणेता।
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कस्तूरी श्रीनिवास शास्त्री समय ई. स. 1833 से 1917) गोदावरी जिले के (आन्ध्र) कूचिमंचीवरी अग्रहार गांव के निवासी रचनाएं शूलपाणिशतकम्, स्तोत्रकदम्बः, द्वादशमंजरी, शिवानन्दलहरी शिवपादस्तुतिः नृसिंहस्तोत्रम् व समुद्राष्टकम्। कात्यायन ( वैयाकरण) - "अष्टाध्यायी" पर वार्तिक लिखने वाले प्रसिद्ध वैयाकरण जिन्हें "वार्तिककार कात्यायन" के नाम से ख्याति प्राप्त है। श्री. युधिष्ठिर मीमांसक के अनुसार 'महाभाष्य 3 / 2 / 118) में इनका स्थितिकाल वि. पू. 2700 वर्ष है। संस्कृत व्याकरण के मुनित्रय में पाणिनि, कात्यायन एवं पतंजलि का नाम आता है। पाणिनीय व्याकरण को पूर्ण बनाने के लिये ही कात्यायन ने अपने वार्तिकों की रचना की थी जिनमें अष्टाध्यायी के सूत्रों की भांति ही प्रौढता व मौलिकता के दर्शन होते है। इनके वार्तिक, पाणिनीय व्याकरण के महत्त्वपूर्ण अंग हैं जिनके बिना वह अपूर्ण लगता है।
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प्राचीन वाङ्मय में कात्यायन के लिये कई नाम आते हैं। कात्य, कात्यायन, पुनर्वसु, मेधाजित् तथा वररुचि, और कई कात्यायनों का उल्लेख प्राप्त होता है- कात्यायन कौशिक, आंगिरस, भार्गव एवं कात्यायन द्वामुष्यायण । "स्कंदपुराण" के अनुसार इनके पितामह का नाम याज्ञवल्क्य, पिता का नाम - कात्यायन और इनका पूरा नाम वररुचि कात्यायन है। कात्यायन बहुमुखी प्रतिभा से संपन्न व्यक्ति थे। इन्होंने व्याकरण के अतिरिक्त काव्य, नाटक, धर्मशास्त्र व अन्य अनेक विषयों पर स्फुट रूप से लिखा है। इनके ग्रंथों का विवरण इस प्रकार है। स्वर्गारोहण (काव्य) इसका उल्लेख "महाभाष्य" (4/3/110) में "वाररुच" काव्य के रूप में प्राप्त होता है
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 289