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है), 3. चन्द्रप्रभामकौमुदी व्याकरण ( 8000 श्लोक ), 4. लघुत्रिषष्टिचरित्र (5000 श्लोक ), 5. श्रीशान्तिनाथचरित्र (6 सर्ग), नैषधीय काव्य की समस्यापूर्ति, 6. मेघदूत समस्या- पादपूर्ति (130 श्लोक ), 7. देवानंदाभ्युदय महाकाव्य ( माघकाव्य समस्यारूप), 8. शंखेश्वर प्रभुस्तवन, 9. श्रीविजयसेनसूरि -दिग्विजय काव्य-तपागच्छ पट्टावली, 10. मातृकाप्रसाद, 11. सप्तसंधान महाकाव्य (ऋषभदेव, शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर, कृष्ण एवं रामचन्द्र का श्लेषपूर्ण वर्णन ), 12 हस्तसंजीवनी (525 श्लोकों में हस्तरेखाविज्ञान स्वोपज्ञवृत्तिसहित) 13. वर्षप्रबोध, अपरनाम मेषमहोदय (13 अधिकार और 3500 श्लोक ), 14. रमलशास्त्र, 15 सीमंधरस्वामि-स्तवन, 16. पर्वलेखा, 17. भक्तामर टीका, 18. ब्रह्मबोध, 19. मध्यमव्याकरण (3500 श्लोक ), 20. यावच्चकुमार स्वाध्याय, 21. लघुव्याकरण, 22. पार्श्वनाथनामावली, 23. उदयदीपिका, 24. रावणपार्श्वनाथोपक्रम, 25. पंचतीर्थस्तुति (ऋषभनाथ, शांतिनाथ, संभवनाथ, नेमिनाथ तथा पार्श्वनाथ का एकसाथ वर्णन ), 26. भूविश्वेत्यादिकाव्य-विवरणम्, 27. विंशति-यंत्रविधि, 28. पंचमीकथा, 29. धर्ममंजूषा, 30 अर्जुनपताका और 31. विजयपताका ।
उपेन्द्रनाथ सेन- ई. 20 वीं शती । कलकत्ता- निवासी । कृतियां पल्ली- छवि, मकरन्दिका, कुन्दमाला (उपन्यास) तथा आयुर्वेद संग्रह।
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बेक कुमारिल भट्ट के शिष्य भवभूति एवं उंबेक दोनों एक ही व्यक्ति के नाम माने जाते हैं। कुमारिल के 'श्लोकवार्तिक' की एक कारिका पर उन्होंने टीका लिखी है। चित्सुखाचार्य विरचित चित्सुखी के अनुसार उंबेक एवं भवभूति अलग-अलग व्यक्ति हैं। इनके द्वारा श्लोकवार्तिक पर लिखी तात्पर्य - टीका एवं मंडन मिश्र - रचित भावनाविवेक पर लिखी टीका उपलब्ध है। उभयकुशल- ज्योतिष शास्त्र के एक आचार्य। फल- ज्योतिष के मर्मज्ञ । समय- ई. 17 वीं शती । ये मुहूर्त व जातक दोनों ही अंगों के पण्डित थे। 'विवाहपटल' व 'चमत्कार - चिंतामणि' इनके प्रसिद्ध ग्रंथ है, और दोनों ही ग्रंथों का संबंध फल ज्योतिष से है।
उमापति- मिथिला निवासी। 'पारिजातक-हरण' नाटक के रचयिता ।
उमापति (उमापतिधर ) - ई. 12 वीं शती । बंगाल के राजा लक्ष्मणसेन की कवि-सभा के पंचरलों में से एक। संभवतः मंत्री । बल्लालसेन के पिता विजयसेन के, देवपारा - शिलालेख के लेखक वेंकट कविसार्वभौम के मतानुसार 'कृष्णचरित'काव्य के लेखक ।
उमापति शर्मा द्विवेद 'कविपति' जन्म सन् 1894 में। जन्मग्राम - उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले का पकड़ी नामक ग्राम । आपने कई ग्रंथों की रचना की है, जिनमें 'शिवस्तुति' व
284 / संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथकार खण्ड
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'वीरविंशतिका' विशेष प्रसिद्ध हैं। द्वितीय ग्रंथ में हनुमानजी की स्तुति है । 'पारिजात - हरण' आपका सर्वाधिक प्रौढ महाकाव्य है जिसका प्रकाशन 1958 ई. में हुआ है । उमापति शिवार्य - चिदम्बरम् के निवासी । समय- ई. 12वीं शती से पूर्व । रचना - औमापत्यम् (संगीतविषयक ग्रंथ) । उमास्वाति (उमास्वामी ) - इनका जन्म स्थान मगध है। श्रुतपरम्परा के जैनाचार्य अपर नाम गृद्धपिच्छाचार्य दक्षिण भारतीय कुन्दकुन्दान्वय के अनुयायी। समय- ई. प्रथम शताब्दी का अन्तिम भाग। इनके द्वारा प्रणीत ग्रंथ है तत्त्वार्थ अथवा तत्त्वार्थसूत्र रचना का हेतु सिद्धव्य नामक श्वेताम्बरीय विद्वान द्वारा लिखित सूत्र 'दर्शन-ज्ञान-चरित्राणि मोक्षमार्ग' के प्रारंभ में सम्यक् पद का योग । 'आत्मा का हित क्या है - इस प्रश्न के उत्तर में तत्त्वार्थ सूत्र की रचना की गई है। श्रुतसागर द्वारा सूरि-तत्त्वार्थवृत्ति के प्रारंभ में प्रश्नकर्ता के रूप में द्वैपायक नामका उल्लेख है।
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उमास्वाति ने विक्रम संवत् के प्रारंभ में 'तत्त्वार्थसूत्र' का प्रणयन किया था। अपने इस ग्रंथ पर इन्होंने स्वयं ही भाष्य लिखा है। इसका महत्त्व दोनों ही जैन संप्रदायों (श्वेतांबर व दिगंबर) में समान है। दिगंबर जैनी इन्हें उमास्वामी कहते हैं। उमेश गुप्त ई. 19 वीं शती 'वैद्यक-शब्द-सिन्धु' के कर्ता। बंगाली ।
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उवट - समय ई. 12 वीं शती के आसपास । शुक्लयजुर्वेद माध्यन्दिन संहिता के प्रसिद्ध भाष्यकार । उवटाचार्य ने यजुर्वेद संहिता - भाष्य के अन्त में अपने काल आदि का संकेत दिया है। तदनुसार भोज राजा के समय अवन्तीपुर में रहते हुए वाचार्य ने भाष्य-रचना की, यह बात स्पष्ट है। इनके पिता का नाम वज्रट था । उवटाचार्य के अन्य ग्रंथ हैं- (1) ऋ - प्रातिशास्त्र भाष्य, (2) यजुः प्रातिशाख्यभाष्य और (3) ऋसर्वानुक्रमणी भाष्य तीसरे ग्रंथ के लेखक यही उपाचार्यजी हैं या अन्य, इस विषय में एकमत नहीं है। उसी तरह उवटाचार्यजी के ऋग्भाष्य-रचना के विषय में भी मतभेद है । यह बाद तो निःसंदिग्ध है कि उवटाचार्य का भाष्य शत्रुघ्न, महीधर आदि माध्यंदिन वेद भाष्यकारों का आधार भाष्य रहा । उवटाचार्यजी का भाष्य संक्षिप्त और मार्मिक है। महीधराचार्य ने, उसी का अपनी शैली के अनुसार विवरण किया है। उवंटाचार्य ज्ञान-कर्म-समुच्चयवाद के समर्थक थे। इससे भाष्यकार की स्वतंत्र भूमिका और प्रतिभा का परिचय मिलता है। उवट-भाष्य का नया संस्करण आवश्यक है, क्यों कि उपलब्ध संस्करणों में कई स्थानों पर महीधराचार्य का भाष्य ही उवटाचार्य के नाम पर दिया गया है।
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ऋद्धिनाथ झा - ई. 20 वीं शती। जन्म- शारदापुर (मिथिला) में। कुलनाम सकरादि । राजकुमार के शिक्षक। राजमाता को पुराण सुनाते थे। साहित्याचार्य की उपाधि प्राप्त महारानी