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10) भारतपारिजात : ले. स्वामी भगवदाचार्य। विषय-महात्मा गांधी का चरित्र । 27 सर्ग (सन 1980)
इस प्रणाली में जवाहरलाल नेहरु, सुभाषचंद्र बोस, राष्ट्रपति राजेन्द्रप्रसाद, लोकमान्य तिलक, इत्यादि आधुनिक राष्ट्रनेताओं के चरित्रों पर आधारित महाकाव्यों का अन्तर्भाव हो सकता है।
कालिदास के मेघदूत से प्रवर्तित दूतकाव्य की परंपरा को अक्षुण्ण रखनेवाले आधुनिक दूतकाव्यों की संख्या काफी बड़ी है। आधुनिक दूतकाव्यों में हंसदूत, पवनदूत, चंद्रदूत, हनुमद्दूत, गोपीदूत, तुलसीदूत, पिकदूत, काकदूत, भ्रमरदूत, पान्थदूत तथा कोकिलसंदेश, कीरसंदेश, हंससंदेश, गरुडसंदेश, मयूरसंदेश, मानससंदेश इत्यादि काव्यों का निर्देश मात्र करना पर्याप्त है।
दूतकाव्य के समान शतक, स्तोत्र इत्यादि खण्डकाव्यों की परंपरा को अक्षुण्ण रखते हुए, उसमें विषयों की नवीनता निर्माण करने का प्रयास दिखाई देता है। बल्लवदूत (ले. घटकनाथ शर्मा) मुद्गरदूत (ले. रामावतार शर्मा) पलांडुशतक (ले. श्रीकृष्णराम शर्मा), होलिक शतक (ले. विश्वेश्वर) सम्मार्जनीशतक (ले. अनन्ताचार), कलिविडम्बन (ले. नीलकण्ठ दीक्षित), कलियुगाचार्यस्तोत्र, चहागीता, कॉफी-शतकम् इत्यादि काव्यों के नामों से ही पता चल सकता है कि आधुनिक संस्कृत साहित्यिक हास्य रस की निष्पत्ति करने में कितना रस लेने लगे हैं। हास्य रस के साथ ही राष्ट्रभक्ति का परिषोण करनेवाले, भारतीमनोरथ (ले. एम. के. ताताचार्य) भारतीशतक (ले. महादेव पाण्डेय) भारतीगीता (ले. व्ही. आर. लक्ष्मी अम्मल) भारतीस्तवः (ले. कपाली शास्त्री) इत्यादि अनेक स्तोत्रात्मक खंडकाव्य आधुनिक संस्कृत साहित्य की विशेषता दिखाते हैं। राष्ट्रभक्ति का आवेश आधुनिक महाकाव्यों तथा नाटकों में भी यथास्थान भरपूर मात्रा में दिखाई देता है। कई महाकाव्यों के सर्ग इस राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत हैं जिसका अभाव प्राचीन महाकाव्यों में था।
जयदेव के गीतगोविंद के प्रभाव से एक अभिनवकाव्य संप्रदाय 12 वीं शती से संस्कृत साहित्य क्षेत्र में प्रवर्तित हुआ। गीतराघव (ले. प्रभाकर) गीतगिरीश (ले. रामकवि) गीतगौरीपति (ले. चंद्रशेखर सरस्वती), गीतरघुनन्दन (ले. प्रियदास) शहाजिगीतविलास (ले. ढुंढिराज), कृष्णलीलातरंगिणी, (ले. नारायणतीर्थ); तीर्थभारतम्, श्रीरामसंगीतिका और श्रीकृष्णसंगीतिका (ले. श्री. भा. वर्णेकर) इत्यादि अनेक गीतिकाव्य आधुनिक काल में निर्माण हुए जिन्होंने गीतगोविंद की परंपरा सतत प्रवाहित रखी। अनेक आधुनिक नाटकों में श्लोकों के स्थान पर गीतिकाव्यों का प्रयोग शुरु हुआ है। कोचीन के कवि वारवूर कृष्ण मेनन ने बाणभट्ट की कादम्बरी का गेय कविता में रूपांतर किया। जयपुर के साहित्याचार्य भट् मथुरानाथशास्त्री (मंजुनाथ) ने अपने साहित्य वैभव में हिंदी और उर्दू भाषा के गझल, ठुमरी, दोहा, चौपाई, कवित्त, सवैया इत्यादि गेय छदों में भरपूर काव्य रचना की। इन गेय काव्यों के विषय भी रेडिओ, हवाई जहाज, मोटरगाडी जैसे आधुनिक हैं।
पाश्चात्य विद्वानों के समान विशिष्ट शास्त्रीय विषयों पर गद्य प्रबन्धों की रचना अर्वाचीन संस्कृत लेखकों ने की है। आधुनिक पद्धति के निबंध वाङ्मय में विशेषतया उल्लेखनीय ग्रंथ हैं :निबंध लेखक
विषय कविकाव्यविचार राजगोपाल चक्रवर्ती
साहित्यशास्त्र हौत्रध्वान्तीदिवाकर कृष्णशास्त्री धुले
धर्मशास्त्र बालविवाहहानिप्रकाश
रामस्वरुप परिणयमीमांसा
नरेश शास्त्री उद्धारचंद्रिका
काशीचंद्र मानवधर्मसार
डॉ. भगवानदास ख्रिस्तधर्मकौमुदी-समालोचना
वज्रलाल मुखोपाध्याय सत्यार्थप्रकाश
दयानंद सरस्वती शांकरभाष्यगांभीर्य निर्णयखंडन गौरीनाथ शास्त्री .
तत्त्वज्ञान भाष्यगांभीर्यनिर्णयमंडन
वेंकटराघव शास्त्री नूतनगीतावैचित्र्यविलास
गीतादास पाश्चात्यशास्त्रसार
आप्पाशास्त्री राशिवडेकर क्षेत्रतत्त्वदीपिका इलातुर रामस्वामी
भूमिती सनातनभौतिकविज्ञान
वेंकटरमणय्या नेत्रचिकित्सा डॉ. बालकृष्ण शिवगम मुंजे
शारीर विज्ञान प्रत्यक्षशारीर
गणनाथ सेन
विज्ञान
264 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड
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