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प्रचलित नहीं हुए थे। अर्वाचीन संस्कृत साहित्यिकों ने परस्परागत विषयों पर आधारित रामायणसारसंग्रह (ले. अप्पय्य दीक्षित), रामायणकाव्य (ले. मधुरवाणी), रामयमकार्णव (ले. व्यंकटेश), रामविलासकाव्य (ले. रामचंद्र तर्कवागीश), राघवीय (ले. रामपाणिवाद), सीतास्वयंवर (ले. काशीनाथ) इत्यादि रामचरित्रविषयक अनेक काव्यग्रंथों की निर्मिति की अथवा पारिजातहरण, रुक्मिणीहरण, कंसवध (ले. राजचूडामणि) माधवमहोत्सव (ले. सूर्यनारायण), विक्रमभारत (ले. श्रीधर विद्यालंकार), पांडवविजय (ले. हेमचंद्राचार्य) इत्यादि कृष्णचरित्र से संबंधित काव्यों की भी रचना की। उसी प्रकार इन पौराणिक विषयों पर आधारित नाटक, प्रकरण भाण, चम्पू जैसे अन्य प्रकारों के ग्रंथ भी संस्कृत साहित्यिकों ने पर्याप्त मात्रा में निर्माण किये। अर्वाचीन प्रादेशिक भाषीय साहित्य का यह एक वैशिष्ट्य माना जा सकता है। 19 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक प्रादेशिक भाषीय साहित्यों में नाट्य वाङ्मय की निर्मिती नहीं हुई थी। असमिया बांगला जैसी कुछ भाषाओं में नाट्य वाङ्मय की परंपरा दिखाई देती है, परंतु उसका स्वरूप संस्कृतनिष्ठ ही है।
वीरचरितों पर आधारित महाकाव्यों की निर्मिति करने की परंपरा संस्कृत साहित्य के क्षेत्र में अतिप्राचीन काल से निरंतर चलती रही। उस परंपरा को भी अर्वाचीन संस्कृत साहित्यिकों ने अक्षुण्ण रखी है। छत्रपति शिवाजी महाराज के वीरचरित्र एवं पुण्यचारित्र्य ने अनेक प्रतिभाशाली लेखकों को प्रेरणा दी, जिस के फलस्वरूप कवीन्द्र परमानन्दकृत शिवभारतम् (17 वीं शती), कालिदास विद्याविनोदकृत शिवचरितम् (19 वीं शती) आधुनिक बाणभट्ट अंबिकादत्त व्यास कृत शिवराजविजय (गद्यकाव्य), व्ही. व्ही. सोवनीकृत शिवावतारप्रबन्ध, डॉ. श्रीधर भास्कर वर्णेकर विरचित 68 सर्गों का शिवराज्योदय (प्रस्तुत महाकाव्य को सन 1974 में साहित्य अकादमी का पुरस्कार प्राप्त हुआ) डॉ. त्रिपाठीकृत क्षत्रपतिचरित इत्यादि विविध महाकाव्य आधुनिक काल में निर्माण हुए। इसी परंपरा में रुद्रकविकृत जहांगीरचरित (17 वीं शती) रामय्याकृत गझनवीमहंमदचरित (19 वीं शती), पांडुरंगकवि कृत विजयपुरकथा (19 वीं शती), और छज्जूरामकृत सुलतानचरित जैसे मुस्लिम राजाओं के चरित्र पर आधारित कुछ काव्य भी निर्माण हुए।।
अंग्रेजों के प्रशासन काल में, व्हिक्टोरियाचरितसंग्रह (ले. व्रजेन्द्रनाथ शास्त्री, सन 1887), व्हिक्टोरियामाहात्म्य (ले. राजा शौरीन्द्रमोहन टागोर, सन 1897) प्रीतिकुसुमांजलि (ले. काशी के कालीपथ पंडित- 1897 (विजयिनीकाव्य) ले. श्रीश्वर विद्यालंकार भट्टाचार्य- 1902) आंग्लसाम्राज्य (ले. राजवर्मा), आंग्लजर्मनीयुद्धविवरण (ले. तिरुमल बुक्कपट्टनं श्रीनिवासाचार्य- 1924), समरशान्तिमहोत्सव (ले. पी. व्ही. रामचंद्र आचार्य- 1924), यदुवृद्ध (एडवर्ड) सौहार्द (ले. गोपाल अयंगार- 1937), इत्यादि काव्य महारानी व्हिक्टोरिया, सप्तम एडवर्ड, पंचमजार्ज जैसे आंग्ल नृपतियों के संबंध में निर्माण हुए।
__ महाकाव्यों के समान स्तोत्रकाव्य, शतककाव्य, दूतकाव्य, गीतिकाव्य, गद्यकाव्य, चम्पू इत्यादि ललित वाङ्मय के विविध प्राचीन प्रकार संस्कृत साहित्य के अर्वाचीन सेवकों ने अखंडित चालू रखे। इनके विषय भी प्रायः गतानुगतिक स्वरूप के ही दिखाई देते हैं। इन लेखकों ने प्राचीन वाङ्मय परंपरा अक्षुण्ण रखी इसलिए उनकी विशेष प्रशंसा करने की अथवा उन्होंने गतानुगतिक रूढ विषयों से बाह्य विषयों का परामर्श नहीं लिया, इस कारण उनकी निन्दा करने की भी आवश्यकता नहीं है। संस्कृत साहित्य के प्रतिकूल कालखंड में भी सुर-भारती का प्रवाह इन महानुभावों ने अखंडित रखा यही इनका कार्य है। इस काल में निर्मित हिंदी, मराठी, बंगाली, प्रभृति प्रादेशिक भाषाओं के साहित्यिकों के विषय में भी इसी प्रकार का अभिप्राय दिया जा सकता है।
भारत के साहित्य क्षेत्र में सन 1857 की राज्यक्रांति के बाद कुछ विशेष प्रकार का परिवर्तन प्रारंभ हुआ। अंग्रेजी राजसत्ता की प्रेरणा से स्थापित आधुनिक विश्वविद्यालयों में शिक्षा दीक्षा पाये हुए नवशिक्षित साहित्यिकों ने, पाश्चात्य साहित्य का वैशिष्ट अपने निजी भाषा के साहित्य में लाने का प्रयत्न शुरु किया। इस प्रक्रिया के कारण महाकाव्यों तथा अन्य काव्य प्रकारों में पौराणिक विषयों के अतिरिक्त विषयों का अन्तर्भाव होने लगा। राजस्तुति परक काव्यों में मुसलमान एवं अंग्रेज राजाओं के संबंध में लिखे गए कुछ काव्यों का निर्देश उपर हुआ है। उन विषयों के अतिरिक्त अश्वघोष के बुद्धिचरित की परम्परा में जिनका अन्तर्भाव हो सकेगा ऐसे महापुरुष विषयक महाकाव्य आधुनिक काल में निर्माण हुए, जिनमें निम्नलिखित काव्य विशेष उल्लेखनीय हैं :1) यशोधरामहाकाव्य : 20 सर्ग, लेखक ओगटी परीक्षित शर्मा। (सन 1976) 2) क्रिस्तुभागवतम् : 33 सर्ग, लेखक पी. सी. देवासिया (सन 1976 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त) 3) येशुसौरभ : ले. सोमवर्मराजा। 4) श्रीमदाद्यशंकर-जन्मकालकाव्य : लेखक शिवदास बालिगे (सन 1954) 5) श्रीगुरुगोविंदसिंहचरित : लेखक डॉ. सत्यव्रत। (सन 1967 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त)। 6) श्रीनारायणविजय : लेखक के. बलराम पणिक्क। विषय-केरल के आधुनिक संत नारायण गुरु, 21 सर्ग (सन 1971) 7) त्यागराजचरित : ले. सुंदरेशशर्मा (सन 1979) 8) दीक्षितेन्द्रचरित : ले. डॉ. व्ही. राघवन् 9) विश्वभानु : ले. नारायण पिल्ले, विषय-स्वामी विवेकानंदचरित्र। 21 सर्ग (सन 1980)
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 263
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