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गुजरात में वैष्णव विचार धारा का प्रचार रामानुज तथा वल्लभाचार्य के संप्रदाय के द्वारा शुरु हुआ। मीराबाई के कृष्णभक्तिमय गीतों की संख्या 250 से अधिक नहीं है। तथापि उन गीतों ने राजस्थान और गुजरात में कृष्णभक्ति का प्रचार अत्यधिक मात्रा में किया। 15 वीं शती में संत नरसी मेहता का उदय गुजरात में हुआ। नरसी मेहता की कविता में कृष्णभक्ति का परमोच्च स्वरूप तथा उच्च कोटि के तात्त्विक विचार व्यक्त हुए, जिनका प्रभाव गुजरात में विशेष पडा और उनके पश्चात् मालन, वस्तों, प्रेमानंद, सामलभट, दयाराम आदि भक्तिमार्गी कवियों द्वारा वैष्णव मत का भरपूर पोषण हुआ। इन सभी वैष्णव कवियों के कवित्व का प्रभाव गुजराती साहित्य में दिखाई देता है। इसी प्रकार कर्नाटक में मध्वसंप्रदाय की वैष्णवी विचारधारा का प्रसार महान् संत कवि एवं कर्नाटकी संगीत के पितामह "भक्त पुरंदरदास" (ई. 15-16 वीं शती) के भक्तिकाव्यों द्वारा हुआ। पुरंदरदास का काव्यसंग्रह, उन के गुरु व्यासरायतीर्थ ने “पुरंदरोपनिषद्" नाम से सम्मानित किया है।
संस्कृत वाङ्मय कोश- ग्रंथकार खण्ड / 187
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