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वल्लीसहाय
ययाति देवयानीचरित
भट्ट श्रीनारायणशास्त्री
ययातितरुणानंद
शर्मिष्ठाविजय
चार अंकी
(कुंभकोणंनिवासी)
इसी लेखक के कालिविधूनन ( दशांकी), शूरमयूर ( सप्तांकी) और जैत्रजैवातृक ( सप्तांकी) ये तीन नाटक प्रसिद्ध हैं।
शठकोपयति (16 वीं शती में
अहोबिल मठ के आचार्य)
वेंकटेश्वर
अभी तक जिन विविध प्रकार के पौराणिक नाटकों का परिचय दिया है उनमें से बहुतांश नाटकों का विषय स्वयंवर या विवाह ही है। रस की, और उसमें भी शृंगार रस की प्रधानता, नाटकों में श्लाघनीय मानी जाने के कारण, नायक नायिका संबंध में संभाव्य रति स्थायी भाव के विभाव अनुभाव और व्यभिचारभाव का संयोग करने में प्रायः सभी संस्कृत नाटककारों में अपनी प्रतिभा का विनियोग किया है। इसी एकमात्र उद्दिष्ट से रामायण, महाभारत तथा अन्य पुराणों तथा बृहत्कथा में उपलब्ध विवाह एवं स्वयंवर विषयक आख्यान और उपाख्यान नाटककारों ने खोज खोज कर निकाले और उनके आधार पर अपनी प्रतिभा को पल्लवित किया है। इनके अतिरिक्त भी अनेक कल्पित विवाह विषयक कथाएं, शृंगार रस की निष्पत्ति के लिए नाट्यरूप में चित्रित की गई हैं
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नाटककार
अप्पानाथ
(तंजौरवासी 18 वीं शती)
अप्पाशास्त्री
श्रीनिवासदास
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नाटक
कांतिमतीपरिणय
लवलीपरिणय
मरकतवल्लीपरिणय
कल्याणीपरिणय
सौगन्धिका परिणय सेवंतिकापरिणय
वासंतिकापरिणय
नीलापरिणय
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234 / संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथकार खण्ड
विशेष पंचांकी
14 ऐतिहासिक नाटक
प्राचीन लेखकों को आज के समान इतिहास विषयक सामग्री उपलब्ध नहीं थी। अंग्रेजी राज की स्थापना के पश्चात् जितने इतिहास विषयक प्रबंध और चरित्र निर्माण हुए, उसके शतांश भी प्राचीन साहित्यिकों को उपलब्ध नहीं थे। भारत के विविध प्रदेशों में हुई महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं का भी ज्ञान अच्छे अच्छे विद्वानों को नहीं था 19 वीं शताब्दी तक भारत में ऐतिहासिक ज्ञान की दृष्टि से तमोयुग रहा ऐसा कहने में अत्युक्ति नहीं होगी और विद्वानों का अनादर भी नहीं होगा। इसी अभाव के कारण 90 प्रतिशत नाटक और अन्य साहित्य, पौराणिक आख्यान, उपाख्यानों पर आधारित रहा। इस परिस्थिति में भी कुछ ऐतिहासिक नाटक लिखने का कार्य जिन साहित्यिकों ने किया उन्हें सर्वथा अभिनन्दनीय मानना योग्य होगा । ऐतिहासिक नाटकों में विशेष उल्लेखनीय नाटक; प्रतापरुद्रकल्याण वरंगळ (आन्ध्र) के सुप्रसिद्ध काकतीय वंश के राजा प्रतापरुद्र (ई. 13 वीं शती) के सम्मानार्थ यह पंचांकी नाटक लिखा गया। इसके लेखक विद्यानाथ प्रतापरुद्र के आश्रित कवि थे ।
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गंगादास प्रतापविलास विजयनगर के राजा मल्लिकार्जुन के मित्र चंपकपुर (चापनेर) के राजा गंगादास भूवल्लभ प्रतापदेव के आश्रित कवि गंगाधर ने "गंगादास - प्रताप विलास” नामक वीररसपूर्ण नाटक लिखा। इस नाटक का विषय है। गंगादास राजा का गुजरात के यवन राजा महंमद (दूसरा) (1443-52 ) से हुआ युद्ध । कवि स्वयं गुजराती थे।
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नन्दिघोषविजय (अथवा कमलाविलास भगवान विष्णु की कथा से संबंधित प्रस्तुत नाटक में लेखक शिवनारायणदास
ने अपने आश्रयदाता गजपतिराज नरसिंहदेव (17 वीं शती का मध्य) का ऐतिहासिक पात्र प्रविष्ट किया है।
शृंगारमंजरी शाहराज तंजौर के नृपति शहाजी भोसले (17 वीं शती का उत्तरार्ध) के आश्रित पेरिअप्पा कवि ने अपने आश्रयदाता के सम्मानार्थ प्रस्तुत शृंगारप्रधान नाटक लिखा है।
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भोजराज सत्चरित वेदान्त वागीश भट्टाचार्य ने अपने आश्रयदाता, (जो हरिद्वार से मथुरा तक के वृन्दावती या वृन्दावनी नामक प्रदेश के राजा थे ) सूरिजान पुत्र भोजराज के सम्मानार्थ यह दो अंकों का नाटक लिखा है।