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तन्त्रोपाख्यान : ले. वसुभाग। सिंहासन-द्वात्रिंशिका : ले. क्षेमशंकर मुनि। शुकसप्तति : ले. चिन्तामणि भट्ट (ई. 12 वीं शती के पूर्व) शुकद्वासप्ततिका (या रसमंजरी) ले. रत्नसुन्दरसूरि । ई. 17 वीं शती। कथारत्नाकर : ले. हैमविजयमणि। 256 कथाओं का संग्रह। बृहत्कथाकोश : ले. हरिषेणाचार्य। 157 कथाओं का संग्रह। ई. 10 वीं शती। प्रबन्धचिन्तामणि : ले. मेरुतुंगाचार्य। ई. 14 वीं शती। प्रबन्धकोश (चतुर्विंशति प्रबंध) : ले. राजशेखर। ई. 14 वीं शती। विविधतीर्थकल्प : ले. जिनप्रभसूरि।। भोजप्रबन्ध : ले. बल्लालसेन। ई. 16 वीं शती। उपस्थितिभवप्रपंच कथा : ले. सिद्धर्षि। ई. 10 वीं शती। प्रबोधचिन्तामणि : ले. जयशेखरसूरि। ई. 15 वीं शती। मदनपराजय : ले. नागदेव। ई. 14 वीं शती। कालकाचार्यकथा : इस नाम के ग्रंथ, महेन्द्र, देवेन्द्र, प्रभाचन्द्र, विनयचंद्र, शुभशीलगणि, जिनचंद्र आदि अनेक जैन विद्वानों ने लिखे है। उत्तमचरित्र कथानक चम्पकश्रेष्ठिकथानक : ले. जिनकीर्तिसूरि। ई. 15 वीं शती। पालगोपाल कथानक : सम्यक्त्वकौमुदी : ले. अज्ञात कथाकोश : ले. अज्ञात पंचशतीप्रबोधसंबंध : ले. शुभशीलगणि। ई. 15 वीं शती। 500 से अधिक कथाओं का संग्रह । अंतरकथासंग्रह : या विनोदकथा संग्रह। ले. राजशेखर। एक सौ कथाओं का संग्रह । कथामहोदधि : ले. सोमचंद्र । कथारत्नाकर : ले. हेमविजय। इ. 15 वीं शती। इसमें 258 कथाएं हैं। उपदेशमाला प्रकरण : ले. धर्मदास गणि। इसमें 542 गाथाओं में दृष्टान्त स्वरूप 310 कथानकों का संग्रह है। धमोपदेशमालाविवरण : ले. जयसिंह सूरि। ई. 10 वीं सदी। इसमें 156 कथाएं समाविष्ट हैं। कथानककोश (कथाकोश) : ले. जिनेश्वर सूरि। ई. 16 वीं शती। शुभशीलगणि ने प्रभावकथा, पुण्यधननृपकथा, पुण्यसारकथा, शुकराजकथा, जावडकथा आदि अनेक प्रबन्ध लिखे हैं। पंचशतीप्रबोधसंबंध : ले. शुभशील गणि। ई. 16 वीं शती। इस कथाकोश में 4 अधिकारों में ऐतिहासिक धार्मिक एवं लौकिक विषयों से संबंधित 625 कथाओं का संग्रह हुआ है। कथासमास : ले. जिनभद्र मुनि। ई. 13 वीं शती। कथार्णव : ले. पद्ममंदिर गणि। ई. 16 वीं शती। श्लोक 75901 कथारत्नाकर : (या कथारत्नसागर) : ले. नरचन्द्र सूरि । ई. 13 वीं शती। पुण्याश्रय-कथाकोश : ले. रामचंद्र मुमुक्षु। ई. 12 वीं शती। इसमें कुल मिला कर 56 कथाएं हैं जो रविषेणकृत पद्यपुराण, जिनसेनकृत हरिवंशपुराण, हरिषेणकृत बृहत्कथाकोश और गुणभद्रकृत महापुराण से ली गई हैं। धर्माभ्युदय (या संघपतिचरित्र) ले. उदयप्रभसूरि । सर्ग 15। श्लोक 52001 धर्मकल्पद्रुम : ले. उदयधर्म। ई. 15 वीं शती के बाद । श्लोक 4814। 9 पल्लवों में विभक्त । दानप्रकाश : ले. कनककुशलगणि। ई. 17 वीं शती। 8 प्रकाशों में विविध प्रकार के दानों की कथाएं संगृहित हैं। प्रस्तुत लेखक ने शुक्ल पंचमी कथा, सुरप्रियमुनिकथा, रोहिण्यशोकचन्द्रनृपकथा अक्षयतृतीया कथा, मृगसुन्दरी कथा इत्यादि कथाप्रबन्ध लिखे हैं। उपदेशप्रासाद : ले. विजयलक्ष्मी। गुरु विजयसौभाग्य सूरि। ई. 19 वीं शती। सूरत में स्वर्गवास हुआ। इस प्रबंध में कुल मिलाकर 348 कथाएं दी गई हैं।
244 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड
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