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7) नारद - 25 " 11) लिंग - 11"
15) कूर्म - 17 " 8) मार्कण्डेय - 41 " 12) वराह - 24 "
16) मत्स्य - 14 " 9) अग्नि - 14,500 13) स्कंद - 81,100
17) गरुड - 19 " 10) ब्रह्मवैवर्त - 18 " 14) वामन - 10 "
18) ब्रह्माण्ड - 12 " पुराणों की श्लोकसंख्या के संबंध में विद्वानों में भतभेद है। तथापि 18 पुराणों की संख्या कुल मिलाकर 40 लक्ष 20 हजार से अधिक मानी जाती है। देवी भागवत में 18 उपपुराणों के नाम दिये हैं। प्राचीनता अथवा मौलिकता के विचार से उपपुराणों का भी महत्त्व पुराणों के समान है। उपपुराणों के नाम हैं : सनत्कुमार, नरसिंह, नन्दी, शिवधर्म, दुर्वासा, नारदीय, कपिल, मानव, उषनस् ब्रह्माण्ड, वरुण, कालिका, वसिष्ठ, लिंग, महेश्वर, साम्ब, सौर, पराशर, मारीच और भार्गव । इनके अतिरिक्त अन्य पुराणों के भी नाम मिलते है जैसे आदि, आदित्य, मुद्गल, कल्कि, देवीभागवत, बृहद्धर्म, परानन्द, पशुपति, हरिवंश तथा विष्णुधर्मोत्तर इ.
जैन वाङ्मय में जिन ग्रंथों में जैन पंथी महापुरुषों के चरित्र वर्णित हैं उन्हें पुराण कहा जाता है। 24 तीर्थकर, 12 चक्रवर्ती, 9 बलदेव, 9 वासुदेव, 9 प्रतिवासुदेव इन महापुरुषों को जैन परंपरा में "शलाकापुरुष' कहते हैं। इन के चरित्र जिन ग्रंथों में वर्णित हैं, उनकी संख्या है 24। इन चौवीस ग्रंथों को दिगम्बर लोग "पुराण' कहते है जब कि श्वेताम्बर समाज में उन्हीं को चरित्र कहा जाता है। जैनपुराणों के नाम हैं : आदिपुराण, अजितनाथ०, संभवनाथ०, अभिनंद०, सुमतिनाथ०, पाप्रभ०, सुपार्श्व०, चन्द्रप्रभ०, पुष्पदन्त०, शीतलनाथ०, श्रेयांस०, वासुपूज्य०, विमलानाथ अनन्तजित०, धर्मनाथ०, शान्तिनाथ०, कुन्थुनाथ०, अमरनाथ०, मल्लिनाथ०, मुनिसुव्रत०, नेमिनाथ०, पार्श्वनाथ०, और सम्मतिपुराण ।
बौद्ध वाङ्मय में पुराणसदृश ग्रंथ नहीं हैं। वैदिक पुराणों में पद्म, भागवत, नारद, सोम एवं साम्ब इन पांच पुराणों को "महापुराण'' कहते हैं। परम्परा के अनुसार प्रत्येक पुराण की जो कुछ श्लोकसंख्या बताई गई है, उतने श्लोक आज के उपलब्ध
पुराणों में नहीं मिलते। विष्णुपुराण की विष्णुचित्ती एवं वैष्णवाकृत-चंद्रिका नामक टीकाओं में 6 हजार से लेकर 24 हजार तक विष्णुपुराण की श्लोक संख्या का निर्देश है, परंतु दोनों टीकाएं केवल 6 हजार श्लोक वाले विष्णुपुराण की टीका करते हैं।
कूर्मपुराण के भी 6 हजार श्लोक मिलते हैं। ब्रह्मपुराण में 14 हजार श्लोक मिलते हैं। दूसरी ओर स्कन्दपुराण के संस्करण में 81 हजार से अधिक श्लोक पाये जाते हैं। प्रो. हाजरा के अनुसार समस्त उपपुराणों की कुल संख्या एक सौ तक है। इन में
से बहुत ही अल्प प्रकाशित हो सके हैं, और जो प्रकाशित हुए हैं, उनमें पुराणों के 'पंचलक्षण'' नहीं मिलते। सभी पुराणों में केवल विष्णुपुराण में 'पंचलक्षण'' सम्यक् रूप में मिलते हैं। अन्यत्र राजाओं के वंशों का वर्णन, वीरों के साहसिक कर्म, गाथाएं इत्यादि विषयों के साथ व्रत, श्राद्ध, तीर्थयात्रा और दान इन चार धर्मशास्त्रीय विषयों पर प्रभूत मात्रा में विवरण किया गया है। श्रीमद्भागवत पुराण के दस लक्षण बताये गये हैं :
"अत्र सर्गो विसर्गश्च स्थानं पोषणमृतयः । मन्वन्तरेशानुकथा निरोधो मुक्तिराश्रयः ।। (भागवत-2-10-1) इन दस विषयों का प्रतिपादन श्रीमद्भागवत में होने के कारण, अन्य पंचलक्षणी पुराणों से इस का महत्व विशेष माना जाता है। 12 स्कन्धों में विभाजित 18 हजार श्लोकों का भागवत पुराण आज सर्वत्र प्रचार में है। इस पुराण में प्रतिपादित भक्तिप्रधान तथा अद्वैतनिष्ठ धर्म को "भागवत धर्म'' कहते हैं। भागवत में कपिल-देवहूति संवाद. सनत्कुमार-पृथु संवाद पुरंजनोपाख्यान, अजामिलोपाख्यान, ययाति आख्यान, नारद-वसुदेव संवाद और श्रीकृष्णा-उद्धव संवाद इत्यादि स्थानों पर अत्यंत मार्मिक तत्त्वोपदेश किया गया है। संपूर्ण भागवत पुराण अत्यंत काव्यमय है, फिर भी दशम स्कन्ध में वेणुगीत, गोपीगीत, युगुलगीत, महिषीगीत एवं संपूर्ण रासपंचाध्यायी में ऐसी अप्रतिम काव्यात्मता प्रकट हुई जो अन्यत्र महाकाव्यों में भी नहीं मिलती।
संपूर्ण ग्रंथ में जितने भी भगवत्स्तोत्र मिलते है, उनमें सांख्यदर्शन की परिभाषा एवं सिद्धान्त का अनुसरण करते हुए भक्तिपूर्ण वेदान्तरहस्य प्रतिपादन हुआ है। इस पुराण में सर्वत्र पांडित्य इतनी अधिक मात्रा में बिखरा है कि उसके कारण विद्यावतां
भागवते परीक्षा" यह सुभाषित प्रसिद्ध हुआ। इसी कारण भागवत पुराण पर जितने विविध टीका ग्रंथ लिखे गये, उतने अन्य किसी पुराण पर नहीं लिखे गये। इन सब टीकाओं में श्रीधर स्वामी की भावार्थबोधिनी (या श्रीधरी) टीका सर्वोत्कृष्ट मानी जाती है।
आधुनिक विद्वान पुराणों का वर्गीकरण निम्न प्रकार करते हैं : 1) ज्ञानकोशात्मक पुराणः अग्नि, गरुड एवं नारदीय। 2) तीर्थों से संबंधित : पद्म, स्कन्द एवं भविष्य 3) साम्प्रदायिक : लिंग, वामन, मार्कण्डेय। 4) ऐतिहासिक : वायु एवं ब्रह्माण्ड ।
संभवतः वायु, ब्रह्माण्ड, मत्स्य एवं विष्णु, विद्यामान पुराणों में सबसे प्राचीन माने जाते हैं। आधुनिक काल में पाश्चात्य एवं भारतीय विद्वानों ने समग्र पुराण वाङ्मय का चिकित्सक दृष्टि से पर्यालोचन करने का अभिनंदनीय कार्य किया है। स विद्वानों में एफ, इ. पार्जिटर, डब्ल्यू. किर्फेल, एस. सी. हाजरा, व्ही. आर. रामचंद्र दीक्षितर, डॉ. ए. डी. पुसाळकर, एस. एम. प्रधान एवं भारतरत्न पां. वा. काणे इत्यादि विद्वानों के नाम उल्लेखनीय हैं। पाश्चात्य विद्वानों ने अनेक पौराणिक वक्तव्यों में दोपही देखे और उन्हें अव्यावहारिक मान कर छोड़ दिया। उन्होंने सर्वत्र भारतीय विषयों में प्राचीन तिथियां निर्धारित करने में संकोचवृत्ति
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72 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड
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