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निवास स्थान चले जाने पर कर्ण भीष्म से मिलने पहुंचा। "तुम्हारी आंखों मे खटकने वाला तुम्हारा शत्रु- मैं कर्ण आ गया हूं।" उनका कहना सुनते ही भीष्माचार्य ने आंखे खोली। बड़े प्रेम से कर्ण को पास बुला कर कहा, "सूर्यसे, कुन्ती की कोख
से जन्मे तुम 'कौंतेय' याने पाण्डवों के सगे भाई हो। तुम्हें पाण्डवों से स्नेहपूर्वक रहना चाहिए। बैर को भूल जावो जिससे युद्ध तथा संहार नहीं होगा। मैने तुमको अब तक जो भी भला बुरा कहा वह केवल इसलिये कि कौरव-पाण्डवों का बैर विद्वेष न बढने पाए। तुम्हारी वीरता से मैं पूरी तरह परिचित हूं। मैं चाहता हूं कि मेरे पतन के साथ ही यह संग्राम समाप्त हो।" इस प्रकार भीष्माचार्य ने कर्ण को बहुत कुछ समझाया। उस पर कर्ण बोला, “मैं जानता हूं कि मै कुन्ती का पुत्र हूं।
लेकिन मैने दुर्योधन का नमक खाया है। मै उनका विश्वासघात नहीं कर सकता।" यह सुन कर भीष्म ने कहा, "अगर तुम्हें बैर भुला देना ठीक न लगता हो, तो तुम क्षत्रिय धर्म के उचित ही युद्ध करो। अर्जुन के हाथ तुम्हें मृत्यु तथा सद्गति भी मिलेगी। मैने लाख प्रयत्न किये कि युद्ध न हो, परन्तु उसमें मैं असफल ही रहा। भीष्माचार्य का वह निवेदन सुन कर उन्हें प्रणाम कर के उनकी आज्ञा से कर्ण दुर्योधन के पास लौट पड़ा।
7 द्रोणपर्व कथन के अनुसार कर्ण भीष्मजी से मिल कर लौट पड़ा था। दुर्योधन ने कर्ण से पूछा कि अब भीष्मजी के पश्चात् सेनापति पद किसे प्रदान करें। कर्ण ने द्रोणाचार्य जी का नाम सूचित करने पर दुर्योधन ने उनको सेनापति पद दिया। सेनापति बनने पर द्रोणाचार्य ने पांच दिन बड़ा ही घोर युद्ध किया। एक अक्षौहिणी से भी अधिक वीरों का नाश किया। लेकिन अंत में धृष्टद्युम्न ने उनका वध किया। वह वृत्त सुनते ही धृतराष्ट्र ने द्रोणाचार्य की मृत्यु पर भारी शोक प्रकट किया और युद्ध का पूरा विवरण बताने के लिए संजय को आदेश दिया। उस पर संजय ने बताया :
द्रोणाचार्य के सेनापति होने पर दुर्योधन ने कहा, "गुरुदेव, मेरी यह इच्छा है कि युद्ध में धर्मराज को तुम जीवित पकड लाओ।" कारण पूछने पर दुर्योधन ने बताया और अपने हृदय का छल कपट प्रकट कर के सुनाया। धर्मराज को हम मरवा
डालें तो भीम, अर्जुन आदि दूसरे भी हम सब का पूरा नाश किये बिना सांस नहीं लेंगे और अगर धर्मराज को जीवित ही पकड सके तो हम पुनः उनसे द्यूत खेल सकेंगे और उन्हें पूर्ववत् वनवास को भिजवा दे सकेंगे। दुर्योधन के दिल की वह
दुष्ट वासना सुन कर द्रोणाचार्य बोले, "अच्छी बात है। मै यह काम करके दिखाऊंगा किन्तु अर्जुन को किसी तरह से धर्मराज की रक्षा करने की फुर्सत न मिलने पाए। अर्जुन दूसरी तरफ कहीं फंसने पर मै धर्मराज को जीवित पकड ला सकूँगा। अर्जुन के समक्ष यह बात कदापि होने वाली नहीं है।"
द्रोणाचार्य ने अपना रथ धर्मराज के रथ तक पहुंचा दिया। यह देख कर धर्मराजा का विनाश हुआ इस तरह हाहाकार पाण्डवों की सेना में मच गया। यह सुनते ही अर्जुन वहां पहुंच गया और उसने धर्मराज का रक्षण किया।
शिबिर पहुंचने पर द्रोणाचार्य ने दुर्योधन से कहा, "देखो हम सब अर्जुन के वहां पहुंचने पर आज धर्मराज को जीवित पकडने में असफल रहे। अर्जुन को जीतना असंभव है। इसलिये अब अर्जुन को दूसरी तरफ किसी न किसी उपाय से रोक फंसा देना चाहिए। वह सुन कर त्रिगर्त देश का राजा सुशर्मा और उसके भाई अर्जुन के साथ युद्ध करने की शपथ ले कर
अपनी सेना के साथ सन्नद्ध हो गये। जीतेंगे या तो युद्ध में मर मिटेंगे इस प्रकार की घोर प्रतिज्ञा कर लेने से वे संशप्तक कहलाते थे। श्रीकृष्ण ने दुर्योधन को जो अपना सैन्य दिया था वह “नारायण गण" नाम से प्रसिद्ध था। वह भी संशप्तकों
के साथ चल पड़ा। बारहवें दिन इधर उधर युद्ध के प्रारंभ होने के पहले ही संशप्तकों ने अर्जुन को युद्ध के लिए चुनौती दी। युद्ध के लिए चुनौती प्राप्त होने पर ना न कहने की अर्जुन की प्रतिज्ञा थी। धर्मराज की सुरक्षा का काम पांचाल्य राजपुत्र
सत्यजित् को सौप कर अर्जुन संशप्तकों का युद्ध करने दक्षिण दिशा की तरफ चला गया और उधर युद्ध में काफी संशप्तकों का और नारायण गण का संहार करना उसने शुरु कर दिया। 12) अर्जुन के संशप्तकों की तरफ जाने पर बारहवें दिन का युद्ध शुरु हुआ। द्रोणाचार्य ने पांडव सैन्य का भयंकर संहार कर के अपना रथ धर्मराज के रथ के निकट पहुंचा दिया। तब सत्यजित सामने आ कर युद्ध करने लगा। लेकिन द्रोणाचार्य ने उसका वध किया। वह देख, सहम कर धर्मराज भाग गये। अनन्तर विराट राजा का छोटा भाई शतानीक सामने आ गया। उसका भी नाश द्रोणाचार्य ने किया। तब पाण्डव सैन्य में भगदड मच गयी। यह देख कर दुर्योधन को अपार हर्ष हुआ। परंतु इतने मे भीम द्रोणाचार्य की सेना का सामना करने चढ आया। तब राजा भगदत्त हाथी पर सवार होकर युद्ध करने प्रस्तुत हुआ। उसने अपने हाथी को भीम के रथ पर चलाया। उसके हाथी ने भीम के रथ को नष्ट कर दिया। भीम उस हाथी के पेट पर नीचे से मुष्टिप्रहार करने लगा। तब वह हाथी चक्र के समान गोलाकार घूमने लगा, और भीम को पकड में लाने का मौका ढूंढने लगा। भीम उसके पेट के नीचे से सटक गया। हाथी पाण्डव सैन्य का संहार करने लगा। कोई उसको रोक न सका। पाण्डव सैन्य रोते चिल्लाते भागने लगा। यह वार्ता सुन कर भगदत्त के वध के लिए श्रीकृष्ण ने अर्जुन के रथ को
106 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड
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