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भवनानन्द सिद्धान्त वागीश : 17 वीं शती ग्रंथ तत्त्वचिन्तामणिदीधिति प्रकाशिका, प्रत्यगालोकसार मंजरी, 1 और कारक- विवेचन (व्याकरण) ।
हरिराम तर्कवागीश : 17 वीं शती ग्रंथ स्वप्रकाश-रहस्य- विचार ।
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रामभद्र सिद्धान्तवागीश : 17 वीं शती ग्रंथ गोविन्दन्वायवागीश 17 वीं शती न्यायसंक्षेप
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तत्त्वचिन्तामणि- टीका-विचार, आचार्यमतरहस्य- विचार, रत्नकोष-विचार और
सुबोधिनी (शब्दशक्तिप्रकाशिका टीका) पदार्थखंडन व्याख्या समासवाद।
गूढार्थदीपिका, नवीन निर्माण, दीधिति-टीका, न्यायकुसुमांजलि कारिका व्याख्या
रघुदेव न्यायालंकार 17 वीं शती ग्रन्थ द्रव्यसारसंग्रह, पदार्थखंडन - व्याख्या ।
गदाधर भट्टाचार्य : 17 वीं शती ग्रन्थ तत्त्वचिन्तामणि दीधिति प्रकाशिका, तत्त्वचिंतामणिव्याख्या तत्त्वचिंतामणि आलोकटीका, मुरली टीका कोपवाद रहस्य, अनुमान चिन्तामणिदीधिति टीका, मुक्तावली रत्नकोषवाद-रहस्य, आख्यात वाद, कारकवाद, नञ्वाद, प्रामाण्यवाद दीधितिटीका, शब्दप्रमाण्यवादरहस्य, बुद्धिवाद, युक्तिवाद, विधि-वाद, विषयतावाद, व्युत्पत्ति-वाद, शक्तिवाद और स्मृतिसंस्कारवाद । कुल 18 ग्रंथ) ।
विश्वनाथ सिद्धान्तपंचानन : 17 वीं शती ग्रन्थ अलंकारपरिष्कार, कव्वादटीका, न्यायसूत्रवृत्ति पदार्थतत्त्वानोक न्यायतत्वबोधिनी भाषापरिच्छेद और सुबर्थप्रकाश तथा पिंगलप्रकाश ।
न्यायसिद्धान्तमंजरी- - भूषा।
नृसिंह पंचानन 17 वीं शती ग्रन्थ श्रीकृष्ण न्यायालंकार :17 वीं शती ग्रन्थ राजचूडामणि मखी : 17 वीं शती । ग्रंथ धर्मराजाध्वरीण: 17 वीं शती ग्रंथ-तत्वचिन्तामणि- प्रकाशिका । गोपीनाथ मौनी : 17 वीं शती ग्रंथ 1 रामरुद्र तर्कवागीश : 17-18 वीं शती ग्रंथ सिद्धान्तमुक्तावली टीका और कारकनिर्णय टोका।
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17-18 वीं शती । ग्रंथ
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भावदीपिका (न्यायसिद्धान्तमंजरी-टीका) । तत्त्वचिन्तामणि- दर्पण |
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तत्त्वचिन्ताटीका
शब्दालोकरहस्य, उज्ज्वला (तर्कभाषाटीका), पदार्थविवेक 1
तत्त्वचिन्तामणि दीधिति टीका, व्याप्तिवाद व्याख्या, दिनकरीय-प्रकाशतरंगिणी,
जयराम तर्कालंकार
शक्तिवाद - टीका ।
17-18 वीं शती । ग्रंथ
जयराम न्यायपंचानन तत्त्वाचिन्तामणि- दीपिका गूढार्थविद्योतन, तत्त्वचिंतामणि- आलोकविवेक, न्यायसिद्धान्तमाला, गुणदीधितिविवृत्ति, न्यायकुसुमांजलिकारिका व्याख्या, पदार्थमणिमाला और काव्यप्रकाश-तिलक ( कुल 9 ग्रंथ) । गौरीकान्तसार्वभौम 18 वीं शती ग्रंथ भावार्थदीपिका (तर्कभाषा की टीका), संयुक्तमुक्तावलि, आनन्दलहरीवटी और विदग्धमुखामण्डनवीटिका।
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रुद्रराम : 18 वीं शती । ग्रन्थ वादपरिच्छेद, व्यख्या कृष्णकान्त विद्यावागीश 18 वीं शती कृष्णभट्ट आर्डे : 18 वीं शती । ग्रन्थ महादेव उत्तमकर 18 वीं शती ग्रन्थ रघुनाथशास्त्री : 18 वीं शती ग्रंथ
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व्यूह, चित्तरूप, अधिकरणचन्द्रिका और वैशेषिक- शास्त्रीय-पदार्थ-निरुपण । ग्रंथ न्यायरत्नावली, उपमानचिन्तामणि- टीका, शब्दशक्ति प्रकाशिका इत्यादि । गदाधरी-कर्णिका
व्याप्तिरहस्य - टीका ।
गादाधरी पंचवाद टीका ।
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3 "न्यायशास्त्र का ज्ञेय"
"ऋते ज्ञानात् न मुक्तिः" ( ज्ञान बिना मुक्ति नहीं ) यह भारतीय दार्शनिकों का सर्वमान्य परम श्रेष्ठ सिद्धान्त है । परंतु पारमार्थिक ज्ञान के ज्ञेय के विषय में तथा ज्ञातव्य वस्तु के स्वरूप में सभी दार्शनिकों में मार्मिक मतभेद हैं। न्याय दर्शन के अनुसार प्रमाण, प्रमेय, संशय, प्रयोजन, दृष्टान्त, सिद्धान्त, अवयव, तर्क, निर्णय, वाद, जल्प, वितंडा, हेत्वाभास, छल, जाति और निग्रहस्थान, इन 16 पदार्थों के यथार्थज्ञान से निःश्रेयस की प्राप्ति होती है। शुद्धज्ञान की प्राप्ति के विविध साधनों का सूक्ष्म विचार यही न्यायशास्त्र का योगदान है और इसी कारण अन्य शास्त्रों ने न्यायशास्त्र द्वारा प्रस्तुत प्रमाणविचार एवं हेत्वाभास विचार स्वीकृत किया हैं। वैदिक न्यायशास्त्र में प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और शब्द ये चार प्रमाण माने हैं, इसका कारण प्रमाण (याने ययार्थनुभव) के भी चार प्रकार होते हैं। न्यायशास्त्र के अनुसार प्रमेय में आत्मा, शरीर, इन्द्रिय, अर्थ, बुद्धि, मनःप्रवृत्ति, दोष, प्रेत्यभाव (पुनर्जन्म ), फल दुःख और अपवर्ग ( या मोक्ष) इन 12 आध्यात्मिक विषयों का अन्तर्भाव होता है। नैयायिकों के अनुसार आत्मा का स्वरूप विभु नित्य और प्रतिशरीर भिन्न है।
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 133