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अश्वि, हारीलक, वृन्द, कलिक, भृगु, शेष आदि आयुर्वेद के ग्रंथों का रहस्य प्राप्त कर लेखक ने इस ग्रंथ का प्रणयन किया है। इस ग्रंथ के 29 उपकरणों में आयुर्वेदीय औषधि से संबंधित प्रायः सभी विषयों की चर्चा हुई है।
वैद्यवल्लभ - ले. हस्तिरुचि। इस पद्यमय ग्रंथ के आठ प्रकरणों में निम्नलिखित विषयों का प्रतिपादन हुआ है। - (1) सर्वज्वर प्रतिकार, (2) सर्व स्त्री-रोग प्रतिकार, (3) कास-क्षय शोफ-फिरंग-रक्तपित्त इत्यादि रोग प्रतिकार, (4) धातु प्रमेह मूत्र कृच्छ्र लिंग वर्धन-वीर्य वृद्धि-बहूमुत्र इत्यादि रोग प्रतिकार, (5) गुप्त रोग प्रतिकार (6) कुष्ट विष-मदाग्नि-कमसोदर- प्रभृति रोग प्रतिकार (7) शिरःकर्णक्षिरोग प्रतिकार और पाक-गुटिकाद्यधिकार- शेष योग निरूपण ।
द्रव्यावलीनिघण्टु - ले. मुनि महेन्द्र। यह ग्रंथ आयुर्वेदीय वनस्पतियों का कोश सा है। इसी प्रकार का आयुर्वेद- महोदधि नामक कोश ग्रन्थ सुषेण नामक विद्वान ने लिखा है। आचार्य अमृतनन्दी के निघण्टुकोश में आयुर्वेदीय पारिभाषिक शब्दों की संख्या 22 हजार है।
कल्याणकारक - लेखक- आचार्य उग्रादित्य। समय- ई. 11-12 वीं शती। यह ग्रंथ 25 अधिकारों में विभक्त हैं। इस ग्रंथ में रोगचिकित्सा का प्रतिपादन रूढ पद्धतियों से विभिन्नतया किया है और औषधों के साथ मधु, मद्य और मांस को अनुपानों में वर्ण्य किया है।
ज्वरपराजय - लेखक- जयरत्नगणि। समय ई. 18 वीं शती। प्राचीन सुप्रसिद्ध ग्रंथों पर आधारित । आयुर्वेद विषयक अनुपलब्ध ग्रंथों की संख्या काफी बड़ी नहीं है। मूलतः अप्राप्य ग्रंथों के उदाहरण तथा नामोल्लेख यत्र-तत्र मिलते हैं।
18 शिल्पशास्त्र कल्प नामक वेदांग के अन्तर्गत श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र और धर्मसूत्रों के अनन्तर शुल्बसूत्रों की गणना होती है। इनमें आपस्तंब, बौधायन और कात्यायन के शुल्बसूत्र सुप्रसिद्ध। आपस्तंब का शुल्बसूत्र छह पटलों के अन्तर्गत 21 अध्यायों में विभक्त है। सूत्रसंख्या है 223 । आपस्तंब और बोधायन के शुल्बसूत्रों के विषय समान ही है। आपस्तंब बोधायन की अपेक्षा में सरल तथा संक्षिप्त है। इस पर करविन्दस्वामी (ई. 5 वीं शती) कपर्दिस्वामी (12 वीं शती), सुंदरराज (ई. 10 वीं शती) और गोपाल कृत टीकाएं उपलब्ध हैं।
कात्यायन शुल्बसूत्र, कातीय शुल्ब परिशिष्ट अथवा कात्यायन शुल्बपरिशिष्ट नाम से भी पहचाना जाता है। यह दो भागों में विभक्त है। प्रथम भाग में 90 सूत्र सात कंडकाओं में विभक्त हैं। द्वितीय भाग में 40 या 48 श्लोक मिलते हैं। वेदियों की रचना के लिए आवश्यक रेखागणित, वेदियों का स्थानक्रम, नापने वाली रज्जू, निपुण वेदीनिर्माता के गुण तथा कर्तव्य इत्यादि विषयों का विवरण प्रस्तुत ग्रंथ में हुआ है।
कात्यायन शुल्बसूत्र पर राम वाजपेयी (उत्तर प्रदेश में नैमिष ग्राम के निवासी), काशी निवासी महीधर (ई. 16 वीं शती), महामहोपाध्याय विद्याधर गौड (20 वीं शती), इन तीन पंडितों की व्याख्याएं उपलब्ध हैं। इन ग्रन्थों के अतिरिक्त मानव, मैत्रायणीय, वाराह, नामक शुल्बसूत्र के ग्रंथ प्रचलित हैं। मानव शुल्बसूत्र में सुपर्णचिति अथवा श्येनचिति नामक वेदी का वर्णन मिलता है जो अन्यत्र नहीं मिलता। कल्पविषयक वेदांग वाङ्मय की संक्षिप्त रूपरेखा ध्यान में आने के लिए इतना विवरण पर्याप्त है। भारतीय शिल्पशास्त्र का मूल इन शुल्ब सूत्रों में माना जाता है। शिल्प शब्द की उत्पत्ति शील-समाधौ (शीलति समादधाति इति शिल्पम्) इस धातु से हुई है। भृगु ने शिल्प की व्याख्या की है :
नानाविधानां वस्तूनां यन्त्राणां कल्पसम्पदाम्। धातूनां साधनानां च वास्तूनां शिल्प-संक्षितम्।। (नाना प्रकार की वस्तुएं, यन्त्र, युक्ति प्रयुक्ति, धातु साधन, कृत्रिम पदार्थ और मंदिर इत्यादि को शिल्प कहते हैं)। शिल्पशास्त्र के अंतर्गत 1) धातुखण्ड 2) साधनखण्ड और 3) वास्तुखण्ड नामक तीन खण्ड माने जाते हैं।
(1) धातुखण्ड में, कृषिशास्त्र, जलशास्त्र और खनिजशास्त्र इन तीन उपशास्त्रों का अन्तर्भाव होता है। इस प्रकार शिल्पशास्त्र के तीन खण्डों के 9 उपशास्त्र माने गये हैं। शिल्पशास्त्रसंबंधी उपशास्त्रों में 22 विद्याओं तथा 64 कलाओं का समावेश किया जाता है।
कृषिशास्त्र में 1) वृक्षविद्या 2) पशुविद्या और 3) मनुष्यविद्या अन्तर्भूत है।
1) वृक्षविद्या की कलाएं सीकराद्युत्कर्षण, वृक्षारोपण, यवादीक्षुविकार, वेणुतृणादिकृति 2) पशुविद्या की कलाएं गजाश्वसारथ्य, गतिशिक्षा, पल्याणक्रिया, पशुचर्मातनिर्हार, चर्ममार्दवक्रिया। 3) मनुष्यविद्या की कलाएं क्षुरकर्म, कंचुकादिसीवन, गृहभाण्डदि निर्माण वस्त्रसम्मार्जन, मनोनुकूल सेवा, नानादेशीय वर्णलेखन, शिशुसंरक्षण, शय्यास्तरण, पुष्पादिग्रथन, अन्नपाचन।।
धातुखण्ड के जलशास्त्र में संसेचनविद्या, संहरणविद्या और स्तंभनविद्या इन तीन विद्याओं का अन्तर्भाव होता है। संसेचन विद्या की जलवाय्वग्निसंयोग नामक एक कला मानी गई है। अन्य दो विद्याओं की कोई कला नहीं है। 68 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड
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