________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
3-आ धर्मसूत्र वाङ्मय चारों वेदों के श्रौतसूत्र और गृह्यसूत्र उपलब्ध होते हैं, परंतु धर्मसूत्र नही मिलते। सामवेद का गौतम धर्मसूत्र और कृष्ण यजुर्वेद के आपस्तंब, हिरण्यकेशी तथा बौधायन इन तीन धर्मसूत्रों के अतिरिक्त गौतम, वसिष्ठ, मानव, वैखानस और विष्णु इन नामों के धर्मसूत्र मिलते हैं, परंतु उनका किसी विशिष्ट वेदशाखा से संबंध नहीं हैं। ऋग्वेद, शुक्ल यजुर्वेद और अथर्ववेद के अपने धर्मसूत्र नहीं है। सामवेद का एकमात्र गौतम धर्मसूत्र उपलब्ध है और कृष्ण यजुर्वेद के तीन धर्मसूत्र प्रचलित हैं।
(1) आपस्तंब सूत्र - इसमें कृष्ण यजुर्वेदीय आपस्तंब श्रौतसूत्र ग्रंथ के 28 और 29 वें अध्यायों का संक्षेप किया है। बूल्हर के मतानुसार इस ग्रंथ की आर्ष शैली के कारण इसका समय ई.पू. 4 शतक माना है। इसमें त्रैवर्णिक ब्रह्मचारी और गृहस्थों के कर्तव्य, भक्ष्य-अभक्ष्य-विवेक, तपश्चर्या इत्यादि धर्माचार से संबंधित और विवाह, दायभाग इत्यादि अर्थ-काम संबंधित लोकाचार का सविस्तर विवेचन हुआ है।
(2) हिरण्यकेशी धर्मसूत्र - साम्प्रदायिकों के मतानुसार हिरण्यकेशी, आपस्तंब शाखा की उपशाखा मानी जाती है। आपस्तंबीय धर्मसूत्र से इस ग्रंथ का दृढ संबंध होने के कारण, उसके विषयों का पर्याप्त ज्ञान प्राप्त होने के लिए यह ग्रंथ उपयुक्त माना गया है। हिरण्यकेशी श्रौतसूत्रों के 29 अध्यायों में से 26 और 27 वें अध्यायों के विषय इन सूत्रों में संक्षेपतः बताये हैं। ई. 5 वीं शताब्दी में हिरण्यकेशी धर्मसूत्र, आपस्तंब से विभक्त हुआ ऐसा विद्वानों का अभिप्राय है।
(3) बोधायन धर्मसूत्र - कृष्ण यजुर्वेद की बोधायन शाखा आज कहीं भी अस्तित्व में नहीं है। परंतु 14 वीं शताब्दी के सुप्रसिद्ध वेदभाष्यकार सायणाचार्य बौधायन शाखीय थे। इसका अर्थ प्राचीन काल में वह शाखा दक्षिण भारत में विद्यमान थी। इस ग्रंथ का बौधायन श्रौतसूत्रों से विशेष संबंध नहीं है। इसके विषयों से यह सूचित होता है कि आपस्तंब धर्मसूत्र से, यह ग्रंथ पूर्वकालीन है। वर्णाश्रम धर्म, विशेष प्रकार के यज्ञविधि, राजकर्तव्य, न्यायदान, दण्डविधान, मिश्र जातियां, विवाह के प्रकार, स्त्रीधर्म, इत्यादि विषयों का विवेचन बोधायन धर्मसूत्र में हुआ है। धर्मसूत्र विषयक ये तीन ही ग्रंथ विशेष महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं और वे तीनों कृष्ण यजुर्वेद से संबंधित हैं। इनके व्यतिरिक्त अन्य धर्मसूत्र
(1) गौतम धर्मसूत्र - इसका संबंध किसी कल्प सूत्र से नहीं है तथापि सामवेद की राणायनीय शाखा की गोतम नामक उपशाखा से इस का संबंध लगाया जाता है। कुमारिल भट्ट ने गौतम धर्मशास्त्र का संबंध सामवेद के साथ बताया है, इसका कारण गौतम धर्मसूत्र का 26 वां अध्याय सामवेदीय ब्राह्मण में शब्दाशः मिलता है। (सामवेदी ब्राह्मण ग्रंथों की संख्या है 10-1 यह सब से प्राचीनतम धर्मसूत्र माना जाता है।
वसिष्ठ धर्मशास्त्र - तीस अध्यायों का यह ग्रंथ गद्यपद्यात्मक है। पद्यांश प्रायः त्रिष्टुप् नामक वैदिक छंद में लिखा है। आपस्तंब सूत्र के समान इस में विवाह विषयक छः विधियां बताई हैं। कुमारिल भट्ट इसे ऋग्वेद से संबंधित मानते हैं।
मानव धर्मसूत्र - इसी का पद्यमय आशय मनुस्मृति में मिलता है, और इसके अनेक अवतरण वसिष्ठ धर्मशास्त्र में मिलते हैं।
वैखानस धर्मसूत्र - ई. 3 री शताब्दी में इसकी रचना मानी जाती है। चार आश्रमों के कर्तव्यों में वैखानस (संन्यासी) आश्रम के कर्तव्य इसमें सविस्तर बताए हैं। इस ग्रंथ का स्वरूप गृह्यसूत्र और धर्मसूत्र के समन्वय सा है। वैष्णव सम्प्रदायों में इस ग्रंथ का आदर होता है।
विष्णु धर्मशास्त्र - ऋग्वेद की कौषीतकी अर्थात् सांख्यायन शाखा से इस का संबंध है।
शुल्बसूत्र - कल्पसूत्र के उपरिनिर्दिष्ट तीन प्रकारों के अतिरिक्त चौथा प्रकार शुल्बसूत्र कहा जाता है। आपस्तंब शाखा के 30 वें प्रश्न के अंतिम प्रकरण का विषय शुल्बसूत्र में समाविष्ट होता है। प्राचीन काल के भूमितिशास्त्र का विकास अथवा आधुनिक भूमिति का मूल स्वरूप इस शुल्बसूत्र द्वारा व्यक्त होता है। प्रायश्चित्त सूत्र - वैतान (श्रौत) सूत्र का अंगभूत ग्रंथ है।
परिशिष्ट (अ) चारों वेदों की सभी शाखा-उपशाखाओं का परिचय उपर दिया है। उसी का संक्षेप में परिचय होने की दृष्टि से प्रस्तुत परिशिष्ट उपयुक्त होगा :
शाकल शाखा (1) ऐतरेय ब्राह्मण (2) ऐतरेय आरण्यक (3) ऐतरेय उपनिषद
बाष्कल शाखा कौषीतकी (सांख्यायन) ब्राह्मण संख्यायन आरण्यक कौषीतकी उपनिषद (बाष्कल शाखा आज विद्यमान नहीं है)
32 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खस
For Private and Personal Use Only