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वरण किया है।
एतरेय आरायन सूत्रों
सविस्तर बताये हैं। शांखायन सूत्र के कुल अष्टादश अध्यायों में दशपूर्णमास यज्ञ से लेकर वाजपेय, राजसूय, अश्वमेध, पुरुषमेध और सर्वमेध इन महायज्ञों का विवरण किया है। इन शांखायन सूत्रों का विवेचन अमृतकृत भाष्य और गोविंदकृत टीका में मिलता है।
आश्वलायन सूत्रों के कर्ता थे आश्वलायन जो शौनक ऋषि के शिष्य थे। ऐसा माना जाता है कि इन गुरु शिष्यों ने ऐतरेय आरण्यक के अंतिम अध्याय लिखे। आश्वलायन श्रौतसूत्रों में ऐतरेय आरण्यक के अनुसार यज्ञयागादि का विवरण दिया है।
सामवेद के मशक (अथवा आर्षेय) श्रौतसूत्र, लाह्यायन श्रौतसूत्र और द्राह्यायण (अथवा दाक्षायण) नामक तीन श्रौतसूत्र मिलते हैं। उनमें मशक सूत्रों में पंचविंश ब्राह्मण और अनुब्राह्मण के अनुसार सोमयाग की क्रियाओं का परिगणन किया है। लाह्यायन सूत्र भी पंचविंश ब्राह्मण से संबंधित है, परंतु द्राह्यायण सूत्र का संबंध सामवेद की राणायणीय शाखा से है।
कृष्ण यजुर्वेद से संबंधित : (1) आपस्तंब, (2) हिरण्यकेशी (अथवा सत्याषाढ), (4) बोधायन (यह आपस्तंब से प्राचीनतर है), (4) भारद्वाज, (5) मानव (कृष्ण यजुर्वेद की मैत्रायणी संहिता से इसका संबंध है और सुप्रसिद्ध मनुस्मृति की रचना इसी के आधार पर मानी जाती है और (6) वैखानस इन छ: श्रौतसूत्रों में केवल मानव सूत्र मैत्रायणी शाखा से संबंधित है। अन्य पांच सूत्र तैत्तिरीय शाखा से संबंधित हैं।
शुक्ल यजुर्वेद के कात्यायन श्रौतसूत्र में अध्याय संख्या 26 है और उस में शतपथ ब्राह्मण में वर्णित कर्मकाण्ड का प्रतिपादन किया है। इसके 22, 23 और 24 इन तीन अध्यायों में सामवेद का कर्मकाण्ड मिलता है। इस पंथ की निर्मिति सूत्रकाल के अंतिम चरण में मानी जाती है। इसका कर्काचार्य कृत भाष्य प्रसिद्ध है। कात्यायन श्राद्धसूत्र नामक ग्रंथ में, श्राद्धविधि का विवेचन 9 कंडिकाओं में किया है। उसपर कर्काचार्य, गदाधर और कृष्णमित्र कृत टीकाएं हैं। कात्यायन कृत शुल्बसूत्र का वाराणसी में प्रकाशन हुआ है।
अथर्ववेद का वैतानसूत्र, यजुर्वेद के कात्यायन श्रौतसूत्र से और गोपथ ब्राह्मण से संबंधित है। वैतान सूत्र में किसी भी प्रकार की मौलिकता न होने के कारण उसे अर्वाचीन मानते हैं और उसके प्रणेता ऋषि भी अनेक माने जाते हैं। अथर्ववेद से संबंधित किसी श्रौतसूत्र की आवश्यकता पूर्ण करने के हेतु इसकी रचना मानी जाती है।
चारों वेदों से संबंधित श्रौतसूत्रों का अध्ययन याज्ञिक कर्मकाण्ड की यथार्थ जानकारी के लिए आवश्यक होता है। श्रौतसूत्रों में वर्णित यज्ञविधि, यजमान के कल्याणार्थ पुरोहितों द्वारा किए जाते हैं। इन पुरोहितों की संख्या कुछ यज्ञों में 16 तक होती है। पुरोहितवर्ग के अधःपतन के साथ कर्मकाण्डात्मक वैदिक धर्म की ग्लानि होती गई।
श्रौतसूत्रों में 14 प्रकार के यज्ञकर्मों का विधान किया है, जिन में 7 हविर्यज्ञ और 7 सोमयज्ञ होते हैं। हविर्यज्ञों में दर्शपूर्णमास्य और चातुर्मास्य यज्ञों का विशेष महत्त्व है। इनमें अग्निहोत्र अधिक प्रचलित है। इन हविर्यज्ञों में दुग्धघृत आदि हविर्द्रव्यों की आहुतियां दी जाती हैं।
सोमयज्ञों में अग्निष्टोम का विधि सुकर होता है। उसमें भी सोलह पुरोहितों की आवश्यकता होती है। सोमयज्ञ के एकाह (एक+अहन्-दिन) द्वादशाह और अनेकाह नामक तीन प्रकार दिनसंख्या के अनुसार होते हैं। सोमयाग से संबंधित अग्निचयन नामक कर्म संपूर्ण वर्ष तक चालू रहता है। इस कालावधि में यज्ञ से संबंधित विविध प्रकार की सामग्रियों का चयन होता है।
2-अ गृह्यसूत्र वाङ्मय कल्प नामक वेदांग के अन्तर्गत श्रौतसूत्रों के पश्चात् गृह्यसूत्रों की रचना मानी जाती है। प्रत्येक वेद से संबंधित गृह्यसूत्रों का स्वरूप निम्न प्रकार है :
ऋग्वेदीय (1) शांखायन गृह्यसूत्र - इसके छः अध्यायों में चार अध्याय मौलिक हैं।
(2) शांबव्य गृह्यसूत्र - इसका संबंध कौषीतकी शाखा से है। शांखायन श्रौतसूत्र के पहले दो अध्यायों के विषयो का ही दर्शन इसमें होता है, तथापि इसमें पितृविषयक एक स्वतंत्र और मौलिक अध्याय मिलता है।
(3) आश्वलायन गृह्यसूत्र - ऐतरेय ब्राह्मण से संबंधित इस सूत्र ग्रंथ में आश्वलायन श्रौतसूत्रान्तर्गत विषयों का प्रतिपादन कुल चार अध्यायों में विस्तार से किया है।
सामवेदीय - (1) गोमिल गृह्यसूत्र - कर्मकाण्ड विषयक समग्र सूत्र वाङ्मय में यह अतिप्राचीन, सर्वांग परिपूर्ण और रोचक ग्रंथ माना गया है।
(2) खादिर गृह्यसूत्र - इसका संबंध मुख्यतया द्राह्यायण शाखा से है । राणायनीय शाखा में भी इसका प्रामाण्य माना जाता है।
कृष्ण यजुर्वेदीय - (1) आपस्तंब गृह्यसूत्र - आपस्तंब श्रौतसूत्रों के 26 और 27 वें अध्याय में इसका अन्तर्भाव होता है परंतु 26 वे अध्याय में केवल मंत्रपाठ ही होने के कारण, 27 वां अध्याय ही गृह्यसूत्र माना जाता है।
(2) हिरण्यकेशी गृह्यसूत्र - हिरण्यकेशी कल्पसूत्र के 29 और 30 वें अध्याय में इसका अन्तर्भाव होता है।
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30 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड
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