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स्वभाव और विभाव
है । जो आत्मा अथवा जो व्यक्ति अपनी आत्म-शक्ति को भूलकर अपने जीवनपथ पर अग्रसर होता है, वह अपने लक्ष्य पर कभी नहीं पहुँच सकता । लक्ष्य की प्राप्ति तभी सम्भव है, जब मनुष्य को अपनी आत्मा पर आस्था होगी, अपनी शक्ति पर विश्वास होगा और अपने प्रकाश पर भरोसा होगा । अपनी आत्मा पर आस्था होने पर ही बह अपने जीवन के ताप, परिताप और संताप से विमुक्त हो सकेगा । जिन्दगी की राह पर भटकने वाले राही से, जैन-दर्शन पूछता है, कि तू भटकता क्यों है ? तू, रोता क्यों है ? तू, अपनी जिन्दगी को आँखों के इस खारे पानी से क्यों भिगो रहा है ? आँखों के खारे पानी से इस जीवन की समस्या का हल नहीं हो सकता । मनुष्य पर जब संकट और कष्ट आते हैं, अथवा उस पर जब कहीं से चोट लगती है, तब झट-पट वह उत्साह-हीन होकर आँसुओं के रूप में अपनी आँखों का खारा पानी बहाने बैठ जाता है । परन्तु वह यह विचार नहीं कर पाता, कि आँखों के खारे पानी से किसका काम चला है ? आँख का पानी आँसू बनकर यदि बहता रहे
और सारी जिन्दगी भी बहता रहे तब भी समस्या का सही समाधान नहीं मिलेगा । भारत का दर्शन कहता है, कि यदि रोने से समस्या का हल हो पाता, तो कभी का हो गया होता । आज का मनुष्य कितना शक्तिहीन और कातर बन गया है, कि जिसको भी देखो वही पीडा से कराह रहा है और जरा-सा कष्ट आने पर ही रोने बैठ जाता है । जीवन में परिवर्तन और विकास कैसे आये ? किसी एक कोने में हताश और निराश बन कर बैठ जाने से जीवन में परिवर्तन और विकास नहीं आ सकता । इन्सान की अमोल जिन्दगी कर्तव्य के मोर्चे पर लड़ने के लिए है । कहीं कोने में मुँह छिपा कर रोने के लिए नहीं है । मानव तेरे अन्दर शक्ति है, यह नहीं है, कि तू शक्ति से खाली है । यह भी नहीं है, कि तेरे अन्दर कहीं बाहर से लाकर शक्ति डालना है । वस्तुवाद का सिद्धान्त यह है, कि प्रत्येक वस्तु अर्थात् पदार्थ अपने आप में परिपूर्ण है । वस्तुवाद का सिद्धान्त एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त है । उ.त सिद्धार पर विश्वास करने वाला व्यक्ति कभी भी अपने जीवन के किसी भी क्षण में निराश-हताश नहीं हो सकता । निराशा जीवन का एक दौर्बल्य है, जिसे दूर करना ही चाहिए ।
वस्तुवाद सिद्धान्त का ही एक अंग कर्मवाद का सिद्धान्त है । यह सिद्धान्त भी मानव-जीवन के लिए एक प्रेरणाप्रद सिद्धान्त है । जीवन के उत्थान में मनुष्य अपने से बाहर नजर डालता है, वह आपत्ति आने पर दुःख का कारण भी बाहर खोजता है और किसी न किसी पर घृणा
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