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सम्मान और संस्कृति
बदले में न हमें स्वर्ग की अभिलाषा है और न अन्य किसी प्रकार के वैभव की अभिलाषा है । ज्ञान का प्रकाश करने से, धन का संविभाग करने से और शक्ति का सत् प्रयोग करने से, आत्मा बलवान् बनता है, आत्मा शक्ति सम्पन्न बनाता है और आत्मा प्रभु बनता है ।
मैं आपसे मनुष्य और मनुष्यता की बात कह रहा था । संसार का प्रत्येक मनुष्य सुख चाहता है, शान्ति चाहता है और आनन्द चाहता है । किन्तु प्रश्न यह है, कि वे प्राप्त कैसे हों ? वे प्राप्त तभी हो सकते हैं, जब कि हम दूसरों को सुखी बना सकें, दूसरों को शान्त कर सकें । प्रत्येक व्यक्ति के हृदय की भावना ही उसके शुभ या अशुभ जीवन का निर्माण करती है । एक पाश्चात्य विद्वान् ने कहा है
___“Heaven.and hell are in our conscience.'' ___ स्वर्ग और नरक, सुख और दुःख कहीं बाहर नहीं हैं, वे हमारे अन्दर में ही हैं । मनुष्य की जैसी भावना और जैसी बुद्धि होती है, उसी के अनुसार उसका जीवन सुखी और दुःखी बनता है और उसी के अनुसार उसे स्वर्ग एवं नरक की उपलब्धि होती है । सब कुछ भावना पर ही आधारित है।
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