Book Title: Samaj aur Sanskruti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 244
________________ व्यक्ति का समाजीकरण रचना करके वर्तमान समाज की प्रचलित दासता, विषमता और असहिष्णुता को सदा के लिए दूर करके समाजवाद स्वतन्त्रता, समता और भ्रातृत्व की वास्तविक स्थापना करना चाहता है । " परन्तु याद रखिए, समाजवाद वहीं पर पल्लवित और विकसित हो सकता है, जहाँ के व्यक्ति में सामूहिक एवं सामाजिक भावना का उदय हो चुका हो । एक विद्वान ने कहा है — “समाजवाद दो ही स्थानों पर काम करता है— एक मधुमक्खियों के छत्ते में और दूसरे चींटियों के बिल में ।" इसका अभिप्राय केवल इतना ही है, कि मधुमक्खी और चींटी में व्यापक रूप में सामाजिक भावना का उदय हुआ है । वर्तमान युग के तत्व-दर्शी कार्लमार्क्स ने अपने एक ग्रन्थ में कहा है – “समाजवाद मनुष्य को विवशता के क्षेत्र से हटा कर उसे स्वाधीनता के राज्य में ले जाना चाहता है ।" समाजवाद के सम्बन्ध में इस प्रकार के विभिन्न विचार हैं । फिर भी हमें यह सोचना है, कि समाजवाद समाज को ऐसी क्या वस्तु प्रदान करता है, जिसके कारण वह आज के युग में प्रत्येक राष्ट्र के लिए अथवा धरती के अधिकांश राष्ट्रों के लिए आवश्यक बनता जा रहा है । समाजवाद क्या है ? इस प्रश्न के उत्तर में कहा जाता है, कि समाजवाद एक आदर्श है, समाजवाद एक दृष्टिकोण है और समाजवाद जीवन की एक प्रणाली है । आज के युग में और विशेषतः राजनीति में वह एक विश्वास है, और है, एक जीवित जन-आन्दोलन । समाजवाद का राजनीतिक रूप, जैसा कि उसके पुरस्कर्त्ताओं ने प्रतिपादित किया है, यदि उसी रूप में वह समाज में स्थापित किया जाता है, तो वह समाज के लिए एक सुन्दर वरदान ही है, भीषण अभिशाप नहीं है । समाजवाद क्या चाहता है ? इस प्रश्न के उत्तर में कहा जाता है, कि समाजवाद, समाज की भूमि और समाज की पूँजी का सम वितरण चाहता है । वह समाज की भूमि और समाज की सम्पत्ति पर समाज का ही आधिपत्य चाहता है । समाजवाद का ध्येय है— एक वर्ग हीन समाज की स्थापना । वह वर्तमान समाज का संघटन इस प्रकार करना चाहता है, कि वर्तमान में परस्पर विरोधी स्वार्थों वाले शोषक और शोषित तथा पीड़क और पीड़ित वर्गों का अन्त हो जाए । समाज, सहयोग और सहअस्तित्व के आधार पर अघटित व्यक्तियों का एक ऐसा समूह बन जाए, जिसमें एक सदस्य की उन्नति का अर्थ स्वभावतः दूसरे सदस्य की उन्नति हो, और सब मिलकर सामूहिक रूप से परस्पर उन्नति करते हुए जीवन व्यतीत कर सकें । समाजवाद में व्यक्ति की अपेक्षा समष्टि की प्रधानता होती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only २३५ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266