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मानव जीवन की सफलता
कम अन्याय और अत्याचार कर सकेगा । इसका अर्थ यह नहीं है, कि शास्त्रकार किसी को बलवान् और किसी को निर्बल होने की भावना करते हैं । यहाँ पर कहने का अभिप्राय इतना ही है, कि मनुष्य-जीवन की वास्तविकता क्या है और मनुष्य ने अपने जीवन को किस रूप में समझा है तथा उसे अपने जीवन को किस रूप में समझना चाहिए ? राजकुमारी जयन्ती के प्रश्न के उत्तर में भगवान ने जो कुछ कहा है, उसका अभिप्राय इतना ही है, कि यदि तुम शक्तिशाली हो, तो उस शक्ति का उपयोग एवं प्रयोग अपने आत्म-कल्याण और अपने आत्मोत्थान के लिए करो । अपने विकास के लिए करो । शक्ति प्राप्ति का यह अर्थ नहीं है, कि तुम दूसरों के लिए भयंकर रुद्र बनकर दूसरो के जीवन के विनाश का ताण्डव नृत्य करने लगो । दूसरों के जीवन को क्षति पहुँचाने का तुम्हें किसी प्रकार का नैतिक अधिकार नहीं है । तुम अपने घर में दीपक जला सकते हो, यह तुम्हारा अधिकार है, किन्तु दूसरे के घर के दीपक को, जो कि उसने अपने घर के अँधेरे को दूर करने के लिए जलाया है, बुझाने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं है । तुम दान देते हो, अवश्य दो, यह तुम्हारा कर्तव्य है, किन्तु दान देकर उसका अहंकार मत करो । आपको मालूम है, जैन दर्शन के अनुसार दान शब्द का क्या अर्थ होता है ? दान का अर्थ है-संविभाग । दान का अर्थ देना ही नहीं है, बल्कि उसका अर्थ है-बराबर का हिस्सा बाँटना । एक पिता के चार पुत्र यदि अलग होते हैं, तो वे अपने पिता की सम्पत्ति का समविभाग करते हैं, न कि एक दूसरे को दान करते हैं । प्रत्येक पुत्र का अपने पिता की सम्पत्ति पर समान अधिकार है । पिता की सम्पत्ति पुत्र को दी नहीं जाती है, वह स्वतः उसे प्राप्त होती है । इसी प्रकार तुम दान करने वाले कौन होते हो, तुम्हें दान करने का कोई अधिकार नहीं है । समाज-रूपी पिता से तुम्हें जो कुछ भी सम्पत्ति प्राप्त हुई है, उसका संविभाग करो, उसे बराबर-बराबर बाँटो, समाज के सब व्यक्ति तुम्हारे भाई अपने हैं और तुम उनके भाई हो । एक भाई, दूसरे भाई को दान नहीं करता है, बल्कि वह उसका संविभाग करता है । दान में दीनता रहती है और संविभाग में अधिकार की भावना मुख्य रहती है । दान करते समय यह विचार रखो कि हम संविभाग कर रहे हैं, अतः दान के
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