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मानव जीवन की सफलता
का कष्ट और दुःख वह सहन नहीं कर पाता । यही सज्जन पुरुष की सज्जनता है । आचार्य ने सज्जन पुरुष का लक्षण बताते हुए कहा है, कि सज्जन पुरुष की विद्या, ज्ञान और विवेक के लिए होती है, विवाद के लिए नहीं । सज्जन पुरुष का धन दान के लिए होता है, भोग-विलास के लिए नहीं । सज्जन व्यक्ति की शक्ति अथवा बल दूसरों के संरक्षण के लिए होता है, दूसरों के वध के लिए नहीं । सज्जन पुरुष की विद्या स्वयं उसके जीवन के अन्धकार को तो दूर करती है, किन्तु उसके आस-पास में रहने वाले दूसरे व्यक्तियों के जीवन के अन्धकार को भी दूर कर देती है । विद्या एवं ज्ञान का एक ही उद्देश्य है-स्व और पर के जीवन के अन्धकार को दूर करना । यदि विद्या जीवन के अन्धकार को दूर न कर सके, तो उसे यथार्थ विद्या ही नहीं कहा जा सकता । यह कैसे सम्भव हो सकता है, कि आकाश में सूर्य भी बना रहे और धरती पर अन्धकार भी छाया रहे । सज्जन व्यक्ति अपने धन का उपयोग भोग-विलास भी पूर्ति में नहीं करता, दान में एवं दूसरों की सहायता में करता है । दान देना उसके जीवन का सहज स्वभाव होता है । सज्जन पुरुषों के दान-गुण का वर्णन करते हुए भारत के महाकवि कालिदास ने कहा है
___“आदानं हि विसर्गाय, सतां वारिमुचामिव ।" मेघ समुद्र से जल ग्रहण करके उसे वर्षा के रूप में फिर वापस ही लौटा देते हैं । किन्तु इस लौटाने में भी विशेषता है, मेघ महासागर से क्षार जल ग्रहण करते हैं और उसे मधुर बना कर लौटा देते हैं । सज्जन पुरुषों का स्वभाव भी मेघ के समान ही है । सज्जन पुरुष समाज से जो कुछ ग्रहण करते हैं, वे फिर समाज को ही लौटा देते हैं । परन्तु इस लौटाने में एक विलक्षणता होती है । दान करते समय सज्जन पुरुष के हृदय में यह भावना नहीं रहती है, कि मैं दान कर रहा हूँ । वे दान तो करते हैं, किन्तु दान के अहंकार को अपने मन में प्रवेश नहीं करने देते ।
दान से आदान ही है, पाना ही है । दान करना खाना नहीं है, बल्कि प्राप्त करना है । एक पाश्चात्य विद्वान ने कहा है-"What we gave, we have, what we spent, we had, what we left we lost.” जो कुछ हमने दिया है, वह हमने पा लिया जो कुछ हम खर्च कर चुके हैं उसे भी हमने कुछ पा लिया था, किन्तु जो कुछ हम यहाँ छोड़कर
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