________________
भारतीय दर्शन की समन्वय परम्परा
का अर्थ है–सब दुखों के आत्यन्तिक उच्छेद की अवस्था । जैन दर्शन में मोक्ष एवं मुक्ति और निर्वाण तीनों शब्दों का प्रयोग उपलब्ध होता है । जैनदर्शन के अनुसार मोक्ष एवं मुक्ति का अर्थ है- आत्मा की परम विशुद्ध अवस्था । मोक्ष - अवस्था में आत्मा स्व स्वरूप में स्थिर रहता है, उसमें किसी भी प्रकार का विजातीय तत्व नहीं रहता । सांख्य दर्शन में विकृति और पुरुष के संयोग को संसार कहा गया है और प्रकृति तथा पुरुष के वियोग को मोक्ष कहा गया है । न्याय और वैशेषिक भी यह मानते हैं, किं तत्वज्ञान से मोक्ष होता है । वेदान्त दर्शन मुक्ति को स्वीकार करता ही है, उसके अनुसार जीव का ब्रह्म स्वरूप हो जाना ही मुक्ति है । इस प्रकार भारत के सभी अध्यात्मवादी दर्शन, मोक्ष एवं मुक्ति का प्रतिपादन करते हैं । हम देखते हैं, कि मोक्ष के स्वरूप में और उसके प्रतिपादन की प्रक्रिया में भिन्नता होने पर भी, लक्ष्य सबका एक ही है और वह लक्ष्य है—बद्ध आत्मा को बन्धन से मुक्त करना ।
भारतीय दर्शनों में एक बात और है, जो सभी अध्यात्मवादी दर्शनों को स्वीकृत है वह है - अध्यात्म साधना । साधना सबकी भिन्न-भिन्न होने पर भी उसका उद्देश्य और लक्ष्य प्रायः एक जैसा ही है । अध्यात्मवादी दर्शन के अनुसार इस साधना को जीवन का आचार-पक्ष कहा जाता है । जब तक विचार को आचार का रूप नहीं दिया जाएगा, तब तक जीवन उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो सकती । प्रत्येक अध्यात्मवादी दर्शन ने अपने-अपने सिद्धान्त के अनुसार अपने विचार को आचार का रूप देने का प्रयत्न किया है । भारत में एक भी अध्यात्मवादी दर्शन ऐसा नहीं है, जिसके नाम पर कोई सम्प्रदाय स्थापित न हुआ हो । यह सम्प्रदाय क्या है ? प्रत्येक दर्शन का अपने विचार पक्ष को आचार में साधित करने के लिए एक प्रयोग - भूमि । सम्प्रदाय उस-उस विचार की अभिव्यक्ति है, जो उसके द्रष्टाओं ने कभी साक्षात्कार किया था । यही कारण है, कि भारतीय दर्शन में विचार और आचार तथा धर्म और दर्शन साथ - साथ चलते हैं । भारतीय दर्शनों की सबसे अधिक महत्वपूर्ण विशेषता यही, कि उनमें धर्म और दर्शन की समस्याओं में अधिक भेद नहीं किया गया है । भारत में धर्म शब्द का प्रयोग बड़े व्यापक अर्थों में किया गया है । वस्तुतः भारत में धर्म और दर्शन दोनों एक ही लक्ष्य की पूर्ति करते हैं । भारत के दर्शनों में धर्म केवल विश्वासमात्र ही नहीं है, बल्कि आध्यात्मिक विकास की विभिन्न अवस्थाओं और जीवन की विभन्न परिस्थितियों के अनुरूप
-
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
२०७ www.jainelibrary.org