Book Title: Samaj aur Sanskruti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 234
________________ भारतीय संस्कृति में अहिंसा तर्क के आधार पर भारतीय संस्कृति खड़ी नहीं रह सकती, और तर्क-विहीन श्रद्धा भी भारतीय संस्कृति को प्रेरणा प्रदान नहीं कर सकती । भारतीय संस्कृति के अनुसार श्रद्धा का पर्यवसान तर्क में होता है और तर्क का पर्यवसान श्रद्धा में होता है । यद्यपि धर्म का मुख्य आधार श्रद्धा है, और दर्शन का आधार तर्क है, किन्तु यह सब कुछ होते हुए भी भारतीय संस्कृति में हृदय को बुद्धि बनना पड़ता है और बुद्धि को हृदय बनना पड़ता है । हृदय की प्रत्येक धड़कन में, बुद्धि का विमल प्रकाश अपेक्षित रहता है और बुद्धि की प्रत्येक सूझ में श्रद्धा से सम्बल की आवश्यकता रहती है । यदि श्रद्धा और तर्क में समन्वय स्थापित नहीं किया गया, तो इन्सान का दिमाग आकाश में घूमता रहेगा और उसका दिल, धरती के खण्डहरों में दब जाएगा । मेरे विचार में मानवीय जीवन की यह सर्वाधिक विडम्बना होगी । भारतीय परम्परा में, फिर भले ही वह परम्परा वैदिक रही हो अथवा अवैदिक, प्रत्येक परम्परा ने आचार के साथ विचार को और विचार के साथ आचार को मान्यता प्रदान की है । यहाँ तक कि चार्वाक दर्शन, जो जड़वादी नास्तिकवादी और नितान्त भौतिकवादी है, उसके भी अपने कुछ आचार के नियम हैं । भले ही उस आचार-पालन का फल वह परलोक या स्वर्ग न मानता हो, पर समाज-व्यवस्था के लिए वह भी कुछ नियम तथा आचार स्वीकार करता है । एक बात और है, कि प्रत्येक परम्परा का आचार उसके विचार के अनुरूप ही हो सकता है । यह नहीं हो सकता कि विचार का प्रभाव आचार पर न पड़े, साथ में यह भी सत्य है, कि आचार का प्रभाव भी विचार पर पड़ता है । यही कारण है, कि भारतीय संस्कृति में, भारतीय परम्परा में और भारतीय समाज में, विचार और आचार में, ज्ञान और क्रिया में, श्रद्धा और तर्क में, धर्म और दर्शन में, समन्वय माना गया है । समन्वय के बिना समाज चल नहीं सकता । आपके सामने अहिंसा की बात चल रही थी । मैंने यह भी बतलाया था, कि कृषि-कर्म में हिंसा और अहिंसा को लेकर मध्ययुग में किस प्रकार का विवाद चला था, जिसका क्षीण आभास आज भी हमें उस युग के साहित्य में उपलब्ध होता है । विवाद की बात को छोड़कर यदि मूल लक्ष्य पर और मूल बात पर विचार किया जाए, तो निष्कर्ष यह निकलता है, कि जैन संस्कृति और जैन परम्परा का मूल आचार अहिंसा ही है । - २२५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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