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समाज और संस्कृति
विशाल समाज और व्यक्ति के बीच में अनेक छोटे-छोटे समूह होते हैं
और वे व्यक्ति के समाजीकरण के मुख्य साधन हैं । उदाहरण के लिए एक नवजात शिशु के समाजीकरण की प्रक्रिया उसके अपने घर से ही प्रारम्भ होती है । परन्तु जैसे-जैसे वह विकसित होता जाता है और जैसे-जैसे उसके जीवन के साथ अन्य समूहों का सम्बन्ध होता जाता है, वैसे-वैसे वह तीव्रगति से समाजीकरण करता जाता है । शिशु का सर्वप्रथम परिचय उसका अपनी माता से होता है, फिर पिता से, फिर भाई बहिनों से तथा बाद में परिजन और पौरजनों से । वही व्यक्ति आगे चलकर नगर से, प्रान्त से और एक दिन अपने सम्पूर्ण देश से समाजीकरण कर लेता है । जब किसी अन्य देश की सेना हमारे देश पर आक्रमण करती है, और हमारे देश की व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करने पर उतर आती है, तब देश में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति का सामाजिक एवं राष्ट्रीय स्वाभिमान जागृत हो जाता है और वह अपनी पूर्ण शक्ति से अपने अन्य देशवासियों के साथ मिल कर उस आक्रान्ता का विरोध करता है, और उसे पराजित करने के लिए, अपना सर्वस्व देश के लिए निछावर कर डालता है । व्यक्ति के समाजीकरण का यह एक सर्वोच्च रूप है । भले ही हमारे अपने देश में अनेक जातियाँ, अनेक वर्ग और अनेक सम्प्रदाय रहते हों, किन्तु विशाल समाजीकरण के द्वारा उस अनेकता में हम एकता स्थापित कर लेते हैं, क्योंकि देश की रक्षा और व्यवस्था में हम सबका समान हित है । कभी-कभी यह भी देखने में आता है, कि एक देश के दो वर्ग वर्षों से लड़ते चले जाते हैं, परन्तु जब देश पर संकट आता है, तब सब अपना विरोध भूल कर एक हो जाते हैं । यह सब क्यों होता है ? समाजीकरण के कारण ही । समाजीकरण की प्रक्रिया व्यक्ति के जीवन में जैसे-जैसे विकास पाती जाती है, वैसे-वैसे उसका जीवन वैयक्तिक से सामाजिक बनता जाता है । मेरे कहने का अभिप्राय इतना ही है, कि समाजीकरण का मुख्य साधन व्यक्ति के अन्दर रहने वाली सामाजिक भावना एवं समान हित की भावना ही है ।
जिस प्रकार समाजीकरण के साधन होते हैं उसी प्रकार समाजीकरण में कुछ बाधाएँ भी उपस्थित होती रहती हैं । जब समाजीकरण में किसी भी प्रकार बाधा उपस्थित हो जाती है, तब व्यक्ति का समाजीकरण नहीं हो पाता । एक व्यक्ति भले ही कितना भी महत्वाकांक्षी, कितना भी अधिक बुद्धिमान और कितना भी अधिक चतुर क्यों न हो, समय और
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