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समाज और संस्कृति
आपको मालूम है, इस प्रश्न के उत्तर में ईसा ने क्या कहा था ? ईसा ने कहा था—(Know thyself) कुछ भी करने से पूर्व अपने आपको समझो, अपने आपको जानो और अपने आपको तोलो । पहले सोचो, कि तुम क्या हो, फिर सोचो कि तुम क्या कर सकते हो ? जो कुछ तुम हो, उसी के अनुरूप तुम्हें करना चाहिए । अपनी शक्ति से अधिक सोचने और करने का अर्थ होगा, छल, प्रपंच और प्रतारणा । भले ही आप अन्य कुछ करें या न करें, परन्तु एक बात आपको अवश्य करनी है, और वह यह है, कि अपने प्रति ईमानदार रहो । यही सबसे बड़ी साधना है और यही सबसे बड़ी आराधना है । किसी भी प्रकार की साधना को स्वीकार करना कठिन नहीं होता, कठिन होता है, सच्चे मन से उसका पालन करना । जिस व्यक्ति को अपने पर श्रद्धा नहीं, अपने पर विश्वास नहीं, और जो केवल तर्क के अनन्त गगन में ऊँचा उड़ता रहता है, उसे कुछ भी प्राप्त नहीं हो सकता । तर्क और श्रद्धा में यदि चुनाव करना हो, तो पहले श्रद्धा का कीजिए, केवल तर्क-शील व्यक्ति अन्त में शून्य हो जाता है । जिस प्रकार प्याज का छिलका अलग करते-करते, छिलका ही निकल जाता है, शेष कुछ बचता ही नहीं, उसी प्रकार जो व्यक्ति अत्यधिक तर्क-शील होता है, उसके हाथ में शून्य के अतिरिक्त अन्य कुछ बचता नहीं है ।
कुछ लोगों के सोचने का तरीका अजीब होता है । मैं अपने मन में सोचा करता हूँ, कि इस प्रकार के विचार उनके मन में आए कैसे ? कहना है लोगों का, कि रोज-रोज जप करने से क्या होता है ? माला फेरने से क्या होता है ? प्रभु का ध्यान और स्मरण करने से क्या होता है ? मन तो हमारा जैसा है, वैसा ही रहता है, फिर रोज-रोज उसे इस प्रकार के व्यर्थ कार्य में क्यों लगाया जाय ? मैं कहता हूँ उनसे, कि तुम रोज भोजन क्यों करते हो ? शरीर तो वैसा है, वैसा ही रहेगा, फिर रोज भोजन करने से क्या लाभ ? यदि शरीर को शक्तिशाली बनाए रखने के लिए भोजन की आवश्यकता है, तो मन को शक्तिशाली बनाए रखने के लिए भजन की भी आवश्यकता है । लोटे को रोज न माँजा जाय, तो वह मैला पड़ जाता है, इसी प्रकार यदि मन को प्रभु के स्मरण और ध्यान में न लगाया जाय, तो वह भी मलिन बन जाएगा । जो व्यक्ति प्रतिदिन अपने घर में झाड़ू नहीं लगा पाता, तो उसका घर गन्दगी से भर जाता है । मैं आपसे यही कह रहा था, कि मन के घर को
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