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ज्ञानमयो हि आत्मा
करने का अर्थ यह है, कि सम्पूर्ण विशुद्ध आत्माओं को नमस्कार कर लिया ।
जैन-दर्शन के अनुसार पुद्गल भी अनन्त हैं, और जीव भी अनन्त हैं । एक द्रव्य की अपेक्षा भी अनन्तत्व माना गया है । जैसा कि पहले कहा जा चुका है, संसार का प्रत्येक पदार्थ अपने आप में अनन्त है, क्योंकि प्रत्येक पदार्थ में अनन्त-धर्म होते हैं और एक-एक धर्म की अनन्त पर्याय होती हैं । प्रश्न यह है, कि एक साथ अनन्त पदार्थों का ज्ञान कैसे होता है और वे अनन्त पदार्थ भी कैसे ? अनन्त भूतकाल के, अनन्त भविष्यकाल के और अनन्त वर्तमान काल के । और क्या ? एक-एक पदार्थ में - अनन्त-अनन्त गुण विद्यमान हैं और एक-एक गुण की अनन्त-अनन्त पर्याय हैं । एक पर्याय वर्तमानकाल की, अनन्त पर्याय भूतकाल की और अनन्त पर्याय भविष्य काल की हैं । पदार्थ की अनन्त पर्याय कैसे होती हैं, इसको समझने के लिए एक उदाहरण लीजिए । आपके सामने एक वृक्ष है और उस एक वृक्ष में हजारों-हजार पत्ते हैं। उनमें से एक पत्ता लीजिए । जिस पत्ते को आप इस वर्तमान क्षण में देख रहे हैं, क्या भूत-काल में भी वह वैसा ही था और क्या भविष्यकाल में भी वह वैसा ही रहेगा ? यदि आपको दर्शनशास्त्र का थोड़ा सा भी परिज्ञान है, तो आप यह नहीं कह सकते, कि यह पत्ता जिसे आप वर्तमान क्षण में प्रत्यक्ष देख रहे हैं, भूतकाल में भी ऐसा ही था और भविष्यकाल में भी ऐसा ही रहेगा । एक पत्ता जब जन्म लेता है, तब उसका रूप और वर्ण कैसा होता है ? उस समय उसके रूप अथवा वर्ण को ताम्र कहा जाता है, फिर धीरे-धीरे वह हरा हो जाता है और फिर धीरे-धीरे वह एक दिन पीला पड़ जाता है । ताम्रवर्ण, हरितवर्ण और पीतवर्ण एक ही पत्ते की ये तीन अवस्थाएँ बहुत स्थूल हैं । इनके बीच की सूक्ष्म अवस्थाओं का यदि विचार किया जाए, तो ताम्र से हरित तक, हजारों लाखों अवस्थाएँ हो सकती हैं और हरित से पीत तक करोड़ों अवस्थाएँ हो सकती हैं । वस्तुतः यह परिगणना भी हमारी बहुत ही स्थूल है । जैन-दर्शन के अनुसार तो उसमें प्रतिक्षण परिवर्तन आ रहा है, जिसे हम अपनी चर्म चक्षुओं से देख नहीं सकते । कल्पना कीजिए, आपके समक्ष कोमल कमल के शतपत्र एक के ऊपर एक गड्डी बना कर रखे हुए हैं । आपने एक सुई ली और एक झटके में उन्हें बींध दिया । नुकीली सुई एक साथ एक झटके में ही कमल के शतपत्रों को पार कर
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