Book Title: Samaj aur Sanskruti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 182
________________ ज्ञानमयो हि आत्मा केवल-ज्ञान के अतिरिक्त जितना भी ज्ञान है, वह सब सीमित ही रहता है । जानना ज्ञान का काम है । एक अणु से लेकर सम्पूर्ण विश्व तक जितने भी छोटे अथवा बड़े पदार्थ हैं, वे सब ज्ञान के विषय हैं, ज्ञान से वे जाने जाते हैं । पदार्थ अनन्त हैं, तो उनको जानने वाला ज्ञान भी अनन्त है । जैन दर्शन के अनुसार विश्व का प्रत्येक पदार्थ अपने आप में अनन्त है । क्योंकि प्रत्येक पदार्थ में अनन्त धर्म हैं और एक-एक धर्म की अनन्त-अनन्त पर्याय हैं । एक रज-कण से लेकर समग्र ब्रह्माण्ड भी अपने आप में अनन्त है । भले ही उसकी अनन्तता को देखने की शक्ति आज हममें न हो, पर आवरण के हटते ही हमारे ज्ञान में वह शक्ति आ जाती है, कि हम प्रत्येक पदार्थ के अनन्त धर्म और अनन्त पर्यायों को जान सकें । जैन-दर्शन के अनुसार प्रत्येक पदार्थ अपने आप में एक इकाई नजर आता है किन्तु वह इकाई अपने आप में अनन्त गुण लिए हुए है । एक-एक गुण की अनन्त-अनन्त पर्याय होती हैं । अनन्त भूत-काल की पर्याय और अनन्त भविष्य-काल की पर्याय । इसका अर्थ यह है, कि अतीत भी अनन्त है और भविष्य भी अनन्त है । अनन्त का ज्ञान अनन्त ही कर सकता है । इसका अर्थ यह है, कि जिस व्यक्ति ने किसी एक पदार्थ को सम्पूर्ण रूप में जान लिया है, तो वह अन्य सभी पदार्थों को सम्पूर्ण रूप में जान सकता है और जिसने एक को भी सम्पूर्ण रूप में नहीं जाना है, वह सम्पूर्ण को भी सम्पूर्ण रूप में नहीं जान सकता । 'आचारांग' सूत्र में श्रमण भगवान महावीर ने इस सम्बन्ध में बहुत ही सुन्दर सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है "जे एगं जाणइ से सबं जाणइ । जे सव्वं जाणइ से एगं जाणइ ।।" __ जो एक को जानता है, वह सबको जानता है और जो सबको जानता है, वह एक को जानता है । इस कथन का अभिप्राय यह है, कि जिसने एक भी पदार्थ का पूर्णज्ञान कर लिया, उसने समस्त विश्व को जान लिया । क्योंकि जो किसी भी एक पदार्थ को पूर्ण रूप में जान लेता है, वह अनन्त ज्ञानी होगा । अनन्त ज्ञानी में सब कुछ को जानने की शक्ति होती है । किसी भी एक पदार्थ के अनन्त धर्मों और उसकी अनन्त पर्यायों को जानने का अर्थ यह होता है, कि उसने सम्पूर्ण पदार्थ को पूर्ण १७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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