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मन ही साधना का केन्द्र-बिन्दु है
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था । केवल पुण्डरीकाक्ष के स्थान पर परमात्मा कहा गया है । जो व्यक्ति वीतराग परमात्मा का स्मरण करता है, वह अन्दर से पवित्र रहता है, मन से पवित्र रहता है, फिर बाहरी पवित्रता हो अथवा न हो, उसका अपने आपमें कुछ भी मूल्य नहीं है । मूल्य है, केवल मन की पवित्रता का ।
साधना के क्षेत्र में जो स्थान मन को मिला है, वह किसी अन्य साधन को नहीं मिल सका । मन क्या वस्तु है ? इस सम्बन्ध में प्राचीन साहित्य में बहुत लिखा गया है । आज के मनोविज्ञान में भी मन का विश्लेषण और मन की क्रियाओं का अध्ययन बड़ी सूक्ष्मता से किया जाता है । आज के विद्यालय और विश्वविद्यालयों में हजारों-लाखों छात्र एवं छात्राएँ अपने अध्ययन का विषय मनोविज्ञान को बनाते हैं । दसवीं कक्षा से लेकर और एम. ए. तथा पी. एच. डी. तक मनोविज्ञान का अध्ययन विधिवत् कराया जाता है । कहा जाता है, कि मनोविज्ञान आज के युग का एक दर्शन-शास्त्र है । अन्य दर्शन की अपेक्षा आज के युग में मनोविज्ञान बहुत ही लोकप्रिय हो चुका है । भारत की अपेक्षा विदेशों में तो इसका बहुत ही प्रचार और प्रसार होता जा रहा है । आपके मन में यह प्रश्न उठ सकता है, कि मनोविज्ञान का प्रचार इतना अधिक क्यों हो गया ? इस प्रश्न के उत्तर में यहाँ पर इतना ही कहना पर्याप्त होगा, कि मनोविज्ञान का हमारे जीवन से सीधा सम्बन्ध है । मनोविज्ञान जीवन का एक दर्शन है, एक जीवन का शास्त्र है और जीवन की एक कला है । हमारे किस विचार का प्रभाव हमारे शरीर पर क्या पड़ सकता है, मनोविज्ञान इसका बड़ा सुन्दर विश्लेषण करता है । हमारे विचारों का प्रभाव हमारे अपने परिवार पर, समाज पर और राष्ट्र पर कैसा पड़ता है ? मनोविज्ञान इसका भी सुन्दर विश्लेषण प्रस्तुत करता है । मन की वृत्तियों को समझने के लिए तथा जीवन को शान्त एवं सुन्दर बनाने के लिए मनोविज्ञान का अध्ययन परमावश्यक है । यद्यपि मैं इस बात को मानता हूँ, कि मानव-जीवन में प्रत्येक विद्या का अपना महत्व होता है, परन्तु अपने जीवन को समझने के लिए मनोविज्ञान का अध्ययन नितान्त आवश्यक है । इसकी उपयोगिता इसी पर निर्भर है, कि आज के युग में अधिकांश छात्र इसी को अपने अध्ययन का विषय बना रहे हैं । मनोविज्ञान के पण्डितों का यह दावा है, कि हम इसके अध्ययन के द्वारा समाज की समस्याओं को हल कर सकते हैं और राष्ट्र
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