Book Title: Samaj aur Sanskruti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 170
________________ मन ही साधना का केन्द्र-बिन्दु है सन्दर्भ में अध्ययन किया जाए । यदि आज के मनोविज्ञान और प्राचीन योग-शास्त्र का समन्वयात्मक दृष्टि से अध्ययन किया जाए, तो इस विषय पर नया प्रकाश पड़ सकता है, और एक नया चिन्तन आज की नवचेतना के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकता है । मनोविज्ञान हो अथवा योग-शास्त्र हो, और फिर भले ही उन दोनों में मन की वृत्तियों का कितना भी विश्लेषण क्यों न किया गया हो, पर यदि उसे जीवन में उतारने का प्रयत्न नहीं किया जाएगा, तो हमें उससे कुछ भी लान नहीं मिलेगा । अतः मन को समझने का प्रयत्न करो । भारत के प्राचीन साहित्य में एक अन्य प्रकार से भी मन पर विचार किया गया है । वह अन्य प्रकार है—गुणत्रय । गुण तीन माने गये हैं—तमोगुण रजोगुण और सत्वगुण । मनुष्य के मन में कभी तमोगुण अधिक रहता है, कभी रजोगुण अधिक रहता है और कभी सत्वगुण अधिक रहता है । तमोगुण क्या है ? जब आपके मन में किसी प्रकार की स्फूर्ति एवं स्फुरणा जागृत नहीं होती है, और जब मन आलस्य एवं तन्द्रा के अधीन हो जाता है, तब समझना चाहिए कि मन में तमोगुण की अधिकता है । तमोगुणी व्यक्ति का जीवन कुछ इस प्रकार का हो जाता है, कि किसी भी कार्य के करने में उसका मन लगता नहीं है । तमोगुणी व्यक्ति अध्यात्म-साधना तो क्या, लौकिक कामों के करने से भी जी चुराता रहता है । अजगर के समान पड़े रहना ही उसे अच्छा लगता है । तमोगुण आलस्य और तन्द्रा को बढ़ाता है, और वह व्यक्ति को इस सीमा तक पहुँचा देता है, कि पड़े रहने के सिवाय उस व्यक्ति को अन्य कुछ भी अच्छा नहीं लगता । तमोगुणी व्यक्ति किसी भी कर्म में अपने आपको लगां नहीं पाता है । क्रिया-हीनता और जड़ता ही तमोगुण का प्रधान लक्षण है । तमोगुणी व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त नहीं कर सकता । तमोगुणी व्यक्ति के जीवन में से यह सिद्धान्त निकल आता है, कि वह कहता है __“अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम । दास मलूका कह गये, सबके दाता राम ।।" तमोगुण से अभिभूत आलसी व्यक्ति कहता है कि, “जिसने चञ्चु दी है, वह चुग्गा भी देगा । फिर काम करने की क्या आवश्यकता है, बेकार में दौड़-धूप करने की क्या आवश्यकता है ?. अजगर किसी की - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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