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मनुष्य स्वयं दिव्य है
आत्म-विश्वास के बिना, आत्म-संयम भी असम्भव है । साधक के जीवन में निर्भयता आवश्यक है, किन्तु आत्म-विश्वासहीन व्यक्ति निर्भय नहीं बन सकता । आपको अपने जीवन में अन्य किसी पर विश्वास हो अथवा न हो, परन्तु अपने आप पर विश्वास अवश्य होना चाहिए, अन्यथा जीवन का विकास सम्भव नहीं है ।
जय और पराजय का चक्र सदा से घूमता रहा है । हार और जीत जिन्दगी में सभी को देखनी पड़ती है । इस दुनिया में ऐसा कौन-सा इन्सान है, जिसने अपनी जिन्दगी में हार ही हार देखी हो, कभी जीत न देखी हो, अथवा सदा जीत ही जीत देखी हो, कभी हार न देखी हो । याद रखिए, जय और पराजय, सफलता और असफलता तथा हार और जीत दोनों मिलकर ही हमारे जीवन को परिपूर्ण बनाती हैं । विश्वास रखिए हर हार जीत का पैगाम लेकर आती है । साहसी व्यक्ति जय और पराजय की भावना से ऊपर उठकर अपने कर्त्तव्य-पालन पर ही अधिक बल देता है । जीवन के लक्ष्य को मनुष्य नितान्त तन्मय होकर ही बेध सकता है । यह सच है, कि दिन से पहले रात का अँधेरा होता है, परन्तु यह भी उतना ही सुनिश्चित है, कि अंधकार के बाद फिर प्रकाश मिलेगा । असफलता से व्याकुल होना और सफलता का अहंकार करना, दोनों में ही जीवन का पतन सुनिश्चित है । उत्थान के लिए, यह आवश्यक है, कि हम अपने मन को न अहंकार में जाने दें और न पराजय की दीनता में ही उसका प्रवेश होने दें । भारतीय संस्कृति का यह कितना उज्ज्वल सिद्धान्त है, कि वह मनुष्य को हर मोर्चे पर लड़ने के लिए साहस और बल देकर, उसके विजयी होने का मार्ग प्रशस्त करती
- भोग और योग, जीवन के दो छोर हैं । ज्ञान और प्रकाश में मर्यादा के साथ, भोग से योग की ओर जाना ही, भारतीय संस्कृति का मूल-स्वर है । आप कहीं पर भी रहें और आप कहीं पर भी जाएँ, केवल एक बात को याद रखिए, आप जहाँ भी जाएँ और जहाँ भी रहें, ईमानदारी के साथ जाइए और वहाँ ईमानदारी के साथ रहिए । मैं आपसे बार-बार एक ही बात कहना चाहता हूँ, कि जो भी आप करना चाहें, उसे खुले रूप में कीजिए । किसी भी कार्य को छुपकर करना एक प्रकार का आत्म-हनन है । ईसा ने अपने शिष्यों को एक बड़ा सुन्दर उपदेश दिया था । पूछा था शिष्यों ने उनसे, हम क्या करें, किस रास्ते पर चलें ?
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