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जीवन की क्षण-भंगुरता
था और कसाई की छींक पर कुछ और ही कहा है । इधर सम्राट श्रेणिक के सुपुत्र और उनके राज्य के महामंत्री अभयकुमार, जो उसी धर्म-सभा में बैठे उपदेश सुन रहे थे, उन्हें भी छींक आईं और उनकी छींक को सुनकर उस देवता ने कहा-"चाहे जी, चाहे मर ।" श्रोताओं के मन में छींक के उत्तर में इस प्रकार भिन्न-भिन्न विचार सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ । आश्चर्य की बात भी है, कि छींक की क्रिया सबकी समान होने पर भी जो कुछ कहा गया, वह एक न था । एक के लिए कहा, जीते रहो । दूसरे के लिए कहा, न जी, न मर । तीसरे के लिए कहा-चाहे जी, चाहे मर । प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में यह जिज्ञासा उठ सकती है, कि आखिर इसमें रहस्य क्या है ? रहस्य को जानने की अभिलाषा प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में सहज भाव से उठा करती है । भगवान महावीर जो सर्वज्ञ और सर्वदर्शी थे, उन्होंने अपनी मंगलमय वाणी में इस रहस्य का उद्घाटन करते हुए कहा- "इस देव ने जो कुछ कहा है, वह ठीक ही कहा है । राजा श्रेणिक के लिए उसने जो यह कहा है, कि जीते रहो, यह ठीक ही है । क्योंकि श्रेणिक मगध का सम्राट है, वह अपने राजनीति के शासन से प्रजा का पालन करता है । इस जीवन में धन, वैभव और ऐश्वर्य सब कुछ मिला है, किन्तु यहाँ से मरने के बाद यह नरक में जाएगा, जहाँ दुःख ही दुःख है । अतः उसके लिए शुभ आकांक्षा की है । जीते रहो, मरोगे तो नरक में जाना पड़ेगा । राजकुमार अभयकुमार के लिए कहा, कि चाहे जी, चाहे मर ! इसका अभिप्राय यह है, कि अभयकुमार का जीवन एक शानदार जीवन है । इस जीवन में उसे अपार वैभव और ऐश्वर्य मिला है । अपने वर्तमान जीवन में भी वह संसार के कल्याण का काम कर रहा है । इस प्रकार का व्यक्ति जब तक जिए तब तक अच्छा ही है और मरने के बाद भी वह सद्गति में ही जाने वाला है, अतः इस आत्मा के लिए देव ने कहा है, मरे तो भी ठीक और जिए तब भी ठीक । उसके दोनों हाथों लड्डू हैं । इस हाथ का खाए तब भी मीठा और उस हाथ का खाए तब भी मीठा । न इस हाथ का कड़वा है और न उस हाथ का कड़वा है । अभयकुमार के लिए जीवन भी शानदार है और मरण भी शानदार है । काल शौकरिक कसाई के लिए कहा है—“न जी, न मर ।" यह ठीक ही कहा है, क्योंकि वह कसाई पाँच-सौ भैंसों की रोज हत्या करता है, जब तक वह जिएगा हिंसा ही करता रहेगा, असत् कर्म ही करता रहेगा । अतः उसका जीना अच्छा
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