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समाज और संस्कृति
हिरन और अन्य छोटे-मोटे जीव-जन्तु निश्चिन्त होकर इधर-उधर घूमने लगते हैं और मनचाहा हल्ला मचाते हैं । उस समय ऐसा मालूम पड़ता है, कि जैसे सारे जंगल के राज्य में अराजकता छा गई हो । ऐसा लगता है, कि जैसे वन के राजा सिंह के जीवन का कोई अस्तित्व ही न रहा हो । बड़ी विचित्र स्थिति होती है, उस समय, जब कि वन का राजा सिंह निद्राधीन होकर प्रसुप्त पड़ा रहता है । और जब वन का राजा सिंह जागृत होता है, और जागृत होने पर एक गर्जना करता है और एक दहाड़ मारता है, तब सारा वन काँपने लगता है, पहाड़ काँपने लगते हैं, आस-पास के जितने भी प्राणी, जो कि अभी तक इधर-उधर दौड़ लगा रहे थे, वे भागकर इधर-उधर अपना सिर छुपाने की कोशिस करते हैं, सारे वन में सन्नाटा छा जाता है । बात क्या है ? जब सिंह सो रहा था, तब भी तो वह सिंह ही था या गीदड़ और कुछ नहीं हो गया था । और जब जाग उठा, तब भी सिंह ही है, और कुछ नहीं हो गया है । और ऐसा भी नहीं होता कि सिंह जब सोता है, तब उसके दोचार नख और दाँत गायब हो जाते हैं और जब जागता है, तब दो-चार नख और दाँत नये पैदा हो जाते हैं । फिर भी सिंह के सोने और जागने में कितना अन्तर है । निद्रा की अवस्था में सिंह में किसी भी प्रकार का भान नहीं रहता, जब कि जागृत अवस्था में उसे अपनी शक्ति का भान रहता है । निद्रावस्था में उसकी शक्ति प्रसुप्त हो जाती है और जागृत अवस्था में उसकी शक्ति जाग उठती है । सिंह के जागृत होते ही वन की अराजकता फिर शान्ति में बदल जाती है । फिर किसकी ताकत है, कि उस वनराज के सामने कोई भी प्राणी उसकी शान्ति को भंग कर सके । सिंह सो गया था, तो उसकी शक्ति भी सो गई थी
और सिंह जागा तो उसकी शक्ति भी जागृत हो गई । जब शक्ति सो गई तो उसका मूल्य नहीं रहा और जब शक्ति जागृत हुई तो उसकी एक हुँकार से सारा वन प्रकम्पित हो उठा ।
आत्मा के सम्बन्ध में भी यही स्थिति है । जब साधक की आत्मा मोह-निद्रा के अधीन होकर सो जाती है, उस समय उसे अपनी अनन्त शक्ति का भान नहीं रहता । शक्ति का भान नहीं होना ही आत्मा का शक्ति-हीन हो जाना है । अज्ञानता की स्थिति में साधक अपने स्वरूप पर आक्रमण करने वाले काम एवं क्रोध आदि विकारों का यथेष्ट प्रतिकार नहीं करने पाता । कुछ साधक कभी-कभी पूछा करते हैं, कि क्रोध आता
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