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अध्यात्म-साधना
फिर विनम्र-भाव से बोला-"मेरा परम सौभाग्य है, कि आज आप मेरे द्वार पर पधारे, मैं आपकी क्या सेवा करूँ ।" राजा ने अपने आने का प्रयोजन बतलाते हुए कहा-“मैं आज एक विशेष प्रयोजन लेकर आपके पास आया हूँ । आप भगवान महावीर के उत्कृष्ट भक्त हैं और मैं भी भगवान महावीर का एक तुच्छ सेवक हूँ । आपका और मेरा यह धार्मिक बन्धुभाव है, आप प्रतिदिन सामायिक करते हैं, एक दिन की सामायिक मैं खरीदना चाहता हूँ और इसके बदले में जितना भी धन आपको चाहिए, आप मुझसे ले सकते हैं ।" राजा की इस बात को सुकर पूनिया श्रावक गम्भीर हो गया और मन्द मुस्कान के साथ बोला-"मैंने कभी सामायिक का व्यापार नहीं किया है, अतः मुझे नहीं मालूम कि एक सामायिक का क्या मूल्य होता है ? जिस किसी ने भी आपको सामायिक खरीदने का परामर्श दिया है, आप उसी से पूँछे, कि सामायिक का क्या मूल्य होता है ?"
राजा श्रेणिक ने अपने मन में सोचा, “यह बात बन जाएगी । मालूम होता है कि पूनिया अपनी सामायिक देने के लिए तैयार है, अब केवल सामायिक की कीमत निर्णय करने का ही काम रह गया है।"
राजा श्रेणिक तुरन्त भगवान की सेवा में पहुँचा । भगवान को वन्दन और नमस्कार करके बोला-"भगवन् ! आपकी कृपा से सामायिक खरीदने का प्रश्न प्रायः हल हो गया है । अब तो केवल इतना ही शेष रहा है, कि सामायिक का मूल्य क्या है, इसका निर्णय आप कर दें ।" भगवान् ने शान्त स्वर में कहा-"श्रेणिक ! सामायिक एक अध्यात्म साधना है । वह अपने में एक अमूल्य वस्तु है, मूल्य भौतिक पदार्थ का हो सकता है, अभौतिक पदार्थ का नहीं । फिर भी यदि तुम सामायिक खरीदना चाहते हो, उसकी कीमत मैं तुम्हें क्या बतलाऊँ । तुम्हारे सम्पूर्ण राज्य का धन सामायिक की कीमत तो क्या चुका सकेगा, जितना तुम्हारे निधि में और तुम्हारे राज्य में धन है, उतना धन तो उसकी दलाली भी पूरी न कर सकेगा । यदि धरातल से लेकर चन्द्रलोक तक स्वर्ण का ढेर लगा दिया जाए, तब भी आध्यात्मिक साधना के एक क्षण की दलाली का मूल्य नहीं दिया जा सकता, असली मूल्य की तो बात ही क्या ? श्रेणिक ! और तो क्या, समस्त संसार का धन भी यदि एकत्रित कर लिया जाए, तब भी उससे सामायिक खरीदी नहीं. जा सकती । सामायिक एक अध्यात्म-साधना है, वह व्यापार की वस्तु नहीं है । न तुम उसे खरीद सकते हो और न पूनिया उसे बेच ही सकता है ।" राजा श्रेणिक भगवान के कथन के गूढ़ रहस्य को समझ चुका था । विनम्र होकर
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