Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 1
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Ramchandra Khinduka
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*.आमेर भंडार के अन्य *
संबन ६. अन्त में लबक ने अपना भी परिचय दिया है लेकिन ६० से आगे के गुन एक दूसरे के चिपकने से पड़ने में नहीं प्रामकतं । कर्मकांड सटीक ।
___ग्रंथ कर्ता श्री नेमिचन्द्रानागें । भाषा प्राकृत । टीकाकार श्री मुमतिकीत्ति मूरि । भाषा संस्कृत । पत्र संख्या १०. साइज ??x.11 इञ्च ! ग्रंथ प्रभाग १३७५. शोक लिपि संवन् १७७६ ।
प्रति नं०२. पत्र नंम्मा ५. माइज ११४था इञ्च । लिपि संवन १६२२ ।
कमचुम्बनोद्यापन।
चिता श्रीलनीसेन । भाषा हिन्दी । पत्र संख्या ५. साइज .x। उन्च । लिपि संवत् १८५८. कर्मदान पूजा।
रचयिता अज्ञात । भाषा संस्कृत । पत्र संख्या १३. माइज १:४५11 इश्च ।
प्रति नं० २. पत्र संख्या १५. साइज ?Alx५ इञ्च कर्मप्रकृति ।
मूलकत्ता आचार्य नेमिचन्द्र । टीकाकार अज्ञात । भाषा प्राकृत-संस्कृत। पत्र संख्या ४६. साइज ax॥ इन्न । विनय-गोम्मटसार क्रम काराष्ट्र की मुख्य गाथाओं का संकलन और उन पर संस्कृत में टीका । टीका सरल और स्पष्ट है । लिपि संवत् १५७७. मंडलाचार्य श्री धर्मचन्द्र के शासनकाल में खंडलबालबंशोत्पन्न श्री प यादल ने नागपुर नगर में प्रथ की प्रतिलिपि कराई।
प्रति नं० पृष्ठ संख्या १४. साइज ०४४.३च । जिपि संवत ८००, . प्रति नं० ३. पृष्ठ संग्या इ. साइज १७/१४ इन्च । केवल मूल है। प्रासंख्या : प्रति नं. ४ पृष्ठ संख्या साइनाइच । ' प्रति न० ५. पृष्ठ संख्या १४. साइज १०x४|| इश्च ।
प्रति नं० ६. लंख्या २०..साइन-४ च । जिपि संवत १७६२..श्रीमान्दरामजी के लिए श्री हेमराज ने लिखी।