Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 1
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Ramchandra Khinduka

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Page 202
________________ *- सहारशास्त्र संचार के माय * '४ाचा श्रावकाचार । चिता श्री.बुलाकीदास । सा हिन्दी का 'पक संस्था का साइज इ.] प्रद ४६ यत्तस्थापकाचार चयिता भट्टारक की सफारतकोनि। मात्रा मस्कृत। पनन्न वा १२.इन रx२ अस.। लिकि संवत् २३ - प्रति प्रण है। लिपिका कारा मिली हुई पारित है। ३४७:प्रायश्चित ग्रंथ स्वविता ये इंद्रजन्टि। मार कृत : पृष्ट सहपा २३ साइज शाइन लिपि संवत् १८४६ लिपिस्थान जयपुम्न १५-प्रायश्चित विनिश्चय वृर्ति २५ वृत्तिकार श्री नन्दिगुरु भाषा संहता पसन्या र साइज इञ्च । विपि संवत् १८रकअन्क श्वेताम्पर सम्प्रदायका हैं । लिपिस्थान जयपुर। २४६ प्रायश्चित-शास्त्र चिता अज्ञात । माया संस्कृत । पच-सख्या साहजEOXXइम । पसरा . ४० प्रायश्चित विधान है। मापा लंकृता पत्र संख्या ५ सम्इज Ext र लिपि स्वन १६७४ भट्टास्क श्री महेंद्रकीर्ति जी में मने पल्ले केलवे रक्त विमान की प्रतिलिपि.की थी। पदा संख्या-- १६:५१. पाण्डव पुराण । __ स्वयिता पंडितः भूधरदासजी भाषा हिन्दी पचान पत्र संख्या ११३. साइज'१०रणा ईञ्च । प्रत्येक पृष्ठ पर ११-पंक्तियां तथा प्रति पंक्ति में 1-३५ अक्षर । रचना संवत् १७८६ लिपि संवत् १९१८. प्रति पूर्ण है. तथा शुद्धदै । मिपिकर्ता श्री छीतरमल । प्रशस्ति दै.. १२ पारडव पुराण . . . . . . . . . . . . . . . स्थयिता श्री पं० बुलाकीदास भापा-हिनी पयम पत्र संख्या ३२४: साईज शाइ लिपि संवत् १६० प्रति क्वीनत्तथा-सुन्दर है।-- . . . . . . . . . एक सौ-चौरानवे

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