Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 1
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Ramchandra Khinduka
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* श्री महावीर
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&lixs: । प्रत्येक पृष्ठ पतियां तथा प्रति पंक्ति में ४०-४४ अजर। २५४ पट पाहुद्द सटीक ।
टीकाकार श्री अतसागर । पत्र संख्या १६४. साइज १:४५ इन्च । लिपि संवत् १८३१. दीवान नंदलाल ने भट्रारक श्री सुरेंद्रकीत्ति जो के लिये प्रन्य की प्रतिलिपि करवायी। लिपि स्थान-जयपुर । प्रति पूर्ण है तथा सुन्दर है। २५५ पार पाहुड ।
रचयिता कुन्दकुन्दाचार्य । भाषा प्राकृत । पत्र संख्या ६१. साइज १२४५शा इञ्च । संस्कृत में अनुवाद भी है। २५६ पाडसकारणोद्यापन पूजा । .
रचयिता श्री सुमतिसागर देव । भाषा संस्कृत । पत्र संख्या १६. साइज ११४५ इन्च ।
: २५७ संग्रहणी मूत्र ।
रचविता श्री हेमसूर । भाषा प्राकृत । पत्र संख्या ५७. साइज ११४।। इञ्च । लिपि संवत् १७८४. पंथ श्वेताम्बर संप्रदाय का है। अनेक प्रकार के चित्रों के द्वारा स्वर्ग नरक के सिद्धान्तों को समझाया गया है।
२५८ सप्तव्यसन कथा।
रचयिता अज्ञात | भाषा संस्कृत । पत्र संख्या ३४४. साइज ८४६|| प्रत्येक पृष्ठ पर पंक्तियां तथा ति पंक्ति में २२-२६ अक्षर । प्रति अपूर्ण है। प्रति सटीक है। सात व्यसनों पर अलग २ कथायें हैं। भापा सुन्दर तथा सरल है।
२५ सप्तसयन कया।
रचयिता प्राचार्य सोमकीर्ति । भाषा संस्कृत ! पत्र संख्या ३०. साइज ८४६ इञ्च। प्रति अपूर्ण है पन्तिम पत्र नहीं है।
प्रति नं० २. पत्र संख्या ८६. साइज ११४५३। इञ्च ।
... २६० सप्तऋपिपूजा।
रचयिता भट्टारक श्री विश्वभूषण । भाषा संस्कृत । पत्र संख्या २०. साइज १४|| ३श्च ।
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दोसौ दस