Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 1
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Ramchandra Khinduka

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Page 220
________________ * श्री महावीर शास्त्र मंडार के थ २६६ सर्वार्थसिद्धि | रचयिता श्री पूज्यपाद स्वामी । भाषा संस्कृत | पत्र संख्या १४१. साइज १०/१५ इन्च | लिपि संवत् १५७२. प्रशस्ति है । प्रति पूर्ण है। २६७ सहस्रनामजिनपूजा | स्तोत्रकर्त्ता आचार्य जिनसेन । पूजाकर्त्ता श्री धर्म्मभूषण । भाषा संस्कृत | पत्र संख्या ७४. उत्येक पत्र पर १० पंक्तियां तथा प्रतिपक्ति में ३०-४२ अक्षर लिपि संवत् १८८१: लिपिकर्ता पंडित चंपारामजी । प्रति नत्रीन है। २६= सहस्रगुपूजा | रचयिता साधु श्री पी था । भाषा संस्कृत | पत्र संख्या ७० साइज १०५ इश्र्व । प्रति पूर्ण तथा नवीन है । २६६ सागर धर्मामृत | रचयिता महापंडित आशावर । भाषा संस्कृत | पत्र संख्या १४६. साइज १०३४५ ईश्व । लिपि संवत् १८१६. लिकित्ता पं० गुमानीराम प्रति सटीक है । टीका का नाम कुमुदचन्द्रिका है।' 1 3: २७२ सामायिक वनका | ' क प्रति नं० २. पत्र संख्या ६६. साइज १०४५ || इ | लिपि संवत् १६११. प्रति नवीन है । 'लिखावट सुन्दर है। लिपिकर्त्ता द्वारा लिखी हुई । प्रशस्ति भी है। प्रति नं० ३. पत्र संख्या १२६. साइज २०४७ । लिपि संवत् १७७१. लिपिकर्ता महारक श्री जगत्कीर्त्तिनी । लिपिकर्त्ता ने महाराजा जयसिंहजी जयपुर का उल्लेख किया है। प्रति सटीक है। २७० सामायिकपाठ भाषाकार श्री श्यामलाल । भाषा हिन्दी पद्य । पत्र संख्या ३५. साइज ६x४ इञ्च रचना संवत् १०४६. लिपि संवत् १६२१. भाषाकार ने अपना परिचय भी दिया है। २७१ समायिक पाठ भाषा । 50 Rep मूल कर्त्ता श्राचार्य प्रभाचन्द्र । भाषाकार श्री त्रिलोकेंद्रकीति, भाषा हिन्दी गय; रचना संवत् १८११. भाषा विशेष अच्छी नहीं है । प्रति पूर्ण है । I 1pm zeal piss 137 7 भाषा कर्त्ता अज्ञात | हिन्दी गद्य । पत्र संख्या ६३, लिपि संवत् १७२० लिपि स्थान चाट दोसौ बारह

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