Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 1
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Ramchandra Khinduka
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* श्री महावीर शास्त्र भंडार के ग्रन्य *
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तरह विषय का वर्णन किया गया है। लिपि संवत १८६०. चार परिच्छेद हैं। ग्रन्थ पूर्ण है। चाणक्य और राक्षस के सन्देशों का आदान प्रदान किया गया है । गद्य भाषा में होने से प्रन्थ का विशेष महत्व है। १६१ पुरुषार्थानुशासन ।
रचयिता श्री गोविन्द । भाषा संस्कृत । पत्र संख्या ७३. साइज ११४५ उच्च । प्रारम्भ के तीन पृष्ठ नहीं है । प्रशस्ति तीन पृष्ट की है। अन्तिम भाग इस प्रकार है
इति गोबिन्द चिले पुनपार्थानुशासने कायस्थ माथुर वंशावतंस लक्ष्मण नामांकित मोक्षार्थ ख्यान । नाम पष्टमोवसरः। १६२ पुष्पांजलि व्रतोद्यापन । .
रचयिता धर्मचन्द्र के शिष्य श्री गंगादास । पत्र संख्या ८. साइज ११||४६ इश्च लिपि संवत् १६६५. " १६३ पूजा संग्रह।
भ.पा हिन्दी । पत्र संख्या २१. साइज ६४६।। इञ्छ । आदिनाथ, अजितनाथ तथा संभवनाथ जी की
पूजा है।
प्रति नं० २. पत्र संख्या ५०. साइश ३४६॥ इञ्छ । प्रति प्राचीन है । प्रति में निम्न पूजा हैं । १ चतुर्विशतिपाठ २ चन्द्रप्रभपूना... . .. ..... . ..... ३ मल्लिनाथ पूजा
प्रति नं० ३. पत्र संख्या ४४. साइज १२x६ इञ्च । चतुर्विशति जिनपूजा रामचन्द्र कृत है। प्रति जीणे हो चुकी है।
प्रति न० ४. पत्र संख्या ४१. साइज ११॥४६ इञ्च । आदिनाथ से नेमिनाथ तक की पूजायें है।
प्रति नं० ५, पत्र संख्या ४२.. साइन ११४६ . इन। भाषा संस्कृत । 'आदिनाथ से पार्श्वनाथ तक पूजायें है।
प्रति नं० ६. पत्र संख्या ४६. साइज १३।।४।। इश्व । भाषा हिन्दी। आदिनाथ से अरहनाथ तक: की पूजायें हैं।
एक सौ छियानवे ..