Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 1
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Ramchandra Khinduka
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संबोधपंचाशिकगाथा |
अज्ञात | पत्र संख्या - साइज १०५ । भाषा अपभ्रंश लिपि संवत् १७१४. लिपिकर्त्ता
आनंदराम |
* आमेर. भंडार के अन्
समयसार नाटक |
रचयिता महाकवि बनारसीदास । गद्य टीकाकार श्री रूपचंद भाषा हिन्दी । पत्र संख्या १३७. साइज १२४५|| इ | लिपि और टीका संवत् १७२३. नहाकवि बनारसीदास के समयसार पर श्री रूपचन्द गद्य भाषा में अर्थ लिखा है ।
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प्रति नं० २ पत्र संख्या १२०. साइज ११५४ इञ्च ।
समयसार ।
रचयिता - श्री अमृतचन्द्राचाय भाषा संस्कृत | पत्र संख्या १७. साइज ६६ इव । लिपि संवत्
१८२२.
समयसार ।
६
मूल कर्त्ता श्राचार्य कुन्दकुन्द संस्कृत में अनुवादक आर्य अमृतचन्द्र । हिन्दी टीकाकार अज्ञात | पत्र संख्या २३४. भाषा-संस्कृत-हिन्दी साइज ११||४५ इव । प्रत्येक पृष्ठ पर पंक्तियां और प्रति पंक्ति में ४२-४६ अक्षर | हिन्दी टीका बहुत सुन्दर है । लिपि संवत् नहीं दे रखा है किन्तु प्रति प्राचीन मालूम देती है । --
समयसार कलश ।
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मुलकर्त्ता श्री अमृतचन्द्राचार्य । भाषाकार श्री बनारसी भाषा-संस्कृत-हिन्दी पत्र संख्या
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15 २१८. साइज १०x६ इल ।
प्रति नं २. पत्र संख्या १०८. साइज १९१२५ इव । लिपि सं १ श्री देवेन्द्रकीति के शिष्य ने पढने के लिये. इस प्रन्थ को प्रतिलिपि बनायी ।"
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प्रति नं०. ३ पत्र संख्या ६६. साइज ११३८ । लिखित १७ निविस्थान आमेर । आरम्भ के १६. पृष्ठ नहीं हैं।
प्रति न० ४ पत्र संख्या १०१. स. ११४५॥ इ । मन्थ में दो तरह के पुत्र है एक प्राचीन तथा दूसरे नवीन | अन्त का एक पृष्ठ नहीं है ।
एक सौ पैंतीस