Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 1
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Ramchandra Khinduka

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Page 190
________________ * श्री महावीर शास्त्र भंडार के ग्रन्थ t १८४७. भट्टारक श्री सुरेंद्र कीर्ति ने ग्रन्थ की प्रतिलिपि बनावी प्रति सटीक है। कठिन शब्दों का अर्थ संस्कृत में दे रखा है ! ६७ जगमाल । रचयिता श्र मुनि यशः कीति भाषा अपभ्रंश पत्र संख्या ११२ साइज १९९५ इञ्च | विषय वैद्यक | ६८ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति | रचयित-अज्ञात भाषा संस्कृत | पृष्ठ संख्या २०. साइज ११||४|| च प्रत्येक पृष्ठ पर १४ पंक्तियां तथा प्रति पंक्ति में ४६२० अक्षर | लिपि संवत् १४६२ माह सुडी २५ लिपि कर्त्ता ने प्रशस्ति लिखी है। लिपि स्थान तज्ञकगड | लिति कर्त्ता ने सोल की वंशोत्पन्न राज सेवदेव के राज्य का उल्लेख किया है। ६εजम्बूस्वामीचरित्र | रचयिता ब्रह्म श्री जिनदास । भाषा संस्कृत । पृष्ठ संख्या १०६ साइज १६३०. लिपि स्थान जयपुर । अन्यकर्त्ता और लिपिकार दोनों ही के द्वारा की प्रति पूरा है। ७० जलयात्राविधि I पति ०२ पत्र संख्या २०६ साइज १०।४४ इञ्च । लिपि संवत् १६६२. लिपि कर्त्ता ने आमेर के महाराजा मानसिंह का उल्लेख किया गया है । अन्तिम पृष्ठ नहीं है । | पन्न संख्या २ भाषा संस्कृत | साइज ११||४५ | प्रति प्राचीन है । ११४४ || इ | लिपि संवत् प्रशस्तियां लिखी हुई हैं । ७ १ जातककर्मपद्धति । रचयिता श्री श्रीपति । भाषा संस्कृत | पत्र संख्या ५. साइज ||४|| इञ्च | लिपि संवत १६३७. प्रति नं० २. पत्र संख्या ६. साइज ६||४|| इञ्च । लिपि संवत् १६४५. एक सौ विवासी i ७२ जिंनांतर । लिपिकर्त्ता पं० चिंतामणी । भाषा संस्कृत | पत्र संख्या ६. लिपि संवत् १७०८. विषय तीर्थंकरों के समयान्तर आदि का वर्णन किया ।

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