Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 1
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Ramchandra Khinduka
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* श्री महावीर शास्त्र मंडार के ग्रन्थ *
८० जैन सिद्धान्त उद्धरण ।
संग्रहकना अज्ञात । भाषा संस्कृन । पत्र संख्या १७, साइज १०||४४ इञ्च । अजैन ग्रन्थों में जैन सिद्धान्त के उद्धरणों को दिखलाया गया है। ८१ ज्योतिषसारसंग्रह।
रचयितः श्री मुनादित्य । भाषा संस्कृत । पत्र संख्या =. साइज ११४५|| इञ्छ । लिपि संवत् १८३८. लिपिकता भट्टारक श्री नरेंद्रकीर्ति ।
८२ णमोकार पूजोद्यापन।
रचयिता श्री अक्षराम . भाषा संस्कृत । पन संख्या ५. साइज ११४५ इञ्च । प्रशस्ति दी हुई है।
८३ तत्वार्थ सूत्र ।
रचयिता श्री उमावानी । भाषा संस्कृत । भट्टारक श्री देवेन्द्रकोत्ति ने उक्त शास्त्र की प्रति लिपि । बनायी। प्रति सुनहरी अक्षरों में लिखी हुई है। शास्त्र के दोनों ओर के कागजों पर सुन्दर वृक्षों के चित्र भी हैं। ८४ तत्वार्थ सूत्र भापा।
भापकिार अज्ञात । पत्र संख्या ७२. माइज ११४५ उच्च । प्रत्येक पृष्ठ पर ११ पंक्तियां तथा प्रति पंक्ति में ३३-३६ अक्षर ! भाषा सरल तथा सुन्दर है। लिपि संवत १६१२. आसोज बुदी १. लिपि कना पं. शालगराम ।
प्रति नं०२ पत्र संख्या ६०. साइज १०||६|| इन्च । प्रति नवीन है। लिपि सरत् १६७५ । ८५ तत्त्वार्थमूत्रवृति ।
वृत्तिकार श्री श्रुतसागर । भाषा संस्कृत । पत्र संख्या २६१. साइज १४५| इश्च । प्रत्येक पृष्ठ पर १२ पंक्तियां तथा प्रति पंक्ति में ४४-४७ अक्षर । लिपि संवत् १७४०, लिपिकर्ता यावा सांबलदास | पांडे श्री लक्ष्मीदास ने ग्रंथ की प्रतिलिपि बनायी। प्रति सुन्दर तथा स्पष्ट है।
प्रति नं० २. पन्न संख्या ४५. साइज १०||४५ इञ्च । प्रति अपूर्ण है। पंचम अध्याय तक है प्रथ है। ८६ तत्वार्थ सूत्रवृति ।
____ वृत्तिकार श्री योगदेव । भाषा संस्कृत । पत्र संख्य ८२. साइज ११॥४५ इन्च । सूत्रों का अर्थ सरल
एक सौ चौरासी