Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 1
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Ramchandra Khinduka
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१०२ धर्मपरीक्षा ।
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रचयिता श्री दत्त गौड़ भरा हिन्दी पत्र संख्या १२४ साइज ६४६ इव । रचना स्थान धामपुर । प्रति नवीन है ।
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१०३ धर्मपरीक्षा भाषा |
रचयिता श्री मनोहरलाल । भाषा हिदी पद्य । पत्र संख्या =६. साइज २१४५ इ । लिपि संवत १८७६. भाषाकत्ता ने एक वृहत् प्रशस्ति दे रखी है ।
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१०४ धर्मप्रबोध ।
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कल्याण मार्ग को पढ़ना है पृष्ठ नहीं है ।
* श्री महावीर शास्त्र भंडार के प्रन्थ *
रचयिता आज्ञत | भाषा हिन्दी गद्य । पत्र संख्या २८. साइज ६x४|| इञ्च | विषय - स्याद्वाद सिद्धन्त का समर्थन | अनेक जैनाजैन ग्रन्थों के उदाहरणों द्वारा यह सिद्ध किया है कि स्पााद सिद्धान्त को अपनाना अच्छी है। प्रति प्राचीन मालूम देती है । लिपि संवत् १९१३. प्रथम
१०५ धर्मप्रशोचर श्रावकाचार |
लिपि संवत् १६४५ ।
१०६ धर्मरत्नाकर |
रचयिता अज्ञात | भाषा संस्कृत | पत्र संख्या साइज १०||४५ इव । लोक संख्या १५०० |
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रचयिता श्री जयसेन सूरि । भाषा संस्कृत | पत्र संख्या १४३. साइज १९४४ व प्रशस्ति है ।
१०७ धर्मशर्माभ्युदय सटीक |
टीकाकार पंडित यशःकीत्ति । भाषा संस्कृत | पत्र संख्या २२६. प्रारम्भ के १५६ पृष्ठ नहीं हैं । अन्तिम पृष्ठ नहीं हैं ।
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प्रति नं० २. पत्र संख्या २१६. साइज ११०४ । प्रति पूर्ण तथा प्राचीन है । टीका का नाम संदेह ध्वांतदीपिका |
१०८ धर्मसार ।
रचयिता श्री पंडित शिरोमणिदास | भाषा हिन्दी | पत्र संख्या ६६. साइज १०४५ || इञ्च । रचना संवत १७३२. लिपि संवत् १६१७ दशवर्मों के अतिरिक्त अन्य सिद्धान्तों का भी वर्णन है। प्रति पूर्ण है। लिखावट सुन्दर है |
एक सौ सित्यासी