Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 1
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Ramchandra Khinduka
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* आमेर भंडारके अन्य
पंक्तियां तथा प्रति पंक्ति में ३२-३- अक्षर । ग्रन्थ में तीनों लोकों के चैत्यालय, स्वर्ग, विदेहक्षेत्र आदि सभी को पूजा दे रखी है।
प्रति ने०२. पत्र संख्या १७, साइज ११||xशाच ।
त्रिलोकसार ।
रचयिता सिद्धान्त चक्रवर्ति श्री नेमिचन्द्रायाय । भापा प्राकृत । पत्र संख्या २८. साइज ११४४।। इञ्च लिपि संवत् १७२५. त्रिलोकसार दर्शन कया।
रचयिता श्री रूङ्गसेन । भापा हिन्दी (पद्य । पत्र संख्या १०८ साइज ११४५।। इञ्च । प्रत्येक पृष्ठ पर १४ पंक्तियां तथा प्रति पंक्ति में ३५-४० अक्षर। रचना संवत् १७१३ चैत्र सुदी पंचमी । लिपि संवत् १७६८ पोष सुट्टी १३. श्री कुन्दकुन्दाचार्य कृत बिलोकसार का पद्यों में अनुवाद किया गया है। पद्य बहुत ही सरल भापा में हैं । ग्रन्थ के अन्त में ग्रन्थका ने अपना परिचय दे रखा है । ग्रन्थ के कई पृष्ठ एक दूसरे से चिपके हुये हैं। अन्य की प्रतिलिपि उदयपुर में प्राचार्य श्री सकलकीति के शासन काल में हुई थी। त्रिलोकसार सटीक ।
मूलका सिद्धान्त चक्रवर्ति श्री नेमिचन्द्राचार्य । टीकाकार श्री बहुताचार्य । भाषा प्राकृत-संस्कृत । पत्र संख्या ११४. साइज १०x2}। इञ्च । विपय-तीनों लोकों का वर्णन ।
प्रति नं० २. पत्र संख्या ८५. साइज १२४५|| इञ्च । लिपि संवत् १५६० भादवा बुदि ११. प्रथम पृष्ट नहीं है। कितने ही पृष्ठ फट गये हैं।
त्रिलोकसार भाषा ।
रचयिता श्री चतुर्भुज । माषा हिन्दी । पत्र संख्या १६०, साइज ११५४ इन्च । प्रत्येक पृष्ठ पर ११ ।। पंक्तियां और प्रति पक्ति में ३२-३८ अक्षर । रचना संवत् १७१३. लिपि सवत् १४८६. लिपिस्थान नरायणा (जयपुर) कवि ने अपना परिचयं अच्छा दे रखा है। त्रिंशच्चतुर्विंशतिपूजा।
रचयिता-आचार्य-शुभचन्द्र। मापा संस्कृत । पत्र संख्या ४८, साइज ११४४|| इन। विषयतीस चौबीसियों की पूजा । लिपिस्थान-उदयपुर । प्रारम्भ के २ पृष्ठ नहीं हैं।
एक सौ चौसठ :