Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 1
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Ramchandra Khinduka
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* आर भंडार के ग्रन्थ
प्रति नं० ४. पत्र संख्या २७६ ग्रन्थ जीशीयों है । ३६ से २१७ तक पत्र नहीं है ।
महापुराणटिप्पण |
व्याख्या कर्त्ता- -अज्ञात भाषा-संस्कृत १०६. सार १२४८ || इञ्च । प्रति प्राचीन शुद्ध और स्पष्ट है | प्रति अपूर्ण है। अपभ्रंश से संस्कृत में टीका को हुई है ।
महावीर द्वात्रिंशिका |
रचयिता श्री भट्टारक सुकीर्त्ति। भाषा संस्कृत | पत्र संख्या २ साइज १२०५ || इश्र्व | भगवान महावीर की स्तुति की गयी है। प्रति अशुद्ध है।
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महीपाल चरित्र |
ग्रन्थकर्त्ता श्री चारित्र सुन्दर गरिए । पत्र संख्या ३३. साइज ७४३ || इ | प्रत्येक पर १० पंक्तियां और प्रति पंक्ति में ४७ से ५५ अक्षर। भाषा संस्कृत । लिपि संवत् १८० पांच सर्ग अन्य के अन्त में स्वये कवि ने भट्टारक परम्परा का वगान दिया है। कवि ने अपने को भट्टारक श्री रत्नसिंहसूरि का शिष्य लिखा है । के कागज और अक्षर दोनों अच्छे हैं।
ग्रन्थ
माणिक्य कल्प |
रचयिता श्वेताम्वराचार्य श्री मानतुंग । भाषा संस्कृत | पत्र संख्या ६. साइज १०x९ इव । लिपि संवत् १६४०. पद्य संख्या ५६.
माधवानल कथा |
रचयिता अज्ञात | भाषा संस्कृत | पत्र संख्या १०. साइज १३०५ इछ । लिपि संवत् १८३८. लिपिकार भट्टारक श्री सुरेन्द्रकी र्त्ति ।
माधवनिदान
रचयिता श्री माधव । भाषा संस्कृत । पृष्ट संख्या ६६. साइज
इ
प्रति नं० २. पृष्ठ संख्या २ साइज २०४६ इच। लिपि संवत् १६५७ लिपि स्थान मालपुरा । प्रति अपूर्ण है ।
मानमञ्जरी नाममालां ।
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रचयिता श्री नन्ददास । भाषा हिन्दी । पत्र संख्या १२ साइज १९५५ इव । पद्य संख्या ३०४, लिपि संवत् १=३६. भट्टारक श्री सुरेन्द्र कीर्ति ने प्रतिलिपि बनाई ।
एक सो बार