Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 1
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Ramchandra Khinduka
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* आमेर भंडार के ग्रन्थ *
पंचकल्याणक पूजा।
रचयिता आचार्य शुभचन्द्र । भाषा संस्कृत । पत्र संख्या २४. साइज १०||R५ इञ्च । प्रति नवीन है।
प्रति मं० २. पृष्ठ संख्या २४. साइज १०||४५ इन्च । पंचकल्याणविधान ।
रचयिता अज्ञात । भाषा संस्कृत । पन संख्या ३०. साइज Ex४ इञ्च । लियि संयन् १८६०. लिपिस्थान ग पचल लिमिकी श्री सुरेन्द्रभूषण ।
एश्वतन्त्र।
भापाकार श्री. रतनचन्द्रजी। भाषा हिन्दी संस्कृत । पत्र संख्या १००. साइज १०x४ इन्च । प्रत्येक पृष्ठ पर १५ पंक्तियां और प्रति पंक्ति में ५४-२८ अक्षर । उक्त पुस्तक में प्रारम में मंगलाचरण के बाद अनेक राज्यों का नामोल्लेख है जिससे तत्कालीन राज्य का पता लग सकता है। संस्कृत में भी लोक हैं और उनका हिन्दी में अनुवाद किया गया है। इसलिये शायद पञ्चतन्त्र के मुख्य नशाकों तथा पद्यों का उद्धरण मात्र दिया गया है। टीका संवत् १६४८.
प्रति नं०२. पत्र संख्या १२६. साइज Exi। इञ्च । प्रति प्राचीन है।
पंचतन्त्र !
रचचिता ५० मिगु शर्मा । भाषा संस्कृत-मद्य पद्य . पृष्ट संख्या १२६. साइज =IIXII इञ्च ।
पंचदएडकथा ।
रचयिता अज्ञात । भाषा संस्कृत । पत्र संख्या १०६. साइज ११४४|| इन्द्र । प्रत्येक पृष्ट पर १३ पंक्तियां और प्रति पंक्ति में ३-४६ अक्षर । विषय-नीति । उक्त कथा की रचना पंचतंत्र अथवा हितोपदेश के समान की गयी है। किन्तु यहां कवि प्रत्येक बात पद्य में ही कहता है । ग्रन्थ बहुत ही महत्व पूर्ण है तथा अभी तक अप्रकाशित भी है। ग्रन्थ अपूर्ण है, १०६ से आगे के पृष्ठ नहीं है।
मंगलाचरण
प्रणम्य जगदानंदादायकान् जिननायकान् ।
गणेशान्गौतमायांश्व गुरून् संसारतारकान ||१|| सज्जनान् शोभनाचारान शास्त्रवोधनकारकान् । पंचदंडापत्रस्य कथा वक्ष्ये समासतः ।।२।।
नवासी