Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 1
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Ramchandra Khinduka
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*आमेर के प्रन्थ
तत्वार्थसून भाषा ।
वीर सुनि श्री प्रभाचन्द्र । भाषाकार अज्ञात | पत्र संख्या ११२ ||४४|| इञ्च | लिपि संवत् १=०३, लिनित्थान बैंक । श्री खुशालराम ने पांडे बुम्भकरण के लिये प्रतिलिपि बनायी । कहीं २ सूत्रों की टीका संस्कृत में और हिन्दी में दी हुई है और कहीं केवल हिन्दी में ही लिखी हुई है।
तत्त्वार्थमार्थ ।
अर्थ कर्त्ता अज्ञात | भाषा संस्कृत | पत्र संख्या ३७ लाइ १०||४५ इञ्च । सूत्रों का अर्थ सरल संस्कृत में दे वा है । प्रति अपूर्ण है । अन्तिम दो नहीं है ।
तुर्क चन्द्रिका |
रचयिता श्री विश्वेश्वर | भाषा संस्कृत संख्या २२ साइज इञ्च । लिपि संवत् १८२६ ।
तर्कपरिभाषा |
रचयिता श्री केशव मिश्र । भाषा संस्कृत | पत्र संख्या ३७. साइज ११४५ इञ्च । लिपि संवत् १७६३ चैत्र शुक्ला पूर्णिमा | लिपि कर्त्ता भी लगकरण | लिपिस्थानइन्द्रस्व नगर ।
तर्कसंग्रह |
रचयिता श्री भट्ट । भाषा संस्कृत | पृष्ठ संख्या १३. साइज २० ॥४४॥ | |
प्रति नं० २. पृष्ठ संख्या १०. साइज १०x६ इञ्च । प्रतिसदीक है। टीकाकार श्री मत्तमट्टोपाध्याय | लिपि संवत् १७८२. लिपिकर्त्ता - श्री बलभद्र तिवाडी । इन दोनों के अतिरिक्त ७ प्रतियां और हैं ।
तर्कामृत |
रचयिता श्रीमज्जगदीश भट्टाचायें । मापा संस्कृत । पृष्ठ संख्या २९ साइज ६x४ || इञ्च | विषय - न्याय | लिपि संवत् १८३० ।
ताजिक भूषण |
रचयिता श्री देवज्ञ दुदिराज | भाषा संस्कृत | पत्र संख्या २६. साइज १२५५॥ इश्र्व | विषय -ज्योतिष | प्रति अपूर्ण है अन्तिम पृष्ठ नहीं है।
अडसठ